विदेश में हैं और नहीं जा सकते गया, क्या ऑनलाइन कर सकते हैं पिता का श्राद्ध?
ऑनलाइन कल्चर ही आज के जमाने का है, जबकि श्राद्ध की व्यवस्था सनातन काल से चली आ रही है. जाहिर सी बात है कि ऑन लाइन श्राद्ध का प्रावधान किसी भी ग्रंथ में नहीं मिलेगा. हालांकि लोगों की आवश्यकता को देखते हुए कई पितर तीर्थों में पुरोहिता ने यह व्यवस्था शुरू कर दी है.

देश में कोरोना आया तो इसके साथ ही कई काम ऑनलाइन होने लगे. कई बार निकाह और विवाह तक ऑनलाइन होने की खबरें आ ही जाती है. ऐसे में एक सवाल यह उठता है कि क्या श्राद्ध या पिंडदान भी ऑनलाइन संभव है? यह सवाल इसलिए भी मौजू है कि कई लोग रोजी रोजगार की वजह से अपने घर से दूर विदोशों में बैठे हैं. वह ना तो अपने पुरखों की जमीन पर इस समय पहुंच सकते और ना ही गया, काशी या हरिद्वार ही जा सकते हैं. ऐसे वंशज लगातार तीर्थ पुरोहितों को फोन कर उनकी राय ले रहे हैं.
कई तीर्थ पुरोहितों ने ऐसे वंशजों के भाव को देखकर ऑनलाइन श्राद्ध कराना भी शुरू कर दिया है. ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि क्या इस तरह किया गया श्राद्ध उचित है? इस तरह के श्राद्ध का कोई लाभ पूर्वजों को मिलेगा भी या नहीं? इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढने के लिए हमने गया और काशी के तीर्थ पुरोहितों से बात की. इसके बाद यही सवाल विभिन्न आचार्यों से भी सवाल किया है. हालांकि ज्यादातर आचार्यों से इसे सही नहीं माना है. हालांकि काशी के तीर्थ पुरोहित भीखू उपाध्याय कहते हैं कि रोज उनके पास विदेश में बैठे बारह से पंद्रह वंशजों के फोन आ रहे हैं.
इस सवाल पर मौन साध लेते हैं ग्रंथ
वह ऐसे लोगों का पिंडदान ऑनलाइन करा भी रहे हैं. हालांकि वह उचित और अनुचित के सवाल पर मौन साध लेते हैं. इसी प्रकार तीर्थ पुरोहित श्री कृष्णनारायण मिश्र कहते हैं कि ऑनलाइन श्राद्ध शास्त्र सम्मत नहीं है. श्राद्ध श्रद्धा का विषय है और ऑनलाइन श्राद्ध में वो भाव नहीं आ सकता. पितृों के तर्पण के लिए परिजन यानी उत्तराधिकारी का होना जरूरी है. यदि आप खुद उपलब्ध नहीं हो सकते तो अपने ही परिवार के किसी अन्य व्यक्ति के जरिए तर्पण तो करा सकते हैं, लेकिन ऑनलाइन का फार्मूला यहां उचित नहीं है.
कुत्तों के श्राद्ध का नया चलन
वैसे तो श्राद्ध पितरों का किया जाता है. पितर का अर्थ पिता से है. हालांकि विस्तार में देखें तो पितरों की श्रेणी में मां का भी स्थान आता है. इसलिए जब भी किसी पितृ तीर्थ में श्राद्ध किया जाता है तो पूरे कुल खानदान के मृतात्माओं का नाम लेते हुए तर्पण किया जाता है. अब समय के साथ इसमें थोड़ा बदलाव आया है. अब लोग अपने माता पिता के लिए तर्पण तो कर ही रहे हैं, अपने कुत्ते, बिल्ली जैसे अन्य पालतू जानवरों को भी पिंडदान करने लगे हैं. तीर्थ पुरोहितों के मुताबिक शास्त्रों में इनके श्राद्ध का उल्लेख तो नहीं मिलता, लेकिन इसमें कोई बुराई भी नहीं है.