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10 दिन में सबूत दो या जगह छोड़ो, असम के जंगलों से बेदखली का हाईकोर्ट ने दिया फरमान

असम के घने जंगलों में बसे कुछ लोग अब बड़े संकट में हैं. राज्य उच्च न्यायालय ने उन्हें कड़ा अल्टीमेटम दिया है. अगले 10 दिन के भीतर अपनी मौजूदगी और कब्जे के सबूत पेश करें, वरना उन्हें जंगल छोड़ना होगा. यह आदेश उन तमाम निवासियों के लिए है जिनके रहने के अधिकार पर सवाल उठे हैं. इस फैसले के बाद इलाके में बड़ा हड़कंप मचा हुआ है, क्योंकि कई लोग अपनी जमीन और जीवन की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं.

10 दिन में सबूत दो या जगह छोड़ो, असम के जंगलों से बेदखली का हाईकोर्ट ने दिया फरमान
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( Image Source:  Canva )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 7 Aug 2025 6:53 PM IST

गोलाघाट जिले के दोयांग और दक्षिण नम्बर वन क्षेत्रों में रहने वाले कई परिवारों के लिए ये जंगल सिर्फ पेड़ों का एक समूह नहीं, बल्कि पीढ़ियों से उनका घर रहा है. इन ग्रामीणों का दावा है कि उनके पूर्वज यहां वर्षों से रहते आए हैं, यहीं उनकी ज़िंदगी बसी है, लेकिन अब यह जीवन संकट में है.

राज्य प्रशासन ने इन निवासियों को सात दिन के भीतर जंगल खाली करने का नोटिस थमा दिया. अचानक आया यह आदेश जैसे गांवों में भूचाल ले आया. लोग सकते में थे. कैसे छोड़ दें वे ज़मीन, जिसे वे अपनी मातृभूमि मानते हैं?

कानूनी लड़ाई की शुरुआत

करीब 74 ग्रामीणों ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया. उन्होंने अदालत से गुहार लगाई कि यह बेदखली अवैध है और असम भूमि एवं राजस्व विनियमन, 1886, असम भूमि नीति, 2019 और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन है.

मुख्य न्यायाधीश ने उठाए सवाल

मुख्य न्यायाधीश आशुतोष कुमार ने याचिका पर सुनवाई की और पूछा. क्या इनके पास कोई दस्तावेज़ी प्रमाण है कि यह ज़मीन कभी उन्हें दी गई थी? अदालत को बताया गया कि कोई स्पष्ट दस्तावेज़ उनके पास नहीं है, लेकिन उनका दावा है कि वे सरकारी योजना के तहत यहाँ बसाए गए थे.

'दावे को साबित कीजिए'-अदालत का निर्देश

अदालत ने याचिकाकर्ताओं को 10 दिनों का समय दिया है, जो 5 अगस्त से गिनकर तय होगा. इस दौरान वे अपने भूमि अधिकारों को साबित करने वाले दस्तावेज़ अदालत में पेश कर सकते हैं. जब तक यह समयसीमा पूरी नहीं होती, तब तक उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी.

सरकार का पक्ष- 'ये अतिक्रमणकारी हैं'

राज्य के महाधिवक्ता ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि ये ग्रामीण आरक्षित वन क्षेत्र में अवैध रूप से रह रहे हैं. उन्होंने बताया कि दोयांग और दक्षिण नम्बर वन क्षेत्र को सरकारी अधिसूचना द्वारा आरक्षित वन घोषित किया जा चुका है और यहां कोई भी गैर-वन गतिविधि अपराध की श्रेणी में आती है.

वनों पर कब्जे का बड़ा संकट

महाधिवक्ता ने एक चौंकाने वाला आंकड़ा भी पेश किया. असम के आरक्षित वनों की करीब 29 लाख बीघा (लगभग 9.5 लाख एकड़) ज़मीन पर अतिक्रमण है. राज्य सरकार ने अभियान चलाकर एक लाख बीघा से अधिक भूमि पहले ही अतिक्रमण से मुक्त करा ली है. सरकार का साफ तर्क था कि ये ग्रामीण ना तो बाढ़ पीड़ित हैं, ना ही सरकारी तौर पर भूमिहीन या वनवासी घोषित हैं. वे केवल अवैध रूप से जंगल में रह रहे हैं और पर्यावरण तथा वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को नुकसान पहुंचा रहे हैं.


असम न्‍यूज
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