भगवान की तरह कीर्तिमुख राक्षस की पूजा करते हैं लोग, यह करता है मंदिर और घर की रक्षा, जानें क्या है इसकी कहानी
Kirtimukha Rakshas Katha: कीर्तिमुख राक्षस की पूजा केवल धार्मिक मान्यता नहीं है, बल्कि यह हमें नकारात्मकता से बचने और सकारात्मकता की ओर बढ़ने का संदेश देती है. भारतीय संस्कृति में इस राक्षस का महत्व उस समय और भी बढ़ जाता है जब हम यह देखते हैं कि यह कैसे घरों और मंदिरों की सुरक्षा का प्रतीक बन चुका है.
Kirtimukha Rakshas Katha: क्या आपने कभी सोचा है कि एक राक्षस आपके घर या मंदिर की रक्षा कर सकता है? भारतीय धार्मिक मान्यताओं में यह बात सही है, और इस राक्षस का नाम है कीर्तिमुख. यह राक्षस देवताओं की तरह पूजा जाता है और इसके ऊपर मंदिरों में ध्यान देना और इसकी स्थापना करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. आइए, जानते हैं कीर्तिमुख की उत्पत्ति और उसकी विशेषताओं के बारे में.
कीर्तिमुख राक्षस के माध्यम से हम न केवल अपने घरों की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि अपने मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को भी बनाए रख सकते हैं. इस प्रकार, कीर्तिमुख केवल एक राक्षस नहीं, बल्कि हमारी सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण माध्यम है.
कीर्तिमुख की उत्पत्ति
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कीर्तिमुख की उत्पत्ति भगवान शिव ने की थी. एक बार जब भगवान शिव तपस्या में लीन थे, तब दैत्य राहु ने चंद्रमा को ग्रस लिया, जिससे चंद्र ग्रहण हो गया. यह देखकर शिवजी अत्यंत क्रोधित हुए और राहु का घमंड चूर करने के लिए उन्होंने अपने ही कण से कीर्तिमुख का निर्माण किया. भगवान शिव ने कीर्तिमुख को आदेश दिया कि वह राहु को खा जाए. राहु ने जब शिवजी के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी, तब शिवजी ने उसे दया दिखाते हुए छोड़ दिया.
इस घटना के बाद, कीर्तिमुख ने खुद को खाने का निर्णय लिया. शिवजी की तपस्या में विघ्न न डालने के लिए उसने अपने पूरे शरीर को ही खा लिया, जिससे केवल उसका हाथ और मुख बच गया. इस पर शिवजी ने कहा कि तुम जहां भी रहोगे, वहां की नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करोगे. तभी से कीर्तिमुख की पूजा का प्रचलन शुरू हुआ.
कीर्तिमुख का महत्व
कीर्तिमुख की पूजा करने का मुख्य उद्देश्य नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करना है. लोग अक्सर इसकी तस्वीर या मूर्ति अपने घर के दरवाजे पर या मंदिर के द्वार पर लगाते हैं. ऐसा माना जाता है कि यह राक्षस घर और मंदिर की रक्षा करता है, जिससे वहां की बुरी शक्तियाँ दूर रहती हैं. इसकी मूर्तियां और चित्र मंदिरों के गर्भगृह के द्वार पर या मुख्य द्वार के ऊपर दिखाई देते हैं, जहां यह लोगों को अपने डरावने मुख से घूरता है.
इसकी पूजा करने के पीछे की मान्यता है कि यह राक्षस शांति और सकारात्मकता को बढ़ावा देने में मदद करता है. अगर किसी स्थान पर कीर्तिमुख की स्थापना विधिवत रूप से की गई हो, तो वहां की नकारात्मकता और द्वेष का नाश होता है. यह राक्षस न केवल घरों की सुरक्षा करता है, बल्कि समाज में भी शांति का वातावरण बनाने में सहायक है.
कीर्तिमुख का स्वरूप
कीर्तिमुख का रूप बहुत ही डरावना होता है. इसके पास एक बड़ा सिर होता है, जिसमें तेज दांत और चुभने वाली आंखें होती हैं. इसके द्वारा निर्मित चेहरे पर एक अलग ही आभा होती है, जो इसे अन्य राक्षसों से अलग बनाती है. इसका मुख मंदिरों में और घरों के बाहर दिखाई देता है, जहां इसे सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है.
डिस्क्लेमर: यह लेख सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित हैं. हम इसके सही या गलत होने की पुष्टि नहीं करते.





