Chaiti Chhath Puja: क्यों मनाया जाता है चैती छठ? जानिए इससे जुड़ी रोचक कथा
चैत्र मास में मनाए जाने के कारण इसे चैती छठ पर्व कहा जाता है और इसे बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है. हालांकि कार्तिक मास में आने वाली छठ की अधिक चर्चा होती है, चैती छठ भी उतना ही महत्वपूर्ण है. इस पर्व में श्रद्धालु सूर्य देव और षष्ठी देवी (छठी मैया) की पूजा करते हैं.

Chaiti Chhath Puja: चैत्र मास में मनाए जाने के कारण इसे चैती छठ पर्व कहा जाता है और इसे बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है. हालांकि कार्तिक मास में आने वाली छठ की अधिक चर्चा होती है, चैती छठ भी उतना ही महत्वपूर्ण है. इस पर्व में श्रद्धालु सूर्य देव और षष्ठी देवी (छठी मैया) की पूजा करते हैं. सूर्य देव की बहन देवसेना को षष्ठी देवी के रूप में पूजा जाता है. ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड निर्माण के छठे दिन सौर मंडल का निर्माण हुआ और इसी कारण से छठ पर्व में सूर्य देव की पूजा की परंपरा है.
चैती छठ की पौराणिक कथा
पंडित रामकुमार मिश्रा बताते हैं कि चैत्र नवरात्र के पहले दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था. उस समय सृष्टि में अंधकार था और केवल जल ही जल था. इसी दौरान श्रीहरि विष्णु योगमाया के बंधन में जल में शयन कर रहे थे. ब्रह्मांड निर्माण की प्रक्रिया के दौरान छठे दिन जब श्रीहरि के नेत्र खुले, तो सौर मंडल की रचना हुई और सूर्य एवं चंद्र अस्तित्व में आए. इसी क्षण ब्रह्मा की ब्राह्मी शक्ति से देवसेना का जन्म हुआ जिन्हें छठी मैया के नाम से पूजा जाता है. ऐसी मान्यता है कि सूर्य उपासना से संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती ह, और यही कारण है कि भक्तगण छठी मैया और सूर्य देव से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस व्रत का पालन करते हैं,
चैती छठ का अनुष्ठान
चैती छठ व्रत की शुरुआत 12 अप्रैल से ‘नहाय-खाय’ अनुष्ठान के साथ होगी. व्रत के दूसरे दिन 13 अप्रैल को ‘खरना’ का आयोजन किया जाएगा. 14 अप्रैल को श्रद्धालु सूर्यास्त के समय ‘संध्या अर्घ्य’ देंगे और अंततः 15 अप्रैल को सूर्योदय के समय ‘उषा अर्घ्य’ के साथ व्रत का समापन होगा. व्रत के दौरान व्रती महिलाएं कठिन उपवास रखती हैं और अपने बच्चों की भलाई के लिए पूरे दिन निर्जल रहकर पूजा करती हैं.
सौर पुराण में छठ व्रत का उल्लेख
सौर पुराण के अनुसार, राजा कर्ण, कुंती पुत्र अर्जुन और श्रीकृष्ण के पुत्र सांब ने भी छठ व्रत का पालन किया था. यह चार दिवसीय व्रत न केवल भक्तों की आस्था का प्रतीक है, बल्कि सूर्य उपासना से जुड़ी प्राचीन परंपराओं को आगे बढ़ाने का भी प्रतीक है.
डिस्क्लेमर: यह लेख सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसके सही या गलत होने की पुष्टि नहीं करते.