क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991? अजमेर दरगाह मामले के बाद फिर हो रही चर्चा
चिश्ती की दरगाह में शिव मंदिर है. कोर्ट इस मामले की सुनवाई 20 दिसंबर को करेगा. अब मस्जिद में मंदिर के दावे को लेकर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी का गुस्सा फूटा है. उन्होंने कहा कि ये अदालतों का कानूनी फर्ज है के वो 1991 एक्ट को अमल में लाए. बता दें कि इस एक्ट को वर्ष 1991 में लागू किया गया था.

Places of Worship Act 1991: देश में इन दिनों उत्तर प्रदेश के संभल में शाही मस्जिद को लेकर बवाल जारी है. दूसरी ओर राजस्थान के अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर नया हंगामा खड़ा हो गया है.
ऐसा दावा किया जा रहा है कि चिश्ती की दरगाह में शिव मंदिर है. कोर्ट इस मामले की सुनवाई 20 दिसंबर को करेगा. अब मस्जिद में मंदिर के दावे को लेकर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी का गुस्सा फूटा है. उन्होंने कहा कि ये अदालतों का कानूनी फर्ज है के वो 1991 एक्ट को अमल में लाए. बहुत ही अफसोस की बात है कि ये हिंदुत्व तंजीमों का एजेंडा पूरा करने के लिए और संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और नरेंद्र मोदी चुप चाप देख रहे हैं.
बता दें कि जब भी कोई मस्जिद विवाद सामने आता है औवेसी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की बात करने लग जाते हैं. इस बार भी उन्होंने इस एक्ट का नाम लिया और यह चर्चा में आ गया. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये एक्ट क्या है और कब लागू हुआ? आज हम इसके बारे में आपको बताएंगे.
एक्स पोस्ट में कही ये बात
असदुद्दीन ओवैसी ने एक्स पोस्ट में कहा कि सुल्तान-ए-हिन्द ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (RA) भारत के मुसलमानों के सबसे अहम औलिया इकराम में से एक हैं. उनके आस्तान पर सदियों से लोग जा रहे हैं और जाते रहेंगे इंशाअल्लाह. कई राजा, महाराजा, शहंशाह, आए और चले गये, लेकिन ख़्वाजा अजमेरी का आस्तान आज भी आबाद है. उन्होंने कहा कि 1991 का इबादतगाहों का कानून साफ-साफ कहता है कि किसी के इबादतगाह की मजहबी पहचान को बदला नहीं जा सकता है, ना ही कोर्ट में इन मामलों की सुनवाई होगी.
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को वर्ष 1991 में लागू किया गया था. इसके तहत 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के स्थल में नहीं बदला जा सकता है. अगर कोई ऐसा करता है तो यह एक्ट का उल्लंघ होगा. कानून के तहत उसे जुर्माना और 3 साल तक की जेल भी हो सकती है. आपको बता दें कि इस कानून को कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार लेकर आई थी. तब से समय यह बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था.
कानून के पीछे का मकसद
देश में जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था तब इस कानून को बनाया गया था. इस आंदोलन का असर देश के अन्य मंदिरों और मस्जिदों पर भी देखने को मिला. फिर अयोध्या के अलावा भी कई विवाद सामने आने लगे. फिर विवाद को विराम लगाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लागू किया था.
क्या कहती हैं प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की धाराएं?
धारा-2 : इसके तहत 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में अगर कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा.
धारा-3 : किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है.
धारा-4 (1): इसके तहत 15 अगस्त 1947 को एक पूजा स्थल को वैसा ही रखा जाएगा जैसा वो पहले था. उसमें कोई बदलाव नहीं होगा.
धारा-4 (2): यह उन मुकदमों और कानूनी कार्यवाहियों को रोकने की बात करता है जो एक्ट के लागू होने की तारीख पर पेंडिंग थे.
धारा-5: यह एक्ट रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे जुड़े किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं करेगा.