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आज से नहीं वर्षों से हो रहा हिंदी भाषा का विरोध! अन्नादुरई के बाद चर्चा में स्टालिन क्यों?

तमिलनाडु में हिन्दी भाषा को लेकर एक बार फिर से विरोध जारी है. केंद्र और तमिलनाडु सरकार आमने-सामने है. CM स्टालिन का आरोप है कि जबरन हिन्दी भाषा को थोपा जा रहा है. हालांकि शिक्षा मंत्री ने इस आरोपों को खारिज कर दिया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जो आज भाषा को लेकर विरोध जारी है वो कई सालों पुराना है.

आज से नहीं वर्षों से हो रहा हिंदी भाषा का विरोध! अन्नादुरई के बाद चर्चा में स्टालिन क्यों?
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( Image Source:  ANI )
सार्थक अरोड़ा
Edited By: सार्थक अरोड़ा

Published on: 5 March 2025 10:39 PM

तमिलनाडु सरकार और केंद्र आमने सामने है. दोनों सरकारों के बीच भाषा को लेकर छिड़ा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. CM एम. के स्टालिन का आरोप है जबरन हिंदी भाषा को थोपा जा रहा है. उनका कहना है कि तमिलनाडू में उनकी सरकार त्रिभाषा फॉर्मूला यानी तीन भाषा के फॉर्मूले पर नहीं बल्कि दो भाषा का ही पालन करेंगे. उनका कहना है कि तमिलनाडु 1968 से ही इस नीति का पालन कर रहा है.

पहली बार नहीं हुआ ऐसा विवाद

तमिलनाडु में जारी हिंदी भाषा को लेकर विरोध की स्थिती पहली बार नहीं हुई है. इससे पहले भी हिन्दी भाषा को लेकर विरोध हो चुका है. यह उस समय की बात है जब तमिलनाडु मद्रास प्रेसिडेंसी हुआ करता था. उस दौरान राजगोपालाचारी के नेतृत्व वाली सरकार थी. उस समय भी सेकेंडरी स्कूलों में हिन्दी को जरूरी करने का फरमान जारी किया था. अब जहां पक्ष है वहां विपक्ष भी होगा. इस तरह दो पक्षों के सहमत न होने पर विरोध हुआ था.उस समय यह विरोध जताया गया द्रविड़ कषगण की ओर से उस समय इस पार्टी को जस्टिस पार्टी के नाम से भी जाना जाता था. यह विरोध इतना बढ़ा था कि दो युवकों की जान तक चली गई थी. जब ये दंगे भड़के थे उस दौरान के मुख्यमंत्री राजगोपालाचारी को यह फैसला वापस लेना पड़ा था. इस तरह साल 1940, 1960 में विरोध चलता रहा. ऐसे विरोध में अब तक 70 लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं.

तमिल की इस पुस्तक में हो चुका जिक्र

तमिल की एक किताब 'एक महान तमिल स्वप्न' में इस आंदोलन और विरोध का जिक्र किया जा चुका है. किताब में लिखी गई जानकारी के अनुसार जब अन्नादुरई जो इस आंदोलन को का आगे नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने भाषा को लेकर भाषण दिया और कहा कि 'अगर हिन्दी आम भाषा क्योंकि यह देश में कई लोगों द्वारा बोली जाती है तो फिर हम चूहे की बजाय बाघ को क्यों राष्ट्रीय पशु मानते हैं. देखा जाए तो चूहों की संख्या अधिक है. आपको बता दें कि यह उस समय की बात है जब अन्नादुरई हिंदी भाषा को लेकर विरोध करते थे तो उन्हें सुनने के लिए कई लोग एकत्र होते थे.

तमिल सिनेमा का किया इस्तेमाल

अन्नादुरई एक ऐसे नेता जिन्होंने तमिल सिनेमा का इस्तेमाल अपने राजनीतिक प्रचार-प्रसार के लिए किया था. अब क्योंकि यह विरोध काफी सालों पुराना है और काफी समय से चलता आ रहा है, तो इसके कई विरोधी भी है और पक्षधर भी हैं. इसमें पूर्व सीएम करुणानिधि भी शामिल हैं. जिन्होंने एक समय इस विरोध को आगे बढ़ाया है. हालांकि एक समय ऐसा था जब विरोध की आग शांत हुई वो समय था जब 1967 में राजभाषा अधिनियम में बदलाव हुआ. लेकिन अब एक बार फिर से इस विरोध को धार मिली है.

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