3 लोगों के डीएनए से ब्रिटेन में पैदा हुए 8 हेल्दी बच्चे, साइंस के लिए डिज़ाइनर बेबी वरदान या डिजास्टर?
इस अनोखी प्रोसेस में एक बच्चे के जन्म के लिए तीन लोगों के जेनेटिक मैटिरियल का उपयोग किया जाता है. इनमें मां के अंडे में डिफेक्टिव माइटोकॉन्ड्रिया हो सकते हैं. पिता जिसका स्पर्म भ्रूण बनाने में इस्तेमाल होता है. वहीं, माइटोकॉन्ड्रिया डोनर महिला जिनके अंडों से माइटोकॉन्ड्रिया लिए जाते हैं.

कल्पना कीजिए अगर किसी महिला को ऐसी बीमारी हो जो उसके बच्चों को भी हो सकती है और उनकी जान तक ले सकता है, तो क्या कोई रास्ता है जिससे वह एक हेल्दी बच्चा पैदा कर सके? ब्रिटेन के साइंटिस्ट ने एक ऐसी तकनीक से यह मुमकिन कर दिखाया है. इसमें तीन लोगों के डीएनए से हेल्दी बच्चे पैदा हुए.
दरअसल मां के अंडे में डिफेक्टिव माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं, जो बच्चे में लाइलाज बीमारी का कारण बनते हैं. इस तकनीक से अब तक चार लड़के और चार लड़कियों का जन्म हो चुका है. सबसे बड़ा बच्चा दो साल से अधिक उम्र का है. सबसे छोटा पांच महीने से भी कम. एक महिला अभी गर्भवती है. चलिए जानते हैं इस प्रोसेस के बारे में.
माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी क्या है?
माइटोकॉन्ड्रिया हमारे शरीर की सेल्स में मौजूद "पावर हाउस" होते हैं, जो एनर्जी बनाते हैं. अगर ये ठीक से काम न करें, तो दिल, मस्तिष्क, मांसपेशियों और गुर्दों जैसे अंगों में गंभीर बीमारी हो सकती है. यह बीमारी मां के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए से बच्चे को मिलती है और अक्सर लाइलाज होती है.
कैसे हुआ चमत्कार?
ब्रिटेन के न्यूकैसल फर्टिलिटी सेंटर ने प्रोन्यूक्लियर ट्रांसफर नाम की एक नई तकनीक अपनाई. इस प्रकिया में मां और पिता के अंडे और स्पर्म से भ्रूण बनता है. भ्रूण बनने के पहले दिन उसमें से माता-पिता के प्रोन्यूक्लिआई (DNA वाले हिस्से) निकाल लिए जाते हैं. दूसरी ओर, एक डोनर महिला के अंडे को भी फर्टिलाइज किया जाता है और उसके प्रोन्यूक्लिआई हटा दिए जाते हैं. फिर माता-पिता के प्रोन्यूक्लिआई को डोनर के अंडे में डाल दिया जाता है, जिसमें अब हेल्दी माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं. इस तरह नया भ्रूण बनता है, जिसमें मां-पिता का DNA और डोनर महिला का माइटोकॉन्ड्रियल DNA होता है.
क्या यह बच्चों की पहचान को बदल देगा?
नहीं, यह कोई डिज़ाइनर बेबी बनाने का प्रोसेस नहीं है. बच्चे के 99.9% जीन मां और पिता से आते हैं. डोनर से सिर्फ 0.1% जीन मिलते हैं, जो माइटोकॉन्ड्रिया से जुड़ा होता है. हालांकि, कुछ बच्चों में 5 से 16% तक डिफेक्टिव माइटोकॉन्ड्रिया पाए गए, लेकिन यह बीमारी फैलाने के लिए काफी नहीं है.
इस तकनीक के फायदे और नुकसान
यह तकनीक लाइलाज बीमारियों से लड़ने का नया रास्ता खोलती है. ऐसे माता-पिता जिनके बच्चे बीमार हो सकते हैं, अब हेल्दी बेबी पा सकते हैं. वहीं, इसके नुकसान भी हैं क्योंकि यह प्रक्रिया जटिल और महंगी है. डोनर महिलाओं को अंडा देने से पहले हार्मोनल दवाएं दी जाती हैं, जिससे उनके हेल्थ पर असर हो सकता है. कुछ लोगों का मानना है कि यह प्रकृति के नियमों से छेड़छाड़ है.