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लिपुलेख दर्रा बार-बार क्यों बनता है भारत-नेपाल के बीच विवाद की वजह? हिस्ट्री से लेकर भूगोल तक जान लीजिए

लिपुलेख दर्रा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है और भारत के लिए रणनीतिक, धार्मिक और आर्थिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है. नेपाल के दावों के बावजूद भारत ने इस इलाके पर अपना नियंत्रण बरकरार रखा है. यह दर्रा कैलाश-मानसरोवर यात्रा और भारत-चीन व्यापार के लिए भी अहम मार्ग है.

लिपुलेख दर्रा बार-बार क्यों बनता है भारत-नेपाल के बीच विवाद की वजह? हिस्ट्री से लेकर भूगोल तक जान लीजिए
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( Image Source:  maps )
नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Published on: 21 Aug 2025 2:53 PM

भारत ने साफ कर दिया है कि नेपाल का लिपुलेख दर्रे पर दावा न तो इतिहास पर आधारित है और न ही किसी ठोस साक्ष्य पर. विदेश मंत्रालय ने नेपाल के इस दावे को एकतरफा और कृत्रिम बताया है. भारत का कहना है कि यह दर्रा प्राचीन काल से भारत और तिब्बत के बीच धार्मिक यात्राओं व व्यापार का अहम मार्ग रहा है और आज भी इसका वही महत्व है.

नेपाल लगातार यह दावा करता आया है कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा उसके अभिन्न हिस्से हैं. 2020 में नेपाल ने नया मानचित्र जारी कर इन्हें अपनी सीमा में शामिल कर दिया था. लेकिन भारत का कहना है कि यह दावा अचानक राजनीतिक कारणों से उठाया गया है, जबकि दशकों तक नेपाल ने इस पर आपत्ति नहीं जताई थी.

क्या नेपाल का दावा इतिहास पर खरा उतरता है?

नेपाल का कहना है कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा उसके क्षेत्र का हिस्सा हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर यह इलाका हमेशा नेपाल का था तो उसने 2020 से पहले अपने आधिकारिक नक्शे में इन क्षेत्रों को क्यों नहीं दिखाया? भारत का तर्क है कि नेपाल का दावा अचानक राजनीतिक कारणों से किया गया है और यह पूरी तरह से कृत्रिम है. दशकों से प्रशासनिक और भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र भारत के नियंत्रण में रहा है.

लिपुलेख दर्रा कहां है?

लिपुलेख दर्रा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में, समुद्र तल से करीब 5,000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है. यह भारत, नेपाल और चीन (तिब्बत) की सीमाओं के संगम पर स्थित है. प्राचीन काल से यह दर्रा भारत और तिब्बत के बीच व्यापार का मार्ग रहा है. आज भी इसका महत्व इसलिए है क्योंकि यहीं से कैलाश-मानसरोवर यात्रा होती है और भारत-चीन के बीच व्यापार के लिए यह एक रणनीतिक रास्ता है.

क्या है सीमा विवाद?

भारत और नेपाल के बीच लगभग 1,800 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है. इस पूरे बॉर्डर पर दोनों देशों के बीच केवल लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को लेकर विवाद है. नेपाल दावा करता है कि ये इलाके उसके हैं, जबकि भारत इन्हें अपना मानता है और दशकों से वहां सड़क, सेना और प्रशासनिक गतिविधियाँ संचालित करता रहा है. यही सीमा विवाद समय-समय पर दोनों देशों के रिश्तों में तनाव पैदा करता है.

लिपुलेख विवाद की क्या है जड़?

इस विवाद की जड़ 1816 की सुगौली संधि में छिपी है. नेपाल का कहना है कि महाकाली नदी का उद्गम लिम्पियाधुरा से होता है, और इस आधार पर लिपुलेख व कालापानी उसका हिस्सा हैं. जबकि भारत का तर्क है कि असली उद्गम कालापानी से है और प्रशासनिक नियंत्रण भी सदियों से भारत के पास रहा है. नेपाल ने 2020 में नया नक्शा जारी कर इन इलाकों को अपने हिस्से में दिखाया, जिससे विवाद और गहरा गया.

भारत के लिए लिपुलेख है कितना जरूरी?

