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बेटियां भी कर सकती है पिता का श्राद्ध! जानें क्या है गरुड़ पुराण में प्रावधान

गरुड़ पुराण में बेटी या दामाद के द्वारा श्राद्ध कर्म का कोई उल्लेख नहीं मिलता. हालांकि इस महान ग्रंथ में एक प्रावधान उत्तराधिकारी द्वारा पिंडदान का किया गया है. ऐसे में तीर्थ पुरोहितों का मानना है कि यदि बेटी या दामाद उत्तराधिकारी बनते हैं तो उनके द्वारा पिंडदान में कोई अड़चन नहीं है.

बेटियां भी कर सकती है पिता का श्राद्ध! जानें क्या है गरुड़ पुराण में प्रावधान
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स्टेट मिरर डेस्क
By: स्टेट मिरर डेस्क

Published on: 20 Sept 2024 12:16 PM

पितरों के तर्पण का श्रेष्ठ समय पितृपक्ष शुरू हो चुका है. तमाम लोग पितृतीर्थ गया में जाकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर रहे हैं तो कुछ लोग हरिद्वार, अयोध्या या काशी में पिंडदान कर रहे हैं.इस बीच सोशल मीडिया पर एक सवाल खूब पूछा जा रहा है. सवाल यह है कि बेटियां पिंडदान या श्राद्ध कर सकती हैं कि नहीं. तर्क दिया जा रहा है कि शास्त्रों में बेटियों द्वारा श्राद्ध का कोई प्रावधान नहीं किया गया है. दावा तो यह भी किया जा रहा है कि बेटियों द्वारा किए गए श्राद्ध का फल पितरों को नहीं मिलता. इस प्रसंग में हम इसी सवाल का हल ढूंढने की कोशिश करेंगे.

गरुड़ पुराण में पिंडदान के लिए कुछ लोगों को विशेषाधिकार दिया गया है. इस महान ग्रंथ के मुताबिक पिंडदान का पहला अधिकार यदि मृतात्मा पिता है तो पुत्र को और महिला है तो पति को है. यदि पुत्र या पति न हो तो मृतात्मा के पौत्र या भाई तर्पण कर सकते हैं. यदि ये भी ना हो तो परिवार के किसी व्यक्ति जो उस मृतात्मा का उत्तराधिकारी हो, उसके द्वारा तर्पण कराया जा सकता है. यहां उत्तराधिकारी के रूप में पौत्र और प्रपौत्र का तो साफ शब्दों में उल्लेख मिलता है, लेकिन यदि उत्तराधिकारी दामाद या बेटी हो तो गरुड़ पुराण मौन साध लेता है. ऐसे में यह सवाल अक्सर उठता है कि क्या बेटी, दामाद या बेटी का बेटा पिंडदान कर सकता है कि नहीं?

गरुड़ पुराण में इस सवाल का नहीं मिलता सीधा जवाब

चूंकि इस सवाल का सीधा जवाब ग्रंथ में नहीं है, ऐसे में लोक व्यवहार को देखते हुए कालांतर में कई आचार्यों ने इसके लिए अनुमति दी है. इस अनुमति के लिए आचार्यों ने तर्क दिया है कि शास्त्र में उत्तराधिकारी शब्द का उल्लेख मिलता है. इसका अर्थ यह है कि मृतात्मा को जो भी उत्तराधिकारी होगा, भले ही वह बेटी, दामाद या बेटी का बेटा या कोई अन्य रिश्तेदार ही क्यों ना हो, वह पिंडदान कर सकता है. गया के तीर्थ पुराहित रामकिशोर, काशी के तीर्थ पुरोहित जगदीश का भी यही मत है. इनका कहना है कि गरुड़ पुराड़ की जब रचना हुई, उस समय के देश, काल और परिस्थिति के मुताबिक कुछ नियम और वर्जनाएं तय हुई थीं. चूंकि देश, काल और परिस्थिति तीनों में ही काफी बदलाव हुआ है, ऐसे में नियम भी उसी हिसाब से बदल जाएंगे. उदाहरण के तौर पर यदि किसी व्यक्ति का वंश ही ना बढ़ा हो, तो उसका पिंडदान कैसे होगा. इस सवाल के ही जवाब में उत्तराधिकारी शब्द का उल्लेख किया गया है. इस शब्द के में गोद लिया गया पुत्र भी शामिल हो जाता है और बेटी, दामाद या बेटी का बेटा भी.

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