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ज्योति शर्मा जैसे विद्यार्थियों के ‘सुसाइड’ मामलों में पुलिस-शिक्षण संस्थानों की भूमिका संदिग्ध क्यों! INSIDE STORY

देशभर में उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्र आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. कोटा में चार महीनों में 14 छात्रों ने जान दी, वहीं ग्रेटर नोएडा की शारदा यूनिवर्सिटी और IIT खड़गपुर में भी सुसाइड के मामले सामने आए. सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार और पुलिस पर सख्त रुख अपनाते हुए एफआईआर में देरी और संस्थानों के पक्ष में मिलीभगत पर सवाल उठाए. विशेषज्ञों का कहना है कि भ्रष्टाचार और कमजोर प्रशासन इन मौतों के पीछे मुख्य कारण हैं.

ज्योति शर्मा जैसे विद्यार्थियों के ‘सुसाइड’ मामलों में पुलिस-शिक्षण संस्थानों की भूमिका संदिग्ध क्यों! INSIDE STORY
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संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Published on: 21 July 2025 12:34 PM

राजस्थान में प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करवाने के लिए कभी मशहूर रहा ‘कोटा-शहर’ और वहां के ‘कोचिंग-सेंटर’ आज उभरती प्रतिभाओं की अकाल मौत या कहिए ‘सुसाइड-प्वाइंट’ के नाम से बदनाम हो चुके हैं. इसके अलावा देश के बाकी भी तमाम संस्थानों में युवाओं की हुई ‘आत्म-हत्याओं’ ने देश के तमाम उच्च-शिक्षण-संस्थानों को भी छात्र-छात्राओं के ‘सुसाइड-प्वाइंट’ में तब्दील करने-कराने की नाकाम कोशिशें अक्सर होती रही हैं. शुक्रवार शाम (18 जुलाई 2025) देश की राजधानी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के हाईटेक शहर और एजूकेशन हब के नाम से पहचाने जाने वाले ग्रेटर नोएडा स्थित, शारदा यूनिवर्सिटी के डेंटल मेडिकल कॉलेज की ज्योति शर्मा ने गर्ल्स-हॉस्टल रूप में फांसी लगाकर, सरकारी और निजी शिक्षण संस्थान के विकलांग होते प्रशासनिक तंत्र का मुंह काला कर डाला.

इसी साल 16 फरवरी 2025 को ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी यानी केआईआईटी (Kalinga Institute of Industrial Technology KIIT) के हॉस्टल में एक नेपाली छात्रा ने आत्महत्या करके जीवन लीला समाप्त कर ली. बीटेक थर्ड-ईअर की उस बदकिस्मत नेपाली छात्रा का नाम था प्रकृति लामसाल (Prakriti Lamsal Nepali Student Suicide). मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 23 मई 2025 तक यानी चालू सत्र के 4-5 महीने के अंदर ही, सिर्फ और सिर्फ कोटा (राजस्थान प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कराने वाला एजूकेशन हब) में ही 14 विद्यार्थियों ने आत्महत्या करके अपनी जीवन लीला खतम कर ली. देश के जब प्रमुख उच्च-शिक्षण संस्थान विशेषकर राजस्थान का कोटा शहर और वहां के कोचिंग में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की आत्महत्या के मामले तूफानी गति से बढ़ने लगे. तब देश के सुप्रीम कोर्ट के जेहन में सवाल आया है कि आखिर, यह उच्च शिक्षण संस्थान हैं या फिर होनहार प्रतिभाओं के ‘सुसाइड-प्वाइंट’ (Student Suicide Point)?

