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आजादी से पहले से चली आ रही है मिथिला राज्य की मांग, राबड़ी देवी ने क्यों की बिहार तोड़ने की बात?

मिथिलांचल के लोगों का मानना है कि अलग राज्य बनने से उनके क्षेत्र का विकास होगा और वे अपनी भाषा व संस्कृति को बेहतर तरीके से संरक्षित कर पाएंगे. उनका कहना है कि उनकी मांगों पर केंद्र सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए. माना जा रहा है कि बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में यह मुद्दा अहम भूमिका निभा सकता है.

आजादी से पहले से चली आ रही है मिथिला राज्य की मांग, राबड़ी देवी ने क्यों की बिहार तोड़ने की बात?
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नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Published on: 27 Nov 2024 9:29 PM

बिहार विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने एक बड़ा कदम उठाते हुए मिथिलांचल को अलग राज्य बनाने की मांग की है. यह मांग विधान परिषद के शीतकालीन सत्र के दौरान मैथिली भाषा पर चर्चा के बीच उठी. राबड़ी देवी ने बीजेपी से कहा कि वे इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने रखें.

राबड़ी देवी ने सदन में कहा, "केंद्र और राज्य दोनों में आपकी सरकार है. आपने मैथिली भाषा को सम्मान दिया, यह अच्छी बात है, लेकिन मिथिला को अलग राज्य का दर्जा भी देना चाहिए." उन्होंने मीडिया से बात करते हुए भी इस मांग को दोहराया. माना जा रहा है कि बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में यह मुद्दा अहम भूमिका निभा सकता है.

1912 में पहली बार उठी थी मांग

मिथिलांचल क्षेत्र जो उत्तर बिहार का हिस्सा है और जहां मैथिली भाषा बोली जाती है. यहां के लोग लंबे समय से अलग राज्य की मांग कर रहे हैं. अगर इतिहास के पन्नों को पलटकर देखा जाए तो मिथिला राज्य की मांग पहली बार साल 1912 में की गई थी. जब बंगाल से बिहार अलग हुआ था. इसके बाद 1921 में महाराजा रामेश्वर सिंह ने मांग की. लेकिन पहली बार मिथिला राज्य के लिए 1952 में आंदोलन हुआ. साल 2000 में झारखंड बनने के बाद यह मांग और तेज हुई. अब ये मामला बार-बार तूल पकड़ता जा रहा है.

क्यों करते हैं अलग राज्य की मांग?

मिथिलांचल के लोगों का मानना है कि अलग राज्य बनने से उनके क्षेत्र का विकास होगा और वे अपनी भाषा व संस्कृति को बेहतर तरीके से संरक्षित कर पाएंगे. उनका कहना है कि उनकी मांगों पर केंद्र सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए. भारत में राज्यों के गठन का इतिहास बताता है कि सांस्कृतिक और भाषाई पहचान अक्सर नए राज्यों के निर्माण की प्रमुख वजह रही है. उदाहरण के लिए, झारखंड और उत्तराखंड जैसे राज्यों का गठन उनकी विशिष्ट पहचान और पिछड़ेपन को ध्यान में रखते हुए किया गया. मिथिलांचल के लोग भी इसी आधार पर अपने क्षेत्र के लिए अलग राज्य की मांग कर रहे हैं.

राज्यों के गठन के बदलते रहे मानक

ब्रिटिश शासन के दौरान नए राज्यों का गठन ज्यादातर प्रशासनिक जरूरतों के आधार पर किया गया था. उदाहरण के लिए, पूर्वी और पश्चिमी बंगाल का विभाजन, बंगाल से बिहार-ओडिशा का अलग होना और फिर बिहार से ओडिशा का अलग होना. आजादी के बाद राज्यों के गठन के मानक बदल गए, जिनमें भाषा का मुद्दा सबसे अधिक महत्वपूर्ण बन गया.

आजादी के बाद महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों का गठन मुख्य रूप से भाषाई पहचान के आधार पर हुआ. हालांकि, यह कहना गलत होगा कि आजादी के बाद केवल भाषाई आधार पर ही राज्यों का गठन हुआ. उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जैसे राज्यों का निर्माण प्रशासनिक आवश्यकताओं और उनकी अलग भौगोलिक पहचान को ध्यान में रखते हुए किया गया.

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