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भारत के घरों में कैसे मनाया जाता है असली क्रिसमस? केक, कैरोल और करी में रची-बसी सदियों पुरानी देसी परंपरा

भारत में क्रिसमस सिर्फ सांता क्लॉज़, टिनसेल और नकली बर्फ तक सीमित नहीं है. भारतीय ईसाई समुदाय सदियों से क्रिसमस को अपनी स्थानीय संस्कृति, भाषा, संगीत और भोजन के साथ मनाता आया है. घरों में देसी सजावट, रंगोली, आकाशकंदील और नैटिविटी क्रिब लगाए जाते हैं. कैरोल्स क्षेत्रीय भाषाओं में गाए जाते हैं और भोजन में केरल से गोवा, पूर्वोत्तर से उत्तर भारत तक अलग-अलग पारंपरिक व्यंजन शामिल होते हैं.

भारत के घरों में कैसे मनाया जाता है असली क्रिसमस? केक, कैरोल और करी में रची-बसी सदियों पुरानी देसी परंपरा
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 25 Dec 2025 9:26 AM IST

जब दिसंबर की ठंड में मॉल्स के बाहर सांता की टोपी और चमचमाती लाइटें नजर आने लगती हैं, तो लगता है कि क्रिसमस बस टिनसेल, केक और जिंगल बेल्स का त्योहार है. लेकिन भारत के करोड़ों ईसाई घरों में क्रिसमस की तस्वीर इससे बिल्कुल अलग होती है. कहीं दरवाज़े पर चावल के आटे की रंगोली बनती है, कहीं खिड़की में स्‍काईकैंडल झूलता है, तो कहीं केक के साथ करी और पुलाव की खुशबू रसोई से बाहर तक फैल जाती है. यहां क्रिसमस किसी पश्चिमी पोस्टर की नकल नहीं, बल्कि भारत की मिट्टी में रचा-बसा उत्सव है - जिसमें प्रार्थना भी है, गीत भी, और हर इलाके का अपना स्वाद और अपनी भाषा भी.

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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार भारत के ईसाई घरों में क्रिसमस का उत्सव इन पश्चिमी प्रतीकों से कहीं ज्यादा गहरा, देसी और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है.

Image Credit: ANI

भारतीय क्रिसमस: जहां ट्री भी देसी और सजावट भी

भारत के कई शहरी घरों में भले ही आर्टिफिशियल क्रिसमस ट्री लगती हो, लेकिन सजावट पूरी तरह पश्चिमी नहीं होती. टिनसेल और चमकदार बॉल्स के साथ-साथ दिखाई देते हैं पेपर माशी से बने सितारे, घंटियां, अर्धचंद्र और गोल आकृतियां, कपड़े से बने हाथी और ऊंट और लकड़ी की रंगीन घंटियां. दक्षिण भारत और पश्चिमी भारत में घरों के बाहर रंगोली और कोलम बनाई जाती है - चावल के आटे, फूलों और रंगों से. महाराष्ट्र और गोवा में खिड़कियों व बालकनियों में आकाशकंदील (बांस और कागज की लालटेन) टांगी जाती हैं. दरवाजों पर लाल, हरे और सुनहरे रंग के तोरण सजते हैं. जहां क्रिसमस ट्री उपलब्ध नहीं होती, वहां लोग गमले में लगे मोरपंखी या अरौकेरिया जैसे पौधों को ही सजा देते हैं. घरों और चर्चों में नैटिविटी क्रिब - यीशु मसीह के जन्म का दृश्य - खास जगह पाता है.

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कैरोल्स, लेकिन अंग्रेजी तक सीमित नहीं

क्रिसमस कैरोल्स भारत में सिर्फ अंग्रेजी में नहीं गाए जाते. हालांकि Silent Night, Joy to the World और O Come All Ye Faithful जैसे गीत बेहद लोकप्रिय हैं, लेकिन ये अक्सर मलयालम, मिजो, भोजपुरी, तेलुगु, हिंदी, तमिल और कन्नड़ जैसी भाषाओं में भी सुनाई देते हैं. इसके अलावा भारत के अलग-अलग इलाकों में पूरी तरह स्वदेशी क्रिसमस गीत भी हैं - पंजाब में बोलियां, डोगरा क्षेत्र में टप्पे, महाराष्ट्र में क्रिसमस लावणियां, हिंदी कैरोल्स जैसे “क्या दिन खुशी का आया”. केरल में तो 16वीं सदी से चली आ रही लैटिन ईसाई परंपरा चविट्टुनाटकम के जरिए क्रिसमस की कथा को मंच पर जीवंत किया जाता है.

