क्या अब भारत में बंद हो जाएगा WhatsApp? सुप्रीम कोर्ट ने सुना दिया ये फैसला, जानें डिटेल में
सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी 14 नवंबर को एक जनहित याचिका खारिज कर दी जिसमें WhatsApp को भारत में बैन करने की मांग की गई थी. यानी भारतीय यूजर्स को परेशान होने की जरूरत नहीं है. इस सुप्रीम फैसले के बाद भारत में WhatsApp पहले की तरह काम करता रहेगा.

भारत में WhatsApp पर लगी प्रतिबंध की याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय महत्वपूर्ण है. सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर को एक जनहित याचिका खारिज कर दी, जिसमें मांग की गई थी कि WhatsApp को 2021 के सूचना प्रौद्योगिकी नियमों का पालन नहीं करने के कारण भारत में प्रतिबंधित कर दिया जाए.
यह याचिका एक व्यक्ति द्वारा दाखिल की गई थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि WhatsApp ने सरकार द्वारा निर्धारित नियमों को लागू नहीं किया, जो विशेष रूप से डिजिटल प्लेटफार्मों पर जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करते हैं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया और WhatsApp के खिलाफ किसी भी तरह की रोक लगाने से इनकार कर दिया.
केरल के रहने वाले ओमनाकुट्टन के.जी का कहना था कि 2021 में केरल हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को अपरिपक्क बता कर कर खारिज कर दिया था. उस समय कहा गया था कि IT गाइडलाइंस सरकार ने जारी नहीं किए हैं. अब व्हाट्सएप ने खुद दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर आईटी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड, 2021 को चुनौती दी है. व्हाट्सएप ने कहा है कि वह अपनी प्राइवेसी पॉलिसी के मुताबिक काम करता है.
यह आरोप लगाया गया था कि व्हाट्सएप ने IT नियमों का पालन करने से मना कर दिया क्योंकि उसने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष अपने उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता का उल्लंघन किया था. व्हाट्सएप ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 के नियम 4(2) के तहत उल्लिखित "ट्रेसेबिलिटी" खंड को केएस पुट्टुस्वामी बनाम भारत संघ के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में निहित एक व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन करने के रूप में चुनौती दी थी.
उनका कहना था कि अगर WhatsApp इन नियमों का पालन नहीं कर रहा है, तो उसे भारत में काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस एम एम सुंदरेश और जस्टिस अरविंद कुमार शामिल थे, ने इस याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह कहा कि यह मामला पहले से ही दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित है, और इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देने की आवश्यकता नहीं है.