4 महीने में 14 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की

जिन उच्च शिक्षण संस्थानों में माता-पिता बड़े अरमानों के साथ अपनी होनहार संतानों के लिए उनका सुनहरा भविष्य बनाने-संवारने की उम्मीदें पालकर भेज रहे थे. वही उच्च-शिक्षण संस्थान और जहां यह शिक्षण संस्थान मौजूद हैं (कोटा विशेषकर) वह शहर आखिर क्यों हमारी प्रतिभाओं के लिए ‘आत्महत्या’ के डरावने घरों में तब्दील होते जा रहा है? यही जान-समझकर देश की होनहार प्रतिभाओं की इन अकाल-मौतों पर विराम लगाने के लिए 23 मई 2025 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान सरकार को आड़े हाथ घेर लिया. सुप्रीम कोर्ट ने समस्या को ‘गंभीर’ मानते हुए सूबे की सल्तनत के मुंह पर एक साथ कई सवाल जड़ डाले.

सुप्रीम कोर्ट ने चाबुक चलाया तो...

सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख को देखकर राज्य सरकार (राजस्थान) पसीने से तर-ब-तर हो गई. क्योंकि हुक्मरान बखूबी जानते हैं कि, सुप्रीम कोर्ट के चाबुक की मार, नेताओं-मंत्रियों और शिक्षण-संस्थान के मालिकों की चमड़ी का रंग किस कदर बदल डालने की कुव्वत रखती है. इन (कोटा राजस्थान) शिक्षण-संस्थानों में पढ़ने गए विद्यार्थियों द्वारा, एक के बाद एक की जा रही आत्महत्या की बात सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की दो सदस्यी खंडपीठ सुन रही थी. जिसके सामने कोटा में मई 2025 तक (साल के 4-5 महीने के भीतर) 14 विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या कर लिए जाने के आंकड़े मौजूद थे.

ताबड़तोड़ स्टूडेंट-सुसाइड कोटा में ही क्यों?

मामले की सुनवाई कर रही पीठ के एक सदस्य न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला ने राजस्थान सरकार के प्रतिनिधि वकील से पूछा, “एक राज्य के तौर पर आप क्या कर रहे हैं? ये बच्चे आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? और वो भी सिर्फ कोटा शहर में ही क्यों? आपने एक राज्य के तौर पर इस पर कभी विचार किया?” सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ जज के एक साथ इतने सवालों से हड़बड़ाए राजस्थान सरकार के वकील का जवाब था, “हमने (राज्य सरकार) आत्महत्या के इन मामलों की जांच के लिए राज्य में विशेष जांच दल यानी एसआईटी का गठन कर दिया है.”

IIT Kharagpur स्टूडेंट सुसाइड मामला

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने ऐसे ही एक मामले में 4 मई 2025 को आईआईटी खड़गपुर के 22 साल के छात्र द्वारा की गई आत्महत्या के मामले की सुनवाई के दौरान, सामने मौजूद संबंधित पुलिस अधिकारी से सवाल किया कि, “छात्र ने जब आत्महत्या 4 मई 2025 को की थी तब फिर, आपको (पुलिस को) एफआईआर दर्ज करने में चार दिन क्यों लगे?” सुप्रीम कोर्ट से सवाल से बेहाल-बदहवास पुलिस अधिकारी ने अपने गले से जिम्मेदारी का फंदा निकालने की कोशिश में जवाब दिया कि, “एफआईआर दर्ज हो चुकी है. मामले की जांच की जा रही है.”

शिक्षण संस्थानों और पुलिस की मिलीभगत!

अतीत से लेकर अब तक अमूमन यह भी देखने में आता रहा है कि ऐसे मामलों में मौके पर पहुंची, स्थानीय पुलिस हमेशा उसी संस्थान के बचाव में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से खड़ी नजर आती है जिस शिक्षण संस्थान के प्रशासन की अकर्मण्यता से पीड़ित होकर विद्यार्थी ने आत्महत्या की होती है. घटनास्थल पर पहुंची ग्रेटर नोएडा पुलिस ने भी शुक्रवार को शारदा मेडिलकल यूनिवर्सिटी के डेंटल कॉलेज में वहां की छात्रा ज्योति शर्मा की आत्महत्या के मामले में जब करने की कोशिश की, तब ज्योति शर्मा के साथी विद्यार्थियों ने ग्रेटर नोएडा पुलिस की मैली मंशा भांप ली. जिसके उपरांत पुलिस की यूनिवर्सिटी प्रशासन के साथ कथित मिलीभगत का आरोप लगाकर छात्रों की भीड़ पुलिस पर ही टूट पड़ी.

