पहली बार अब पानी से चलेगी ट्रेन! Ready है Indian Railway; रफ्तार 140 किलोमीटर प्रति घंटा
भारतीय रेलवे ने 2024 के अंत तक या 2025 की शुरुआत तक हाइड्रोजन गैस पर चलने वाली ट्रेन चलाने की तैयारी कर ली है. उम्मीद है कि इस साल के अंत तक इसकी टेस्टिंग भी शुरू हो जाएगी. भारतीय रेलवे ने साल 2030 तक खुद को 'नेट जीरो कार्बन एमिटर' बनाने का लक्ष्य रखा है.

भारतीय रेलवे पिछले कुछ सालों से कई तरह के बदलावों से गुजर रही है. एक ओर जहां वर्ल्ड क्लास स्टेशन बन रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर वंदे भारत जैसी शानदार ट्रेनें भी पटरी पर दौड़ रही हैं. इसी कड़ी में अब रेलवे का अगला कदम हाइड्रोजन ट्रेन चलाने का है. भारतीय रेलवे ने 2024 के अंत तक या 2025 की शुरुआत तक हाइड्रोजन गैस पर चलने वाली ट्रेन चलाने की तैयारी कर ली है. उम्मीद है कि इस साल के अंत तक इसकी टेस्टिंग भी शुरू हो जाएगी. भारतीय रेलवे ने साल 2030 तक खुद को 'नेट जीरो कार्बन एमिटर' बनाने का लक्ष्य रखा है.
पहली हाइड्रोजन ट्रेन अगले साल यानी 2024-25 में शुरू हो सकती है. रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार भारत की पहली हाइड्रोजन ट्रेन उत्तरी रेलवे के दिल्ली डिवीजन में चलेगी. ये 89 किलोमीटर लंबे जींद-सोनीपत रूट पर चलेगी. दिसंबर में इस ट्रेन का ट्रायल रन शुरू हो सकता है. रेलवे के इस प्रोजेक्ट का नाम हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत से पहले भी कुछ अन्य देश अपने यहां हाइड्रोजन ट्रेनों का संचालन कर रहे हैं. इस खबर के माध्यम से हम आपको यह जानकारी दे रहे हैं कि हाइड्रोजन गैस पर चलने वाली ट्रेन का शुरुआत कहां हुई और ये कैसे काम करती है?
जर्मनी में हुई ट्रेन की शुरुआत
विश्व में सबसे पहले हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन की शुरुआत अगस्त 2022 में जर्मनी के लोअर सैक्सोनी में की गई. जर्मनी ने 14 हाइड्रोजन ट्रेनों का बेड़ा लॉन्च किया था. इसे लगभग चार साल तक टेस्ट किया गया था. इसकी शुरुआत के समय लोअर सैक्सोनी के मंत्री स्टीफन वेइल ने कहा था कि ''यह परियोजना दुनिया भर में एक रोल मॉडल है और हम इसे ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में मील का पत्थर साबित करना चाह रहे हैं.'' इस पूरी परियोजना की कुल लागत लगभग 93 मिलियन यूरो यानी 848 करोड़ रुपये थी.
हर घंटे 40 हजार लीटर पानी की होगी जरूरत
देश की पहली हाइड्रोजन ट्रेन 140 किमी की रफ्तार से ट्रैक पर दौड़ती दिखने वाली है. इसके लिए ट्रेन को हर घंटे 40 हजार लीटर पानी की जरूरत होगी. 1 किलो हाइड्रोजन पर 4.5 लीटर डीजल के बराबर माइलेज मिलेगा. इस ट्रेन में 8-10 डिब्बे होंगे. 3,000 किलो हाइड्रोजन स्टोर के लिए जींद रेलवे स्टेशन पर प्लांट भी बनाया जा रहा है. उम्मीद है कि मार्च 2025 में पूरी तरीके से सुचारु रूप से चलाया जा सकेगा. इसके डिब्बे चेन्नई की इंट्रीगल कोच फैक्ट्री में बन रहे हैं.
क्या है हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज प्रोजेक्ट?
- भारतीय रेलवे ने इस प्रोजेक्ट को 'हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज' नाम दिया है.
- यह प्रोजेक्ट रेलवे के उस बड़े प्लान का हिस्सा है, जिसके तहत वह हेरिटेज और पहाड़ी रास्तों पर 35 हाइड्रोजन ट्रेनें चलाना चाहता है.
