Begin typing your search...

आचार्य अनिरुद्धाचार्य की इन बातों को जीवन में अपनाएं, सभी दुख होंगे दूर

Acharya Aniruddhacharya Tips : देश के विख्यात श्रीमद्भागवत कथावाचक, आचार्य अनिरुद्धाचार्य, इन दिनों भोपाल की केंद्रीय जेल में कैदियों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन दे रहे हैं. श्रीमद्भागवत कथा के दौरान उन्होंने कैदियों को जीवन में क्रोध पर नियंत्रण और सदाचार का पालन करने के महत्वपूर्ण उपाय बताए.अनिरुद्धाचार्य ने यह भी कहा कि निंदा करना मनुष्य का सबसे बड़ा अवगुण है, इससे हर हाल में बचें.

आचार्य अनिरुद्धाचार्य की इन बातों को जीवन में अपनाएं, सभी दुख होंगे दूर
X
Photo Credit- Social Media

Aniruddhacharya Tips : देश के विख्यात श्रीमद्भागवत कथावाचक, आचार्य अनिरुद्धाचार्य, इन दिनों भोपाल की केंद्रीय जेल में कैदियों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन दे रहे हैं. श्रीमद्भागवत कथा के दौरान उन्होंने कैदियों को जीवन में क्रोध पर नियंत्रण और सदाचार का पालन करने के महत्वपूर्ण उपाय बताए. आचार्य अनिरुद्धाचार्य ने निंदा को मनुष्य का सबसे बड़ा अवगुण बताया और कहा कि निंदा से सदैव बचना चाहिए. यह न केवल हमारे आचरण को दूषित करता है, बल्कि हमारे कर्मों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है.

कथा के दौरान आचार्य ने राजा परीक्षित और आचार्य सुखदेव का उल्लेख करते हुए कहा कि मनुष्य का जीवन सात दिवस के समान होता है. इस जीवन को ऐसे समझना चाहिए जैसे पानी का बुलबुला— जो क्षणिक है और इसका सदुपयोग करना चाहिए. उन्होंने बताया कि हमें इस जीवन को सतकर्मों और पुण्य कार्यों में लगाना चाहिए ताकि यह सार्थक हो सके.

परोपकार और सदाचार

आचार्य अनिरुद्धाचार्य ने बताया कि जीवन में परोपकारी होना चाहिए. केवल अपने लिए जीना नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी जीने का महत्व है. उन्होंने एक गीत भी सुनाया "मान मेरा कहना नहीं तो एक दिन पछताएगा, मिट्टी का खिलौना मिट्टी में मिल जाएगा," जिसे सुनकर सभी कैदी और वहां उपस्थित लोग मंत्रमुग्ध हो गए. यह गीत जीवन की नश्वरता और इसके सदुपयोग की शिक्षा देता है.

जीवन में सुख प्राप्त करने के उपाय

आचार्य ने जीवन में सुख प्राप्त करने और दुख से बचने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें बताईं

  • दिमाग को परिवार और संसार के कार्यों में लगाएं, लेकिन दिल सिर्फ भगवान से लगाएं. जब मनुष्य का हृदय भगवान से जुड़ता है तो सच्चा आनंद मिलता है.
  • संतोषी प्रवृत्ति अपनाएं: कहा गया है कि "संतोषी सदा सुखी." संतोषी स्वभाव से मनुष्य जीवन के हर पड़ाव में सुख प्राप्त कर सकता है.
  • जीवन के चार आश्रमों का पालन करें: ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम में नियमों का पालन करते हुए कार्य करें. इससे जीवन को एक व्यवस्थित और सुखमय दिशा मिलती है.
  • परोपकार का महत्व: सिर्फ अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए भी जिएं. परोपकार से आत्मा को शांति मिलती है और यह पुण्य का कार्य है.
  • क्रोध से बचें: क्रोध के कारण जीवन में बहुत सारे अनर्थ होते हैं. गुस्से से केवल दुख ही मिलता है, इसलिए क्रोध पर नियंत्रण रखें.

आचार्य अनिरुद्धाचार्य के इन संदेशों ने कैदियों के जीवन को सकारात्मक दिशा देने का कार्य किया और उन्हें आत्म-सुधार के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया.

अगला लेख