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सनातन काल से मनाई जा रही नवरात्रि, जानें किसने की थी पहली बार माता रानी की पूजा

अर्जुन ने माता रानी के आशीर्वाद से कई अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए थे, जिनके दम पर उन्हें महाभारत के युद्ध में विजय मिली थी. कई लोग तांत्रिक क्रियाओं के लिए भी माता रानी की पूजा करते हैं.

सनातन काल से मनाई जा रही नवरात्रि, जानें किसने की थी पहली बार माता रानी की पूजा
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स्टेट मिरर डेस्क
By: स्टेट मिरर डेस्क

Updated on: 22 Sept 2024 7:01 AM IST

नवरात्रि यानी देवी की उपासना का पर्व सनातन काल से मनाया जा रहा है. इसका जिक्र विभिन्न धर्मग्रंथों में मिलता है. हालांकि समय बताते हुए पहली बार देवी की पूजा का उल्लेख महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण में मिलता है. इन्हीं प्रसंगों को गोस्वामी तुलसीदास ने भी सुंदर तरीके से श्रीराम चरित मानस में बताया है. श्रीराम चरितमानस के बालकांड में माता सीता द्वारा देवी की पूजा का प्रसंग मिलता है. सीता जी ने भगवान श्रीराम को वर रूप में पाने के लिए देवी गौरी की आराधना की थी. इसके अलावा श्रीरामचरित मानस के ही सुंदरकांड में हनुमान ने भी माता सीता की स्तुति की और अष्ट सिद्धि और नव निधियों के साथ भगवान राम के विशेष कृपा पात्र होने का आर्शीवाद पाया था.

इसके बाद लंका कांड में राक्षस राजकुमार मेघनाद ने अपनी कुलदेवी की पूजा कर लक्ष्मण वध का आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास किया था. देवी की पूजा का विधान द्वापर में भी खूब मिला है. श्रीमद भागवत महापुराण के मुताबिक गोपियों ने वृंदावन में अपने हाथों से माता कात्यायनी की मूर्ति बनाई और फिर 'कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्द गोपसुतं देविपतिं मे कुरु ते नमः॥' इस मंत्र से पूजा करते हुए भगवान कृष्ण को वर रूप में चाहा. इस मंत्र को भागवत का सिद्ध मंत्र कहा गया है. इसी मंत्र से कई ऋषि मुनियों ने सिद्धियां भी अर्जित की हैं. आज भी कई संत महात्मा इसी मंत्र से अनुष्ठान करते हैं और अभीष्ठ फल की प्राप्ति करते हैं.

माता की कृपा से रुक्मणि को मिले भगवान कृष्ण

द्वापर में देवी पूजा का दूसरा उल्लेख इसी श्रीमदभागवत के रुक्मणि विवाह के प्रसंग में आता है. माता सीता की ही तरह रुक्मणि ने देवी की पूजा कर भगवान कृष्ण को पति पर रूप चाहा और उसी मंदिर में भगवान का वरण भी किया. इसी प्रकार अर्जुन ने भी माता रानी के आशीर्वाद से कई अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए थे, जिनके दम पर उन्हें महाभारत के युद्ध में विजय मिली थी. उसके बाद से हर देश, काल और परिस्थिति में माता रानी के अलग अलग रूपों में उनकी पूजा शुरू हो गई. कई लोग तो तांत्रिक क्रियाओं के लिए भी माता रानी की पूजा करते हैं.

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