तिरंगा फहराने पर मौत की सजा! कांकेर में माओवादियों ने की युवक की हत्या, बैनर लगाकर दी सूचना; अबतक नहीं मिला शव
माओवादियों ने मुखबिरी का आरोप लगाया है, लेकिन पुलिस सूत्रों की मानें तो यह पूरी सच्चाई नहीं है. असल में 15 अगस्त को जब पूरा देश आज़ादी का जश्न मना रहा था, तभी बिनागुंडा गांव के युवाओं और ग्रामीणों ने भी साहस दिखाया.

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले से स्वतंत्रता दिवस के तुरंत बाद एक दर्दनाक और चौंकाने वाली खबर सामने आई है. यहां माओवादियों ने उस ग्रामीण की बेरहमी से हत्या कर दी, जिसने साहस दिखाते हुए 15 अगस्त को अपने गांव में राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। मृतक की पहचान छोटेबेटिया थाना क्षेत्र के बिनागुंडा गांव के रहने वाले 28 साल के मनीष नुरुटी के रूप में हुई है.
पुलिस अधिकारियों के अनुसार, यह घटना सोमवार देर शाम की है. हथियारों से लैस माओवादियों का एक बड़ा दस्ता अचानक बिनागुंडा गांव में घुस आया. उन्होंने मनीष नुरुटी के अलावा दो अन्य ग्रामीणों को भी पकड़ लिया और अपने साथ जंगल की ओर ले गए। ग्रामीणों ने पूरी कोशिश की कि नक्सली उन्हें छोड़ दें, लेकिन बंदूक के साये में उनकी एक न चली.
सुरक्षा बलों तक गुप्त जानकारी
थोड़ी देर बाद माओवादी तथाकथित 'जन अदालत' में तीनों ग्रामीणों को पेश किया. यहां मनीष पर यह आरोप लगाया गया कि वह पुलिस का मुखबिर है और गुप्त जानकारी सुरक्षा बलों तक पहुंचाता है. आरोपों के बीच नक्सलियों ने उसकी निर्मम हत्या कर दी. वहीं, अन्य दो ग्रामीणों को पीटकर चेतावनी देने के बाद छोड़ दिया गया.
हत्या के पीछे असली कारण
हालांकि माओवादियों ने मुखबिरी का आरोप लगाया है, लेकिन पुलिस सूत्रों की मानें तो यह पूरी सच्चाई नहीं है. असल में 15 अगस्त को जब पूरा देश आज़ादी का जश्न मना रहा था, तभी बिनागुंडा गांव के युवाओं और ग्रामीणों ने भी साहस दिखाया. मनीष नुरुटी ने गांव में मौजूद माओवादियों के बनाए एक स्मारक के ऊपर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया था. इस मौके पर ग्रामीणों ने 'भारत माता की जय' और 'वंदे मातरम' जैसे जोशीले नारे भी लगाए. यही कदम नक्सलियों को नागवार गुज़रा. वे इसे अपने वर्चस्व को चुनौती मान बैठे और बदले की कार्रवाई करते हुए मनीष को मौत के घाट उतार दिया.
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो
इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें साफ दिखाई दे रहा है कि मनीष नुरुटी और अन्य ग्रामीण माओवादी स्मारक पर तिरंगा लहरा रहे हैं. आसपास मौजूद लोग देशभक्ति के नारों से पूरा माहौल गूंजा रहे हैं. यही वीडियो इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि मनीष किसी पुलिस का मुखबिर नहीं, बल्कि देशभक्ति की भावना से प्रेरित एक आम ग्रामीण था, जिसने तिरंगे का सम्मान करने की हिम्मत दिखाई.
गांव में फैला सन्नाटा और दहशत
इस हत्या के बाद पूरे गांव में दहशत का माहौल है. लोग डरे-सहमे हैं और खुले तौर पर कुछ बोलने से भी कतरा रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि मनीष बेहद साहसी और मददगार इंसान था. वह हमेशा युवाओं को पढ़ाई और देशभक्ति की राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता था. लेकिन स्वतंत्रता दिवस पर किया गया उसका यह साहसी कदम उसकी जान ले गया.
पुलिस की प्रतिक्रिया
कांकेर जिले के पुलिस अधीक्षक आई.के. ऐलेसेला ने बताया कि अब तक मनीष नुरुटी का शव बरामद नहीं हो सका है. उन्होंने कहा, 'माओवादियों ने हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए गांव के पास बैनर लगाए हैं. हम उनके परिवार से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं और पूरे मामले की जांच जारी है.' उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि पिछले डेढ़ साल में नक्सलियों ने इसी तरह पुलिस मुखबिरी के आरोप लगाकर चार से पाँच निर्दोष ग्रामीणों की हत्या की है, जबकि उनका वास्तव में पुलिस से कोई लेना-देना नहीं था.