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चर्च से थाली तक: क्रिसमस और भारतीय भोजन

क्रिसमस का मतलब सिर्फ प्रार्थना नहीं, बल्कि भोजन और साझा उत्सव भी है. भारत में क्रिसमस की थाली पश्चिमी देशों जैसी नहीं होती. यहां टर्की और हैम नहीं, बल्कि क्षेत्रीय व्यंजन मेज़ पर होते हैं.

  • केरल: ऐपम, स्टू, बीफ फ्राई, रोस्ट डक
  • गोवा: पोर्क विंदालू, सोरपोटेल, ज़ाकूती और बाथ केक
  • पूर्वोत्तर भारत: पोर्क और चावल की दावत
  • छोटानागपुर पठार: चिकन करी, धुस्का और आइसरा
  • उत्तर भारत: बिरयानी, कबाब, पुलाव, हलवा और गुलाब जामुन

यानी क्रिसमस भी भारत में उतना ही विविध है, जितना भारत खुद.

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केक भी, लेकिन देसी ट्विस्ट के साथ

क्रिसमस केक हर घर में बनता है, लेकिन उसका स्वाद हर राज्य में अलग होता है.

  • पुडुचेरी का विविकम केक - काजू और नारियल के दूध से बना
  • कई जगह मक्खन की जगह घी का इस्तेमाल
  • महाराष्ट्र में चिरौंजी
  • उत्तर भारत और बंगाल से जुड़े परिवारों में पेठा (कैंडिड ऐश गॉर्ड)

यानी क्रिसमस केक भी स्थानीय स्वाद से जुड़ा होता है.

कुसवार, फराल और पिठा: मिठाइयों की साझा संस्कृति

गोवा, मैंगलोर और मुंबई के ईस्ट इंडियन समुदायों में कुसवार/कुसवाड की परंपरा है जिसमें मार्जिपान, मिल्क क्रीम्स, कुलकुल्स और नारियल-काजू से बनी मिठाइयां शामिल होती हैं. महाराष्ट्र में दिवाली के फराल की तरह क्रिसमस पर भी शंकरपाळी, लड्डू और नमकपारे बनाए जाते हैं. बंगाल में पिठा, और उत्तर भारत में गुजिया, समोसा और नमकपारे - जो इस बात का संकेत हैं कि भारतीय त्योहार एक-दूसरे की परंपराओं से कैसे जुड़े हुए हैं.

भारत में क्रिसमस: कोई नया त्योहार नहीं

ईसाई धर्म भारत में कोई नया आगंतुक नहीं है. मान्यता है कि संत थॉमस 52 ईस्वी में ही भारत आ गए थे. यानी भारत में क्रिसमस मनाने की परंपरा पश्चिमी प्रभाव से कहीं पुरानी है. आज जो सांता, नकली बर्फ और शॉपिंग डिस्काउंट दिखाई देते हैं, वे अपेक्षाकृत नए हैं. असल भारतीय क्रिसमस - स्थानीय संस्कृति, भाषा, भोजन और संगीत से जुड़ा हुआ उत्सव है.

भारत में क्रिसमस सिर्फ एक “इम्पोर्टेड फेस्टिवल” नहीं, बल्कि सदियों से भारतीय रंग में रचा-बसा उत्सव है. यहां यीशु के जन्म का जश्न कोलम, कुसवार, कैरोल्स, करी और केक के जरिए मनाया जाता है - हर राज्य, हर समुदाय के अपने तरीके से. भारतीय क्रिसमस पश्चिम की नकल नहीं, बल्कि भारत की विविधता का उत्सव है.

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