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आज अनंत चतुर्दशी के दिन पढ़े ये व्रत कथा, सभी कष्ट होंगे दूर, पांडवों की भी हुई थी विजय

Anant Chaturdashi 2024 Puja Vrat Katha: हिंदू धर्म में अनंत चतुर्दशी का व्रत बहुत जरूरी माना जाता है. यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को अनंत सुख की प्राप्ति होती है, पापों का नाश होता है, और मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है.

आज अनंत चतुर्दशी के दिन पढ़े ये व्रत कथा, सभी कष्ट होंगे दूर, पांडवों की भी हुई थी विजय
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संस्कृति जयपुरिया
by: संस्कृति जयपुरिया

Updated on: 17 Sept 2024 8:32 AM IST

Anant Chaturdashi 2024 Puja Vrat Katha: हिंदू धर्म में अनंत चतुर्दशी का व्रत बहुत जरूरी माना जाता है. यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और अनंत सूत्र बांधने का विधान है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को अनंत सुख की प्राप्ति होती है, पापों का नाश होता है, और मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है. अनंत चतुर्दशी का व्रत घर में धन-धान्य की वृद्धि करता है और परिवार में खुशहाली लाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांडवों ने भी इस व्रत को करके अपने खोए हुए राज्य को वापस पाया था.

अनंत चतुर्दशी पूजा विधि

अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराकर स्वच्छ वस्त्र पहनाया जाता है. भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य और रोली अर्पित की जाती है. भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करते हुए खीर और खोए से बनी मिठाई चढ़ाई जाती है. पूजा के दौरान भगवान विष्णु की मूर्ति पर अनंत सूत्र चढ़ाया जाता है, जिसे पूजा के बाद अपने दाहिने हाथ पर बांधा जाता है. इसके साथ ही, अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा सुनना भी अनिवार्य होता है, क्योंकि इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है.

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया, जिसमें दुर्योधन गलती से जल कुंड में गिर गया. द्रौपदी ने उनका उपहास करते हुए कहा कि "अंधे की संतान भी अंधी होती है." इस अपमान से दुर्योधन आहत हुआ और उसने युधिष्ठिर को जुआ खेलने के लिए बुलाया. छल से पांडवों को हराकर उन्हें 14 वर्ष का वनवास दे दिया गया. वनवास के दौरान, भगवान कृष्ण युधिष्ठिर से मिलने आए और उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत करने की सलाह दी. भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई.

प्राचीन काल में एक ब्राह्मण की पुत्री सुशीला थी, जिसका विवाह कौण्डिनय ऋषि से हुआ. विवाह के बाद कौण्डिनय ऋषि अपने आश्रम के लिए चल पड़े, और रास्ते में सुशीला ने अनंत व्रत का अनुष्ठान कर 14 गांठों वाला डोरा अपने हाथ में बांध लिया. जब कौण्डिनय ऋषि ने इस डोरे के बारे में सुशीला से पूछा, तो उन्होंने व्रत का महत्व बताया. परंतु कौण्डिनय ऋषि इससे अप्रसन्न हुए और उस डोरे को आग में डाल दिया. इसके बाद उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई. सुशीला ने ऋषि को बताया कि इसका कारण अनंत भगवान का अपमान था.

अपने किए पर पछताते हुए कौण्डिनय ऋषि अनंत भगवान की खोज में निकल पड़े. भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि उनके अपमान के कारण ही यह विपत्तियां आई हैं, लेकिन अब उनके पश्चाताप से वे प्रसन्न हैं. भगवान ने उन्हें आदेश दिया कि वे 14 वर्षों तक अनंत व्रत करें, जिससे उनके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. कौण्डिनय ऋषि ने भगवान के बताए अनुसार व्रत किया और उन्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिली.

पांडवों की विजय

श्रीकृष्ण के निर्देशानुसार, युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया, जिससे महाभारत के युद्ध में पांडवों को जीत मिली.

नोट- यह लेख सामान्य जानकारी के मुताबिक दिया गया है. इसकी पुष्टि StateMirror नहीं करता है.

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