शारदा डेंटल कॉलेज छात्रों ने घेरी पुलिस

छात्रों ने मौके पर ही पुलिस और शारदा यूनिवर्सिटी प्रशासन के खिलाफ जुलूस निकाला, धरना दे दिया और यूनिवर्सिटी प्रशासन व ग्रेटर नोएडा प्रशासन के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाना प्रारंभ कर दिया. गुस्साए छात्रों का अचानक रौद्र रूप से अपनी गर्दन फंसती देखकर ग्रेटर नोएडा तुरंत ‘बैकफुट’ आकर नाराज छात्रों को दिखावे के लिए ही सही, मगर उन्हें पुचकारने लगी. ताकि ऐसा न हो कि छात्र पुलिस के साथ ही सीधे टकराव पर उतर आएं. साथी छात्रा ज्योति शर्मा द्वारा आत्महत्या किए जाने से गुस्साए शारदा यूनिवर्सिटी डेंटल कॉलेज के छात्रों का आरोप था कि, पुलिस ने यूनिवर्सिटी प्रशासन के इशारे पर ज्योति शर्मा के हास्टल रूम से बरामद उसके सुसाइड नोट को भी गायब करने की भरसक कोशिश की थी. लेकिन नारेबाजी कर रहे छात्रों की भीड़ का रौद्र रूप देखकर पस्त हुई पुलिस, सुसाइड नोट गायब कर पाने की कोशिश में नाकाम हो गई.

पुलिस क्यों और किसके इशारे पर नाचती है?

ऐसा नहीं है कि दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा (Greater Noida Sharda University) की शारदा यूनिवर्सिटी (Sharda University Jyoti Sharma Suicide) के डेंटल कॉलेज (Sharda Dental College Greater Noida) में छात्रा ज्योति शर्मा (Jyoti Sharma Suicide Case) द्वारा की गई आत्महत्या के मामले मे ही पुलिस ने लीपापोती करके, यूनिवर्सिटी प्रशासन को जाने-अनजाने बचाने की नाकाम कोशिश करने की जुर्रत की हो. और भी तमाम ऐसे ही जिन-जिन शिक्षण संस्थानों में बेबस विद्यार्थियों द्वारा अकाल मौत को गले लगाने की घटनाएं घटित होती रही हैं या होती हैं, वहां की स्थानीय पुलिस भी संस्थान प्रशासन के इशारे पर उसे बचाने की गरज से पीड़ित विद्यार्थी के परिवार की बजाए, कथित रूप से ही सही मगर ताकतवर शिक्षण संस्थान की ही मददगार या हिमायती बनने की जुगत में जुटी रहती है.

सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस यूं ही नहीं हड़काई

अगर यह तथ्य सरासर गलत होता तो शायद 4 मई 2025 को आईआईटी खड़गपुर के छात्र द्वारा की गई आत्महत्या के मामले की एफआईआर स्थानीय थाना पुलिस द्वारा 4 दिन बाद क्यों दर्ज की जाती? ऐसे दुखद घटनाक्रमों में यही सवाल स्थानीय पुलिस की अकर्मण्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की उस पीठ ने भी पुलिस के सामने दागा था, जिस पुलिस ने छात्र की आत्महत्या के चार दिन बाद मुकदमा दर्ज किया था. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जब पुलिस से चार दिन बाद एफआईआर दर्ज करने की वजह पूछी तो, सुप्रीम कोर्ट में मौजूद और हड़बडाए पुलिस अधिकारी के पास कोई संतोषजनक जवाब ही नहीं था. इससे मतलब साफ है कि पुलिस किसी होनहार विद्यार्थी की दुखद मौत से कहीं ज्यादा अहमियत इस बात को कथित रूप से ही सही मगर, देने से नहीं चूकती जिस आरोपी-संदिग्ध शिक्षण संस्थान प्रशासन के खिलाफ ऐसे मामलों में तुरंत मुकदमा दर्ज करके पुलिस को सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए.