- हाइड्रोजन ट्रेन से प्रदूषण नहीं होता है. रेलवे 2030 तक खुद को 'नेट ज़ीरो कार्बन एमिटर' बनाना चाहता है, इससे रेलवे के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी.
- रेलवे ने इस साल के बजट में 35 हाइड्रोजन ट्रेनों के लिए 2800 करोड़ रुपये रखे हैं. साथ ही, इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 600 करोड़ रुपये अलग से दिए गए हैं.
कितनी तेज चल सकती है हाइड्रोजन ट्रेन?
हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनें 140 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से चल सकती है. एक बार ईंधन भरने पर 1000 किमी तक की दूरी तय कर सकती है, जो बैटरी से चलने वाली इलेक्ट्रिक ट्रेनों से दस गुना ज़्यादा है. ट्रेन में ईंधन भरने में भी 20 मिनट से कम समय लगता है. स्विस ट्रेन निर्माता स्टैडलर द्वारा निर्मित फ्लर्ट एच 2 मॉडल की स्पीड 160 किमी प्रति घंटा है.
क्या सुरक्षित है ये ट्रेन?
एक्सपर्ट का कहना है कि हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन, बैटरी, डीजल या बिजली से चलने वाली ट्रेन से ज्यादा सुरक्षित है। हाइड्रोजन को ज्वलशील माना जाता है इस वजह ये सवाल उठता है. अगर कहीं से लीक भी होता है तो हवा से हल्का होने की वजह से ये वायुमंडल में चला जायेगा, जिसकी वजह से खतरा कम होगा.
हाइड्रोजन ईंधन कैसे करता है काम?
हाइड्रोजन ऑक्सीजन के साथ मिलकर सेल में ईंधन के रूप में कार्य करता है, जिससे विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती है. ब्रह्मांड में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला तत्व हाइड्रोजन है. इसे समुद्री जल से भी अलग किया जा सकता है. इस टेक्नोलॉजी से पता चलता है कि हाइड्रोजन पर्यावरण के लिए कितना सही है. ईंधन सेल हाइड्रोजन के भीतर रासायनिक ऊर्जा को बिजली में बदलते हैं, साथ ही पानी और गर्मी भी बनाते हैं. यह इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया का विपरीत है जिसका उपयोग हाइड्रोजन ईंधन बनाने के लिए किया जा सकता है.
हाइड्रोजन ही क्यों है विकल्प?
रेल ईंधन के रूप में ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग कई तरह से लाभ दे सकता है. इसमें जीरो कार्बन एमिशन और फॉसिल फ्यूल की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली और बढ़िया ऊर्जा उत्पादन शामिल है. हाइड्रोजन को ट्रेनों में ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है और उन रेल लाइनों पर भी इसका उपयोग किया जा सकता है. इससे ग्रामीण रेल सेवाओं को फायदा मिलेगा जो अभी तक डीजल या बिजली पर निर्भर करता है. हालांकि रेल कंपनी बैटरी पावर पर भी विचार कर रही है, लेकिन वे फिलहाल ट्रेन चलाने के लिए ठीक ढंग से ऊर्जा स्टोर का पर्याप्त सोर्स नहीं है.
गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में मिली जगह
अमेरिका के कोलोराडो में एक हाइड्रोजन ट्रेन ने बिना ईंधन भरे 1,741 मील (2,803 किमी) की यात्रा की. ये स्विस ट्रेन निर्माता स्टैडलर द्वारा निर्मित फ्लर्ट एच 2 मॉडल है. इसे गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स डेटाबेस में जगह मिली है. बता दें, 2022 में जर्मनी में सामान्य परिचालन के दौरान बिना ईंधन भरे 1175 किमी की यात्रा की थी।
चीन ने भी किया परीक्षण
चीन की सरकारी रेलगाड़ी निर्माता कंपनी सीआरआरसी ने मार्च 2024 में ही हाइड्रोजन ईंधन सेल से चलने वाली देश की पहली यात्री रेलगाड़ी का परीक्षण पूरा कर लिया है। सीआरआरसी का दावा है कि एनर्जी इफिसिएंसी के मामले में उसकी ट्रेन विश्व में सबसे आगे है. रिपोर्ट से पता चला है कि इसकी औसत ऊर्जा खपत 5 किलोवाट घंटा/किमी है.