Begin typing your search...

मटके के अंदर से बोल रहा शेर! चर्चा का विषय बना लाल मटका, जानिए इसका रहस्य

छत्तीसगढ़ में ऑडिटोरियम में गुरुवार और शुक्रवार तक हरित शिखर कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के लोक वाद्य यंत्रों की एक प्रदर्शनी लगाई गई है. इसमें संस्कृति और परंपरा को दिखाया जा रहा है. इसमें लगभग 200 वाद्य यंत्रों का संग्रह है. इसमें सबसे ज्यादा चर्चा लाल मटके की चर्चा हो रही है.

मटके के अंदर से बोल रहा शेर! चर्चा का विषय बना लाल मटका, जानिए इसका रहस्य
X
निशा श्रीवास्तव
By: निशा श्रीवास्तव

Published on: 4 Oct 2024 11:58 AM

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में इन दिनों एक मटका चर्चा का विषय बना हुआ है. राजधानी रायपुर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में यह मटका रखा हुआ है. इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आ रहे हैं. इसमें से शेर की दहाड़ निलकती है.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी इस लाल मटके को देखने पहुंचे. उन्होंने शेर के दहाड़ वाली आवाज सुनी. लोग इस मटके का रहस्य जानने के लिए पहुंच रहे हैं. सभी इसका इतिहास जानने के लिए आ रहे हैं.

क्यों हो रही चर्चा

छत्तीसगढ़ में ऑडिटोरियम में गुरुवार और शुक्रवार तक हरित शिखर कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के लोक वाद्य यंत्रों की एक प्रदर्शनी लगाई गई है. इसमें संस्कृति और परंपरा को दिखाया जा रहा है. इसमें लगभग 200 वाद्य यंत्रों का संग्रह है. इसमें सबसे ज्यादा चर्चा लाल मटके की चर्चा हो रही है.

शेर की आवाज सुनने आए लोग

लाल रंग के इस मटके के अंदर से शेर जैसी आवाज निकल रही है. इस खास वाद्य यंत्र का नाम घुमरा है. इस कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री विष्णुजदेव साय ने किया है. उन्होंने इस दौरान मटके से निकलने वाली शेर की दहाड़ जैसे आवाज सुनी और इसके बारे में जानकारी प्राप्त की.

500 साल पुराना इतिहास

घुमरा बाजे का इतिहास करीब 500 साल पुराना है. राज्य के दुर्ग जिले के अहिवारा ब्लॉक और उसके आसपास के क्षेत्रों में इस बाजे का उपयोग फसलों की सुरक्षा के लिए किया जाता था. गाय, भैंस बकरी, भालू जैसे जानवर फसलों को नुकसान पहुंचाने आते थे, तब मटका बजा कर उन्हें भगा दिया जाता था. ये बाजा अब लगभग विलुप्त हो गया है.

कैसे हुई इसकी खोज

जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ वाद्य यंत्रों का संग्रह पिछले 40 वर्षों से कर रही है. इसका संग्रह करने वाले रिखी ने बताया कि करीब 2000 साल पहले मेरे संग्रहित वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी रखी गई. जिले के ढिंढोरी गांव के रहने वाले लोक कलाकार व शब्द भेदी बाण चलाने में पारंगत कोदू राम वहां पर पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने मुझे घुमरा बाजा के बारे में बताया. उसके बाद से मैंने इसको इकट्ठा करना शुरू कर दिया. अब बड़ी संख्या में लोग इसका संग्रह कर रहे हैं.

अगला लेख