76 साल का इंतजार खत्म! इस आदिवासी गांव की बेटी ने रच दिया इतिहास, पास की मैट्रिक, बनना चाहती है टीचर
झारखंड के एक आदिवासी गांव की एक बच्ची ने इतिहास रच दिया है. आजादी के 76 साल बाद चांद मुनी ने मैट्रिक की परीक्षा पास की है. बच्ची का सपना टीचर बनने का है, ताकि वह अपने जैसे बाकी बच्चों को पढ़ाकर आगे बढ़ा सके.

झारखंड के बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड अंतर्गत एक छोटा-सा आदिवासी गांव सिमराबेड़ा है. झुमरापहाड़ के पास बसे इस गांव में आज भी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है. शिक्षा तो मानो दूर का सपना रही हो, लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ. 76 साल बाद पहली बार इस गांव की बेटी चांद मुनी कुमारी ने मैट्रिक की परीक्षा पास कर गांव का नाम रौशन कर दिया.
गोमिया के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय, तेनुघाट से पढ़ाई करने वाली चांद मुनी ने इस वर्ष मैट्रिक परीक्षा दी थी. जब रिजल्ट आया और चांद मुनी का नाम पास लिस्ट में दिखा, तो पूरे गांव में जैसे खुशियों की बौछार हो गई.
सम्मान से छलक उठीं आंखें
सामाजिक कार्यकर्ता मनोज कुमार पहाड़िया और आंगनबाड़ी केंद्र की सहायिका अनिता कुमारी ने चांद मुनी को शॉल ओढ़ाकर और माला पहनाकर सम्मानित किया, तो इस सम्मान से उसकी आंखों में आंसू छलक पड़े. ये आंसू संघर्ष, मेहनत और सपनों की पहली सीढ़ी चढ़ने की खुशी के थे.
साधारण परिवार से असाधारण उपलब्धि
चांद मुनी के पिता अरजलाल किस्कू एक प्रवासी मजदूर हैं और मां घर का काम करती हैं. आर्थिक तंगी, सामाजिक दबाव और संसाधनों की कमी के बावजूद चांद मुनी ने हार नहीं मानी. उसने दिखा दिया कि अगर हौसले बुलंद हों, तो हालात को भी बदला जा सकता है.
चांद मुनी का सपना है टीचर बनना
सम्मान के दौरान चांद मुनी ने कहा कि ' मैं पढ़-लिखकर टीचर बनना चाहती हूं, ताकि अपने जैसे बच्चों को भी आगे बढ़ा सकूं. मैं चाहती हूं कि हमारे इलाके का पिछड़ापन खत्म हो.' ये शब्द सिर्फ एक सपना नहीं, एक बदलाव की शुरुआत हैं.
मंत्री और प्रशासन भी हुआ प्रेरित
चांद मुनी की उपलब्धि की खबर सुनकर राज्य के मंत्री योगेंद्र प्रसाद ने कहा कि वह लड़की और उनके माता-पिता को सम्मानित करेंगे. इसके अलावा, आगे की पढ़ाई में सहयोग देने का भी वादा किया. वहीं गोमिया के बीडीओ महादेव कुमार महतो ने कहा कि इस स्वतंत्रता दिवस पर चांद मुनी को स्कूल में सम्मान दिया जाएगा.
40 गांवों की उम्मीद बनी चांद मुनी
सिमराबेड़ा जैसे क्षेत्र में लगभग 40-50 पूर्ण रूप से आदिवासी गांव बसे हुए हैं, जहां शिक्षा की हालत बेहद खराब है. लेकिन आज चांद मुनी उन सभी गांवों के लिए एक प्रेरणा बनकर उभरी है. उसने साबित किया कि बेटियां अगर ठान लें, तो इतिहास रच सकती हैं.