दिल्ली विधानसभा चुनाव में क्या है जातिगत समीकरण? पार्टियां भी उम्मीदवारों पर लगा रही दांव
Delhi Assembly Election 2025: राजधानी दिल्ली के चुनावों में ऊंची जातियों का उतार-चढ़ाव के साथ दबदबा रहा है, जो सबसे बड़ा वोट बैंक मानी जाती है. इनमें सबसे बड़ा हिस्सा ब्राह्मणों का है, उसके बाद राजपूत, वैश्य और पंजाबी खत्री हैं.

Delhi Assembly Election 2025: अक्सर माना जाता है कि बड़े शहरों में जाती का प्रभाव कम देखने को मिलता है, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो यहां पिछले चुनावों में चुने गए विधायकों और 5 फरवरी के विधानसभा चुनावों में दावेदारों की जाति पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि यह भूमिका निभाती है.
आंकड़ो पर एक बार नजर डाले तो ये बताता है कि दिल्ली में ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य और पंजाबी खत्री सबसे बड़ा वोट बैंक हैं, जिनकी संख्या 35% से 40% के बीच है. इनमें से ब्राह्मण 13%, राजपूत (8%), वैश्य (7%), पंजाबी खत्री (5%) और बाकी अन्य सामान्य जातियां हैं.
वोट बैंक और पार्टियों की उन पर नजर
जाट और ओबीसी अगला बड़ा वोट बैंक हैं, जो दिल्ली के वोटर्स का लगभग 30% है. इनमें से जाट और गुज्जर सबसे बड़ा बैंक माने जाते हैं. ओबीसी मतदाताओं का लगभग आधा हिस्सा हैं. दिल्ली की आबादी में दलितों की संख्या 16% से अधिक है, जबकि मुस्लिम लगभग 13% और सिख 3.5% हैं.
पार्टियां भी उम्मीदवारों पर लगा रही दांव
विधानसभा चुनाव 2025 की बात करें तो बीजेपी और उसके सहयोगियों ने जितने भी उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, उनमें से 45% उच्च जातियों के हैं. आम आदमी पार्टी (AAP) के उम्मीदवारों में 48%, कांग्रेस के उम्मीदवारों में 35% उच्च जाति का प्रतिनिधित्व आबादी में उनके हिस्से के अनुपात से रखा गया है. इससे साफ तौर पर नजर आता है कि राजधानी दिल्ली में कैसे पार्टियां पर जातियों को साधने की कोशिश में लगी है.
बात ब्राह्मण उम्मीदवारों की करें तो कांग्रेस 17%, बीजेपी ने 16% और आप ने 19% ब्राह्मण उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. वहीं बीजेपी ने 17%, आप ने 13% और कांग्रेस के 10% वैश्य उम्मीदवारों को टिकट दिया है. राजपूत उम्मीदवारों में बीजेपी ने 7% और आप ने 10%, जबकि कांग्रेस ने 1 उम्मीदवार को उतारा है.Delhi Assembly Election 2025
क्या कहता है पिछड़े विधानसभा चुनाव का आंकड़ा?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा की रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च जाति का प्रभुत्व पिछले चुनावों में भी काफी हद तक मौजूद रहा है. वर्तमान दिल्ली विधानसभा में सभी विधायकों में से 50% उच्च जातियों से हैं. 1993 में जब दिल्ली विधानसभा बना, तब से उच्च जातियों का प्रतिनिधित्व 2008 में अपने सबसे कम 37% से 1993 और 2020 में अपने सबसे अधिक 50% तक के आंकड़ो के साथ उतार-चढ़ाव करता रहा है.
2008 के चुनावों के बाद से ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व बढ़ा है. 2008 में ब्राह्मण सभी विधायकों का 10% हिस्सा थे, जो 2013 में बढ़कर लगभग 13% और 2015 और 2020 में 20% हो गया. इस समय में राजपूत प्रतिनिधित्व भी 1% से बढ़कर 4% हो गया है. वैश्य ने लगातार दिल्ली चुनावों में 13-14% का प्रतिनिधित्व बनाए रखा है, जो आबादी में उनके हिस्से का लगभग दोगुना प्रतिनिधित्व दर्ज करता है.
अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व
दिल्ली के कुछ इलाकों में मुसलमानों ने लगातार विधानसभा चुनावों में 7% से अधिक का प्रतिनिधित्व रहा, जहां इनका काफी प्रभाव रहा है. हालांकि, यह दिल्ली की आबादी में उनके अनुपात 13% से काफी कम है.
इन चुनावों में कांग्रेस ने सबसे ज़्यादा 10% मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, उसके बाद AAP ने 7% मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. भाजपा ने कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है.
सिखों का प्रतिनिधित्व भी 1993 में 3% से 2013 में 13% और 2020 में वापस 3% पर आ गया है. इन चुनावों में BJP ने 5%, AAP ने 6% और कांग्रेस ने 7% सिख उम्मीदवार उतारे हैं.