जब सुप्रीम कोर्ट में थर्राई चालू-पुर्जा 'पुलिस'

यही तमाम वजहें तो रहीं कि खड़गपुर आईआईटी छात्र आत्महत्या (IIT Kharagpur Student Suicide) कांड में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की पीठ ने साफ साफ कहा, “हम इस मामले में बहुत सख्त रूख अपना सकते थे. हम संबंधित क्षेत्राधिकार वाले पुलिस थाने के प्रभारी पुलिस अधिकारी के खिलाफ अवमानना का मामला भी चला सकते थे.” कोटा (राजस्थान) में छात्रों द्वारा एक के बाद एक सुसाइड की बढ़ती घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जब राज्य को घेरा और सवाल पर सवाल किए, “कोटा में अब तक कितने छात्रों की मौत हुई? यह छात्र क्यों मर रहे हैं?” तो इन सभी सवालों के ठोस जवाब के नाम पर राज्य पुलिस और प्रशासन खाली हाथ सुप्रीम कोर्ट के सामने मुंह लटकाए खड़े थे.

NEET स्टूडेंट सुसाइड केस का मामला

सुप्रीम कोर्ट पीठ ने सुनवाई को दौरान राजस्थान राज्य सरकार के वकील से उस मामले में भी कई सवाल किए, जिसमें NEET की छात्रा ने आत्महत्या कर ली थी. हालांकि वह छात्रा माता-पिता के साथ निजी कमरे में रहकर, कोटा से परीक्षा की तैयारी कर रही थी. राज्य सरकार के जवाब से असंतुष्ट सुप्रीम कोर्ट ने उससे कहा, “आप हमारे फैसले की अवमानना कर रहे हैं. आपने इस मामले में भी मुकदमा दर्ज करने में देर क्यों की? हमारे फैसले के अनुसार संबंधित पुलिस का कर्तव्य था कि वह एफआईआर दर्ज करके छात्रा की आत्महत्या के मामले की जांच करे. संबंधित क्षेत्रीय पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी अपने कर्तव्य के क्रियान्वयन में विफल रहे हैं. उन्होंने इस अदालत के निर्देशों का पालन नहीं किया है.” यह सख्त टिप्पणी करने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने संबंधित थाने के प्रभारी को स्थिति स्पष्ट करने के लिए भी तलब कर लिया.

विद्यार्थी आत्महत्या मामले में पुलिस नंगी हुई!

सोचिए जब सुप्रीम कोर्ट ही शिक्षण संस्थानों में रहकर पढ़ने वाले या शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई करने के लिए कैंपस से बाहर रहकर भी आत्महत्या कर रहे विद्यार्थी की इस तरह की दुखद मौतों को लेकर, पुलिस की घटिया कार्य-प्रणाली से इस कदर नाराज है. तब शुक्रवार शाम को ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा यूनिवर्सिटी के डेंटल कॉलेज की बीडीएस छात्रा, ज्योति शर्मा आत्महत्या कांड में ग्रेटर नोएडा पुलिस की ढिठाई और यूनिवर्सिटी प्रशासन से उसके कथित रूप से मिले होने का आरोप, ज्योति की आत्महत्या के नाराज विद्यार्थी भला झूठा क्यों लगा रहे होंगे?

दूध की धुली तो नहीं ही है पुलिस!

सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त रुख से साफ है कि विद्यार्थियों के आत्महत्या कांडों में कहीं न कहीं पुलिस की भूमिका कुछ तो संदिग्ध हो ही जाती है. जिसका सबसे पहला पायदान होता है घटना में संबंधित स्थानीय थाना पुलिस द्वारा मुकदमा दर्ज करने में जान-बूझकर देरी किया जाना. ऐसा नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे दुखद मामलों में सिर्फ राजस्थान पुलिस और सरकार या फिर खड़गपुर पुलिस को ही आड़े हाथ लिया. तो यह सब खेल सिर्फ इन्हीं जगहों की पुलिस द्वारा किया जाता हो. पुलिस प्रशासन की शिक्षण संस्थान से मिलीभगत के कथित आरोप तो 16 फरवरी 2025 को भुवनेश्वर स्थित कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी (केआईआईटी) के हॉस्टल में, अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेने वाली नेपाली मूल की छात्रा प्रकृति लामसाल की मौत के मामले में भी स्थानीय पुलिस के ऊपर लगे थे. बाद में जब छात्रों ने साथी की मौत के बदले में विरोध प्रदर्शन धरना देना शुरू किया. तब छात्रों पर ही पुलिस ने लाठियां भांजनी शुरू कर दीं थीं.

पुलिस-शिक्षण संस्थानों की मिलीभगत

सुप्रीम कोर्ट तो ऐसे मामलों में पुलिस और शिक्षण संस्थानों की कथित मिली-भगत पर सवालिया निशान लगा ही चुका है. जिसके जवाब में ‘निरुत्तर-पुलिस’ कोर्ट में गर्दन झुकाए खड़ी रही. क्या वास्तव में देश के उच्च-शिक्षण संस्थानों में ज्योति शर्मा जैसे होनहार बच्चों के ऐसे जघन्य आत्महत्या मामलों में दोषी शिक्षण-संस्थान की दोस्ती या सांठगांठ स्थानीय थाना, जिला पुलिस से हो जाती होगी? क्या पुलिस किसी मां-बाप की होनहार संतान द्वारा इस तरह आत्महत्या करके दुनिया से जा चुके विद्यार्थी की दुखद मौत के मामले में भी, आरोपी शिक्षण-संस्थान को बचाने की कल्पना भर से कांपती नहीं होगी? जो पुलिस वाला यह घिनौना कृत्य अंजाम देता होगा क्या उसका पाप उसकी अपनी संतान और आगे आने वाली पीढ़ियों को तबाह नहीं करेगा? स्टेट मिरर हिंदी के इतने एक साथ सवालों का जवाब देते हुए उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक और वर्तमान में नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. विक्रम सिंह जब बोले, तो उन्होंने तो इस घिनौने गठबंधन को ही नंगा कर डाला.

रिश्वतखोरी से पुलिस ही क्यों बाज आ जाए…?

पुलिस महानिदेशक सवालों का जवाब देने से पहले स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से ही सवाल करते हैं, “आपसे यह किसने कहा कि कानून की रखवाली की झंडाबरदारी करने का दम भरने वाली पुलिस आज दूध की धुली बची है. कुछ विभागों को छोड़कर जैसे अन्य विभागों में भ्रष्टाचार अमरवेल की तरह पौंड़ चुका है. उससे कहीं ज्यादा करप्शन तो पुलिस में मौजूद है. फिर पुलिस चाहे उत्तर प्रदेश की हो या तमिलनाडु, महाराष्ट्र दिल्ली की. इससे क्या फर्क पड़ता है. जिस पुलिस अफसर-कारिंदे को जहां कानून को दबाकर, दाम कूटने-कमाने-वसूलने का मौका मिलता है. वे (कुछ को छोड़कर अधिकांश पुलिस वाले) ऐसा कोई सुनहरा मौका अपने हाथ से खाली नहीं जाने देते हैं.

