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क्यों भगवान शंकर ने काट दिया था अपने ही पुत्र गणेश का मस्तक? जानें इसके पीछे की असली कहानी

Bal Ganesh: भगवान शंकर और गणेश की यह कथा भारतीय पौराणिक साहित्य में एक प्रमुख स्थान रखती है. यह सिर्फ एक धार्मिक घटना नहीं है, बल्कि यह जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में गहरा संदेश देती है. गणेश जी का मस्तक कटने की घटना भगवान शंकर की अपरंपार शक्ति और माता पार्वती के असीम प्रेम का प्रतीक है.

क्यों भगवान शंकर ने काट दिया था अपने ही पुत्र गणेश का मस्तक? जानें इसके पीछे की असली कहानी
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स्टेट मिरर डेस्क
By: स्टेट मिरर डेस्क

Updated on: 29 Sept 2024 10:55 AM IST

Bal Ganesh: प्राचीन भारतीय पौराणिक कथाओं में भगवान गणेश की उत्पत्ति और उनके मस्तक कटने की कहानी बहुत प्रसिद्ध है. यह कथा केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसमें छिपा हुआ संदेश भी महत्वपूर्ण है. यह कहानी शंकर भगवान, माता पार्वती, और उनके पुत्र गणेश की है.

आइए जानते हैं, क्या हुआ था उस दिन और क्यों भगवान शंकर ने अपने ही पुत्र का मस्तक काट दिया. इस कथा को धार्मिक दृष्टिकोण से देखने के साथ-साथ इसे आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक रूप से भी देखा जाता है. गणेश का मस्तक हाथी के मस्तक से बदलने का संदेश यह है कि अहंकार (मानव मस्तक) का त्याग कर, विनम्रता और ज्ञान (हाथी का मस्तक) को अपनाना चाहिए. यह कथा यह भी सिखाती है कि माता-पिता के आदेशों का पालन और उनकी सेवा करना संतुलित जीवन का आधार है.

गणेश जी की उत्पत्ति की कहानी

कहानी की शुरुआत होती है माता पार्वती से, जो भगवान शंकर की पत्नी हैं. एक बार माता पार्वती अपने महल में स्नान करने के लिए जा रही थीं. उन्होंने अपने शरीर के उबटन (त्वचा से निकली मैल) से एक बालक का निर्माण किया और उसे जीवन का वरदान दिया. इस बालक का नाम गणेश था. माता पार्वती ने गणेश को अपना पुत्र माना और उसे आदेश दिया कि वह दरवाजे के बाहर खड़ा रहे और किसी को भी अंदर न आने दे, जब तक वह स्नान पूरा नहीं कर लेतीं.

भगवान शंकर का आगमन

इसी बीच, भगवान शंकर अपनी तपस्या से लौटे और पार्वती के कक्ष में प्रवेश करना चाहा. लेकिन गणेश, जो अपनी माता के आदेश का पालन कर रहा था, ने भगवान शंकर को भीतर जाने से रोक दिया. भगवान शंकर को यह नहीं पता था कि यह बालक उनका ही पुत्र है. गणेश अपने आदेश का कड़ा पालन कर रहे थे और किसी भी स्थिति में शंकर को अंदर नहीं जाने दे रहे थे.

गणेश और भगवान शंकर का विवाद

जब गणेश ने भगवान शंकर को रोकने का प्रयास किया, तो भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए. उन्होंने गणेश से कहा कि वह उन्हें अंदर जाने दे, लेकिन गणेश ने माता पार्वती के आदेश के अनुसार ऐसा करने से इनकार कर दिया. इस विवाद ने उग्र रूप धारण कर लिया, और गणेश भगवान शंकर के मार्ग में अडिग खड़े रहे.

भगवान शंकर काट दिया गणेश का मस्तक

भगवान शंकर के क्रोध की सीमा तब पार हो गई जब गणेश ने उनसे शक्ति प्रदर्शन करना शुरू किया. अपनी शक्ति और क्रोध के आवेग में, भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल उठाया और गणेश का मस्तक काट दिया. इसके बाद गणेश का शरीर वहीँ गिर पड़ा. भगवान शंकर को तब तक यह नहीं पता था कि वह उनके अपने पुत्र हैं. जब माता पार्वती ने यह दृश्य देखा, तो वह अत्यधिक दुखी हो गईं और भगवान शंकर पर कुपित हो उठीं.

माता पार्वती का शोक और शंकर की दुविधा

जब माता पार्वती ने अपने पुत्र को इस अवस्था में देखा, तो उन्होंने भगवान शंकर से उसे पुनः जीवन देने की प्रार्थना की. माता पार्वती की वेदना से द्रवित होकर भगवान शंकर ने गणेश को जीवनदान देने का निर्णय लिया.

गणेश को हाथी का मस्तक मिलना

भगवान शंकर ने अपने गणों को आदेश दिया कि वे किसी प्राणी का मस्तक लाकर गणेश के धड़ से जोड़ दें, ताकि वह फिर से जीवित हो सके. उनके गणों को एक हाथी का मस्तक मिला, जिसे भगवान शंकर ने गणेश के धड़ से जोड़ दिया और इस प्रकार गणेश पुनः जीवित हो उठे. इसके साथ ही भगवान शंकर ने गणेश को आशीर्वाद दिया कि उन्हें "विघ्नहर्ता" का दर्जा प्राप्त होगा और वे सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय होंगे.

डिस्क्लेमर: यह लेख सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसके सही या गलत होने की पुष्टि नहीं करते.

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