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मृत्यु की तारीख याद नहीं, फिर कब कर सकते हैं श्राद्ध-पिंडदान?

अक्सर लोगों को अपने पुरखों की मृत्यु की तारीख पता नहीं होती. चूंकि श्राद्ध कर्म उसी तिथि में करने का विधान है, ऐसे में लोग तिथि पता करने के लिए परेशान रहते हैं. जबकि शास्त्रों में साफ तौर पर कहा गया है कि किसका कब श्राद्ध किया जा सकता है.

मृत्यु की तारीख याद नहीं, फिर कब कर सकते हैं श्राद्ध-पिंडदान?
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स्टेट मिरर डेस्क
By: स्टेट मिरर डेस्क

Published on: 21 Sept 2024 8:25 AM

पूर्वजों को पिंडदान आम तौर पर उनकी मृत्यु तिथि में किया जाता है. अक्सर ऐसा भी होता है कि लोग पितरों का श्राद्ध करना भूल जाते हैं. लंबे समय बाद उन्हें याद आता है कि उनके पितर अतृप्त हैं और श्राद्ध जरूरी है, ऐसे में वह पितर तीर्थ पहुंचते हैं. वहां पंडा पहला सवाल यही पूछता है कि मृत्यु क्या है. ऐसे में यह बहुत बड़ी समस्या पैदा हो जाती है कि यह तिथि कैसे पता करें. चूंकि श्राद्ध उसी तिथि पर करने का विधान है, इसलिए लोग परेशान भी खूब होते हैं. तीर्थ पुरोहित भोला पांडेय के मुताबिक लोगों का अपने पूर्वजों की मृत्यु की तारीख भूल जाना बड़ी बात है.

उनका कहना है कि लोग पूर्वजों का उत्तराधिकार लेना तो कभी नहीं भूलते, लेकिन मृत्यु की तारीख जरूर भूल जाते हैं. भोला पांडेय के मुताबिक यह पौराणिक परंपरा तो नहीं है, लेकिन लोक व्यवहार में ऐसा चलन है कि जिस भी मृतात्मा की मृत्यु की तारीख याद ना हो, उसे अश्वनि मास की अमावस्या को पिंडदान कर दिया जाए तो मृतात्मा को संपूर्ण फल मिल जाता है. हालांकि ऐसा विशेष परिस्थिति में ही करने का विधान है. तीर्थ पुरोहित के मुताबिक भाद्रपद की पूर्णिमा को केवल उन्हीं लोगों को पिंडदान किया जाता है, जिसकी मौत पूर्णिमा को हुई रहती है.

अज्ञात तिथि में अमावस को पिंडदान

इसी प्रकार अश्वनि महीने के कृष्ण पक्ष में पड़वा से लेकर चर्तुदशी तक उन लोगों के तर्पण का विधान है, जिनकी तिथि ज्ञात होती है. यह तर्पण ठीक उसी तिथि पर होती है, जिस तिथि पर मौत हुई रहती है. लेकिन अमावस्या के दिन उन सभी मृतात्माओं का श्राद्ध किया जा सकता है, जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात हो या अज्ञात हो. ऐसे में यदि किसी पूर्वज के मौत की तिथि ज्ञात ना भी हो तो पितृपक्ष के अंतिम दिन यानी अमावस्या को पिंडदान किया जा सकता है. इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की दुर्घटना में मौत हुई रहती है तो उसके श्राद्ध के लिए अश्वनि माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को श्रेष्ठ माना गया है.

हर अमावस्या को होता है तर्पण

गया में तो 12 महीने और 365 दिन तर्पण और पिंडदान चलता ही रहता है, लेकिन अन्य पितर तीर्थों में हर महीने अमावस्या को तर्पण होता है.तीर्थ पुरोहितों के मुताबिक श्राद्ध का मतलब श्रद्धा से है. इसका अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना है. इसलिए शास्त्रों में यह व्यवस्था दी गई है कि कोई भी व्यक्ति पूरे महीने चाहें जहां व्यस्त रहे, लेकिन अमावस्या के दिन अपने पितरों को याद जरूर कर ले. इसके लिए सभी तीर्थों में वर्ष की सभी 12 अमावस्या के दिन तर्पण कार्य किया जाता है.

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