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह बोले

भले ही लाशों से होने वाली इस हराम की कमाई से उनकी (तमाम भ्रष्ट रिश्वतखोर पुलिस अफसर-कर्मचारी, कुछ को छोड़कर) आने वाली पीढ़ियां तबाह-बर्बाद ही क्यों न हो जाएं. मैं यहां नाम खोलकर नंगा नहीं करना चाहता हूं, वरना करीब 35-36 साल आईपीएस पुलिस की नौकरी में मैने अपनी आंखों से ऐसे कई पुलिस अफसर-पुलिस कर्मचारी देखे हैं जिन्होंने मौका मिलने पर दबाकर अंधाधुंध हराम की कमाई से अपने घर-जेब-खजाने भरे. आज उनकी देहरियों पर शायद ही ‘दीया’ जलाने वाला कोई बचा हो. जो बचे भी होंगे उनमें से कई तो अंधे-बहरे-गूंगे-लूले-लंगड़े हुए पड़े होंगे. इतना मुझे विश्वास है. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हर पुलिस अफसर-कर्मचारी भ्रष्टाचार की ही कमाई करता-खाता है. अच्छे बुरे लोग तो समाज का हर जगह हिस्सा हैं. यह तो कलियुग है. जिसमें पुण्य पर हमेशा पाप ही सवारी करेगा. त्रेता, सतयुग, द्वापर युग भी हां, ऐसे लोगों की पुलिस महकमे में मगर बहुतायत है. यह मैं दावे के साथ कह सकता हूं.”

माता-पिता हार-थक कर बैठ जाएंगे

विद्यार्थियों द्वारा की जा रही 'आत्म-हत्याओं' के ऐसे संवेदनशील मामलों में घटनास्थल की जांच को पहुंची लोकल थाना पुलिस, किस तरह और क्यों शिक्षण-संस्थान से सांठगांठ कर सकती है? पूछने पर 1974 बैच के पूर्व आईपीएस और उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह बोले, “शिक्षण संस्थान को पता होता है कि ऐसी घटनाओं में ही पुलिस उसे कानूनी तौर पर घेर सकती है. जबकि जिस मां बाप का बच्चा सुसाइड करके दुनिया से जा चुका होता है. वे तो बच्चे की अकाल मौत से पहले ही टूट चुके होते हैं. मां-बाप कुछ दिन इधर उधर न्याय पाने के लिए धक्के खाने का बाद हार-थककर खामोश होकर घर में बैठ जाएंगे.

पुलिस को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी!

ऐसे में पुलिस को आरोपी शिक्षण संस्थान का घटिया प्रबंधन ही कमजोर कड़ी या कहूं कि, सोने का अंडा देने वाली मुर्गी दिखाई देता है. बस फिर क्या है जो मर गया सो मर गया. पुलिस की नजर में मरने वाला तो लौट कर आना नहीं है. ऐसे में कटघरे में खड़ा शिक्षण संस्थान का प्रबंध तंत्र ही आर्थिक रूप से 'दूह' लेने को पुलिस के सामने खुद ही सरेंडर की मुद्रा में खड़ा कर देता है. तब फिर ऐसे में सोचिए भला पुलिस को काली-कमाई करने के लिए कौन सी खास कसरत करनी है? जब कोई खुद ही पैसा दे रहा है तो पुलिस भी ऐसे मामलों में घटनास्थल पर पहुंचकर अपने साथी की मौत के विरोध में प्रबंधन के खिलाफ चीख-चिल्ला रहे विद्यार्थियों के झुंड को ही तो हड़काएगी.

तभी तो शिक्षण संस्थान को पुलिस ‘दोस्त’ लगेगी

तभी तो पुलिस की पावर का अहसास प्रबंधन को होगा. तभी तो पुलिस वालों की कमाई होगी. हालांकि जहां तक सवाल शारदा यूनिवर्सिटी के डेंटल कॉलेज में ज्योति शर्मा की संदिग्ध आत्महत्या का मामला है. इसमें मैं अभी खुलकर कुछ नहीं कह सकता हूं. क्योंकि आरोपी दोनों शिक्षक गिरफ्तार हो चुके हैं. इस मामले में पुलिस और यूनिवर्सिटी प्रबंधन तब संदिग्ध साबित होगा, जब ज्योति शर्मा आत्महत्या कांड में आरोपी-गिरफ्तार शिक्षकों को विवि द्वारा बर्खास्त नहीं किया जाएगा. और आने वाले वक्त में वे दोनों ढीली पुलिसिया जांच के चलते कोर्ट से भी बा-इज्जत बरी कर दिए जाएंगे. तब समझिए कि पुलिस और यूनिवर्सिटी या डेंटल कॉलेज प्रशासन की सांठगांठ हो चुकी होगी!”

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