6 समुदायों को राहत? विदेशी ट्रिब्यूनल केस वापसी पर सीएम हिमंत ने तोड़ी चुप्पी, जानें क्या है मामला
इसी दौरान एक सुझाव आया कि 2014 के अंत से पहले भारत में आए छह धर्मों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई के लोगों के खिलाफ जो मामले असम के विदेशी न्यायाधिकरणों में चल रहे हैं, उन्हें वापस ले लिया जाना चाहिए. यह सुझाव बैठक की ऑफिशियल रिकॉर्ड में दर्ज किया गया और सभी जिलों के उपायुक्तों और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भेज दिया गया.
17 जुलाई की दोपहर गुवाहाटी में असम सरकार की एक अहम बैठक हुई. यह बैठक गृह और राजनीतिक विभाग ने बुलाई थी, जिसमें अतिरिक्त मुख्य सचिव, असम पुलिस, गृह विभाग और स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे. बैठक का मुख्य उद्देश्य तकनीकी सुधारों पर चर्चा करना था- जैसे ई-साक्ष्य पोर्टल और नए कानून: बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता), बीएनएसएस (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) और बीएसए (भारतीय साक्ष्य अधिनियम) को लागू करना.
लेकिन बातचीत सिर्फ तकनीक तक ही नहीं रुकी. बैठक में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पर भी बात हुई. इसी दौरान एक सुझाव आया कि 2014 के अंत से पहले भारत में आए छह धर्मों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई के लोगों के खिलाफ जो मामले असम के विदेशी न्यायाधिकरणों में चल रहे हैं, उन्हें वापस ले लिया जाना चाहिए. यह सुझाव बैठक की ऑफिशियल रिकॉर्ड में दर्ज किया गया और सभी जिलों के उपायुक्तों और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भेज दिया गया.
'यह आदेश नहीं है!'-सरकार की सफाई
जैसे ही यह जानकारी सामने आई, असम में हंगामा मच गया. अखिल असम छात्र संघ (AASU) ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह धर्म के आधार पर कुछ लोगों को खास संरक्षण देने की कोशिश कर रही है. संगठन ने इसका विरोध करते हुए 8 अगस्त को पूरे राज्य में प्रदर्शन करने का ऐलान कर दिया. इस विवाद के बाद सरकार की ओर से सफाई दी गई.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 'बैठक में जो बात कही गई थी, वो सिर्फ एक सुझाव था, कोई सरकारी आदेश नहीं. अगर सरकार वाकई मामलों को वापस लेना चाहती, तो सरकारी अधिसूचना (ऑफिशियल नोटिफिकेशन) जारी करती, जैसे पहले गोरखा और कोच राजबोंगशी समुदाय के मामलों में किया गया था.'
सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने क्या कहा?
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखी. कैबिनेट बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि 'इस पर कोई नया फैसला लेने की जरूरत नहीं है. उन्होंने बताया कि CAA (नागरिकता संशोधन कानून) पहले से ही इन छह धर्मों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई के लोगों को सुरक्षा देता है, अगर वे 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आ गए थे. सरमा ने साफ कहा कि राज्य सरकार ने इस पर कोई नई नीति नहीं बनाई है. जो भी प्रक्रिया चल रही है, वो वही है जो केंद्र सरकार ने CAA में तय की है.
असम में अवैध प्रवास का पुराना संघर्ष
यह मुद्दा असम के लिए नया नहीं है. बांग्लादेश के साथ लंबी सीमा होने के कारण असम में बांग्लादेश से अवैध प्रवास लंबे समय से एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा रहा है.1985 में हुए असम समझौते के अनुसार, 24 मार्च 1971 को नागरिकता के लिए कट-ऑफ तारीख माना गया. इसका मतलब यह है कि जो लोग इस तारीख के बाद भारत आए, उन्हें 'विदेशी या 'अवैध प्रवासी' माना जाता है. इन्हीं मामलों की जांच के लिए असम में Foreigners Tribunals (FTs) यानी विदेशी न्यायाधिकरण बनाए गए हैं, जो यह तय करते हैं कि किसी व्यक्ति की नागरिकता भारतीय है या नहीं.
2023 के निर्देश और लंबित मामले
सरकार पहले ही 2023 में सीमा पुलिस को यह निर्देश दे चुकी है कि CAA के अंतर्गत आने वाले छह धर्मों के लोगों को, जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में प्रवेश किया हो, उनके नए मामले FTs को न भेजे जाएं. फिर भी, इससे पहले के वर्षों में FTs में दर्ज किए गए 90,000 से अधिक मामलों पर कोई स्पष्ट असर नहीं पड़ा.





