Begin typing your search...

महंगे फोन वालों को महंगा सामान बेचता है Zepto, समझिए क्या है डिवाइस के हिसाब से प्राइस डिस्क्रिमिनेशन

क्या Zepto स्मार्टफोन के आधार पर प्राइस डिस्क्रिमिनेशन कर रहा है? जानिए क्या हैं आरोप और उनके पीछे की सच्चाई

महंगे फोन वालों को महंगा सामान बेचता है Zepto, समझिए क्या है डिवाइस के हिसाब से प्राइस डिस्क्रिमिनेशन
X

आपने कभी सोचा है कि आपके स्मार्टफोन का प्राइस आपके खरीदी जाने वाली चीज़ों की कीमत को इन्फ्लुएंस कर सकता है? हाल ही में ऐसा ही एक विवाद सामने आया है जो Zepto, भारत के फेमस क्विक कॉमर्स ऐप से जुड़ा है. 3 दिसंबर को Reddit पर एक यूजर ने दावा किया कि Zepto अपने ऐप के जरिए महंगे स्मार्टफोन यूज़ करने वालों से ज़्यादा पैसे वसूलता है.

इस यूजर का नाम Scary_Split3157 है और उन्होंने कहा कि अगर आप ₹30,000 या उससे महंगे फोन का इस्तेमाल करते हैं, तो ऐप पर आपको सामान की कीमत ज्यादा दिख सकती है. साथ ही, यूजर ने यह भी आरोप लगाया कि Zepto ऐप में "डार्क पैटर्न्स" का इस्तेमाल करता है, यानी कुछ ऐसे डिज़ाइन और ट्रिक्स, जो आपके पैसे निकालने के लिए बनाए गए होते हैं. तो क्या सच में Zepto अपने ग्राहकों से ज्यादा पैसे लेता है? आइए, जानते हैं.

डिवाइस के हिसाब से प्राइस डिस्क्रिमिनेशन: क्या चल रहा है?

हम सब जानते हैं कि ज्यादातर कंपनियां अपने ग्राहकों का डेटा इकट्ठा करती हैं और उसके आधार पर उनके लिए प्रोडक्ट्स और सर्विस शो करती हैं. यही वो जगह है जहां डिवाइस प्रोफाइलिंग काम आती है. अगर आपका फोन महंगा है, तो कंपनियां मान सकती हैं कि आप ज्यादा खर्च करने के लिए तैयार हैं, और इस हिसाब से प्राइस सेट कर सकती हैं.

ये खास तरीके ई-कॉमर्स और ट्रैवल ऐप्स जैसे Flipkart, Amazon, और MakeMyTrip पर भी देखे जा चुके हैं. इन ऐप्स ने भी कई बार डिवाइस, लोकेशन, और ब्राउज़िंग हिस्ट्री के आधार पर कीमतों में बदलाव किया है.

ऐसी घटनाओं से एक और बात सामने आती है, जो कि Dark Patterns हैं. इन पैटर्न्स का इस्तेमाल कंपनियां अपने ऐप्स में करती हैं ताकि यूज़र्स बिना जाने-समझे ज्यादा पैसे खर्च करें। जैसे की ब्राउज़र हिस्ट्री देखकर और यूज़र के फोन के मॉडल के आधार पर कीमत में फर्क डालना।

डेटा सिक्योरिटी: क्या आपका डेटा सुरक्षित है?

Reddit पोस्ट में एक और गंभीर दावा किया गया, जिसमें कहा गया कि Zepto की डेटा सिक्योरिटी कमजोर है और कंपनी ने कई लीक के बावजूद इसे ठीक करने की कोशिश नहीं की. इसका मुख्य कारण यह बताया गया कि कंपनी को अपने ग्रोथ और निवेशकों के दबाव के चलते ऐसे मुद्दों को नजरअंदाज करना पड़ा.

ऐसा ही कुछ भारत में दूसरी कंपनियों के साथ भी होता है. उदाहरण के तौर पर, बिगबास्केट ने अपनी डेटा लीक की घटना में लाखों यूज़र्स के डेटा को खो दिया था. ऐसे मामलों से यह साफ हो जाता है कि कंपनियों को केवल ग्रोथ ही नहीं, बल्कि अपनी यूज़र डेटा की सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी चाहिए.

ज़ेप्टो और दूसरे ऐप्स: क्या बाकी ऐप्स भी ऐसे ही हैं?

यह सिर्फ Zepto का मामला नहीं है. अन्य ऐप्स पर भी डिवाइस के आधार पर प्राइस डिस्क्रिमिनेशन देखा जा चुका है. जैसे Swiggy और Zomato जैसे फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म्स पर भी कई बार देखा गया है कि ग्राहकों को उनके फोन के मॉडल और लोकेशन के हिसाब से अलग-अलग चार्जेज दिए जाते हैं.

तो सवाल ये उठता है कि क्या कंपनियां इस तरह से यूज़र्स के डेटा का इस्तेमाल कर रही हैं ताकि ज्यादा पैसा वसूला जा सके?

क्या किया जा सकता है?

अगर आप भी इससे प्रभावित हुए हैं, तो सबसे पहले तो आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आप ऐप्स में अपनी ब्राउज़िंग हिस्ट्री और डेटा को सही से मैनेज करें. ब्राउज़िंग डेटा क्लियर करने से कुछ हद तक फर्क पड़ सकता है.

इसके अलावा, सरकार और नियामक संस्थाओं को इस तरह के प्रैक्टिसेस पर कड़ी नजर रखनी चाहिए ताकि यूज़र के अधिकारों की सुरक्षा की जा सके।

Zepto पर लगे आरोपों ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है कि क्या ऐप्स और प्लेटफॉर्म्स डिवाइस के आधार पर अपनी कीमतें तय कर रहे हैं और क्या वे डार्क पैटर्न्स का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे मामलों को गंभीरता से लेना होगा, क्योंकि यह सीधे-सीधे ग्राहकों की जेब से जुड़ा मामला है. हमें चाहिए कि हम ऐसी प्रैक्टिसेस के खिलाफ आवाज़ उठाएं और अपनी सुरक्षा के लिए जागरूक रहें.

अगला लेख