लिपुलेख दर्रा भारत के लिए केवल एक सीमावर्ती इलाका नहीं, बल्कि सामरिक और धार्मिक दृष्टि से बेहद अहम है. यह दर्रा भारतीय सेना को चीन सीमा तक तेज़ और सुरक्षित पहुंच प्रदान करता है. साथ ही, यहीं से कैलाश-मानसरोवर यात्रा का प्रमुख मार्ग गुजरता है, जिससे हजारों श्रद्धालु हर साल गुजरते हैं. सुरक्षा, व्यापार और आस्था- तीनों ही कारण इसे भारत के लिए अनिवार्य बनाते हैं. यह दर्रा समुद्र तल से 5,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और भारत, नेपाल और चीन की सीमाओं के संगम पर है. अगर यह क्षेत्र नेपाल के दावे के मुताबिक उसकी सीमा में चला जाए तो भारत की सुरक्षा और सामरिक स्थिति प्रभावित होगी. यही वजह है कि भारत इसे केवल सीमा विवाद नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न मानता है.

धार्मिक महत्व को नज़रअंदाज किया जा सकता है?

लिपुलेख दर्रे से होकर कैलाश मानसरोवर यात्रा होती है. हजारों श्रद्धालु हर साल इस मार्ग से यात्रा करते हैं. भारत ने हाल के वर्षों में सड़क निर्माण कर यात्रा को और आसान बना दिया है. नेपाल इसे अपनी संप्रभुता पर हमला मानता है. लेकिन सवाल यह है कि क्या नेपाल का दावा इस धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को छीन सकता है, जब सदियों से यह रास्ता भारतीय श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा रहा है?

क्या नेपाल का कदम चीन के दबाव में है?

विशेषज्ञ मानते हैं कि नेपाल ने 2020 में जो नया मानचित्र जारी किया, वह उसके आंतरिक राजनीतिक असंतुलन और चीन के बढ़ते प्रभाव का नतीजा था. चीन तिब्बत के पुरंग व्यापार केंद्र को भारत से जोड़ने में दिलचस्पी रखता है. क्या नेपाल वास्तव में अपनी स्वतंत्र नीति पर चल रहा है या फिर वह चीन के दबाव में भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है?

क्या बातचीत से समाधान निकल सकता है?

भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक रिश्ते गहरे हैं. दोनों देशों के बीच खुले बॉर्डर की व्यवस्था है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सीमा विवाद को संवाद और आपसी समझ से सुलझाया जा सकता है? भारत ने हमेशा कहा है कि वह कूटनीतिक बातचीत के लिए तैयार है. नेपाल भी कहता है कि समाधान संवाद से ही होगा. लेकिन क्या राजनीतिक दबाव और बाहरी प्रभाव इस संवाद की राह में बाधा नहीं डाल रहे?

क्या नेपाल का नया नक्शा टिक पाएगा?

नेपाल ने संविधान संशोधन कर अपने नए नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को शामिल कर लिया. लेकिन क्या केवल नक्शा बदल देने से वास्तविकता बदल जाती है? जमीन पर प्रशासनिक नियंत्रण हमेशा भारत का रहा है. यहां भारतीय सड़के, सुरक्षाबल और प्रशासन मौजूद हैं. क्या केवल राजनीतिक लाभ के लिए बनाया गया नक्शा आने वाले समय में टिक पाएगा या यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक कदम रह जाएगा?

क्या जनता का गुस्सा रिश्तों पर असर डालेगा?

नेपाल की जनता इस मुद्दे पर भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई है और कई बार भारत विरोधी प्रदर्शन करती रही है. वहीं भारत में भी इस दावे को लेकर नाराज़गी है. सवाल यह है कि क्या ये भावनाएँ दोनों देशों के रिश्तों को स्थायी रूप से चोट पहुँचाएँगी या फिर पुरानी सांस्कृतिक और पारिवारिक नज़दीकियाँ इस विवाद को पिघला देंगी?

नतीजा क्या निकलता दिख रहा है?

साफ है कि लिपुलेख विवाद केवल नक्शे की एक रेखा का मामला नहीं है. इसमें इतिहास, राजनीति, रणनीति और बाहरी प्रभाव सब जुड़े हुए हैं. भारत का दावा ठोस साक्ष्यों और प्रशासनिक नियंत्रण पर आधारित है, जबकि नेपाल का दावा अचानक और कृत्रिम माना जा रहा है. अब देखना यह है कि आने वाले समय में बातचीत इस विवाद को सुलझा पाएगी या फिर यह दोनों देशों के बीच तनाव का स्थायी कारण बन जाएगा.

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