मायावती को लगा बड़ा झटका, वीरचंद पटेल पथ पर सियासी मिलन; प्रदेश उपाध्यक्ष समेत BSP के कई नेता JDU में शामिल
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मायावती की पार्टी BSP को बड़ा झटका लगा है. प्रदेश उपाध्यक्ष सकलदेव दास के नेतृत्व में दर्जनभर नेता JDU में शामिल हो गए. वीरचंद पटेल पथ स्थित JDU कार्यालय में प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा की मौजूदगी में उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह बहुजन वोट बैंक में कटौती का संकेत है, जिससे JDU को चुनावी लाभ मिल सकता है.

BSP leaders join JDU in Bihar: बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) को एक जबरदस्त झटका लगा है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के बीच कड़ी लड़ाई के बीच, अब BSP के प्रदेश उपाध्यक्ष सकलदेव दास के नेतृत्व में कई वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता जनता दल यूनाइटेड (JDU) की ओर रुख कर चुके हैं.
27 अप्रैल को वीरचंद पटेल पथ स्थित JDU के प्रदेश कार्यालय में आयोजित ‘मिलन समारोह’ में BSP के दर्जनभर नेता-कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा की मौजूदगी में JDU की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की. इनमें विज्ञान, प्रावैधिकी एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री सुमित कुमार सिंह, प्रदेश महासचिव चंदन कुमार सिंह, जमुई जिला अध्यक्ष शैलेंद्र महतो और मीडिया पैनलिस्ट महेश दास जैसे नामी चेहरे शामिल थे.
बसपा के किन नेताओं ने थामा JDU का दामन?
बसपा से JDU में आए प्रमुख नेताओं में जमुई जिला अध्यक्ष आदित्य प्रकाश रौशन, लोकसभा प्रभारी मनोज दास, उदय रविदास, संजय कुमार भारती, नागेश्वर रविदास, सुबोध कुमार व सुनील कुमार सुमन का भी स्वागत किया गया. इन नेताओं के जाने से BSP की चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े हो गए हैं, क्योंकि पार्टी अकेले ही सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी थी.
सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रही BSP
BSP के राष्ट्रीय समन्वयक और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम ने पहले ही साफ कर दिया था कि उनकी पार्टी किसी से गठबंधन नहीं करेगी, लेकिन अब अचानक बड़े नेता-कार्यकर्ताओं का पलायन इससे इतर भी मायावती की छवि को नुक़सान पहुंचा सकता है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बहुजन वोट बैंक में कटौती का संकेत हो सकता है, जिसका फ़ायदा JDU सहित प्रमुख दल उठा सकते हैं. बिहार में कट्टर-विरोधी मुद्दों से हटकर विकास और सामाजिक न्याय पर फ़ोकस करने वाली JDU के लिए यह कब्ज़ा एक महत्वपूर्ण जीत की तरह बताया जा रहा है.