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क्या शरद पवार अपनी पार्टी को गड्ढे से निकाल पाएंगे? नगर निगम चुनाव समेत सामने है ये बड़ी चुनौतियां

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे शरद पवार के उम्मीद के बिल्कुल विपरीत रहे. उनकी पार्टी को महज 10 सीटों पर ही जीत मिल सकी. ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या शरद पवार अपनी पार्टी को फिर से मजबूर कर पाएंगे. आइए जानते हैं...

क्या शरद पवार अपनी पार्टी को गड्ढे से निकाल पाएंगे? नगर निगम चुनाव समेत सामने है ये बड़ी चुनौतियां
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( Image Source:  ANI )

Sharad Pawar NCP (SCP) : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे ने शरद पवार और उनकी पार्टी के भविष्य को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं. एनसीपी (एससीपी) ने 87 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से उसे महज 10 सीटों पर ही जीत मिल सकी. यह छह प्रमुख दलों में सबसे कम हैं. इससे पहले, लोकसभा चुनाव में शरद पवार की पार्टी ने 10 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से उसे 8 सीटों पर जीत मिली थी. यह एनसीपी में विभाजन के बाद पहला विधानसभा चुनाव था.

भारतीय राजनीति के महारथी शरद पवार को अब भतीजे अजित पवार ने सीधे तौर पर मात दे दी है. पहले उन्होंने अपने अधिकांश विधायक और सांसद अजित के हाथों खो दिए, फिर पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह के बाद अब जनता का समर्थन भी खो दिया है. महायुति के स्पष्ट बहुमत को देखते हुए, एनसीपी (एससीपी) को खुद को साबित करने के लिए अब अगला मौका पांच सालों में केवल एक बार मिलेगा, वह है-नगर निकाय चुनाव, जो कुछ ही समय बाद होने वाले हैं. बता दें कि 2014 से 2018 के बीच 27 नगर निगमों के लिए हुए चुनावों में अविभाजित एनसीपी को 6.95% वोट मिले थे. वहीं, अर्ध-शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों में पार्टी का वोट शेयर क्रमशः 15% और 21% था.


अपने राजनीतिक गुरु की समाधि पर पहुंचे शरद पवार

विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के एक दिन बाद शरद पवार कराड में अपने राजनीतिक गुरु पूर्व मुख्यमंत्री वाईबी चव्हाण की समाधि पर पहुंचे. इस दौरान उन्होंने कहा- मैं खाली नहीं बैठूंगा. लोगों से मिलना और उनके मुद्दों को हल करना जारी रखूंगा. मेरी रणनीति में एक नई पीढ़ी को तैयार करना शामिल होगा, जो मेरी विचारधारा में विश्वास करती है.

नेतृत्व करना जारी रखेंगे शरद पवार

पवार के एक करीबी सहयोगी और एनसीपी (एससीपी) महासचिव जयदेव गायकवाड़ ने माना कि पार्टी को निकट भविष्य के साथ-साथ आगे के लिए भी रोडमैप की जरूरत है. हालांकि, उन्होंने विधानसभा चुनाव में मिली हार को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया और कहा कि पार्टी लड़ाई जारी रखेगी. गायकवाड़ ने कहा कि एनसीपी (एसपी) और पवार के भविष्य के बारे में कोई भी कुछ भी कह सकता है. वह बहुत स्पष्ट हैं कि वह अपनी विचारधारा के लिए संघर्ष का नेतृत्व करना जारी रखेंगे. एनसीपी (एसपी) के अनुसार, यह धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समानता की विचारधारा है, जिसे छत्रपति शाहू, महात्मा फुले और बाबासाहेब अंबेडकर ने अपनाया था और यह भाजपा के हिंदुत्व के विपरीत है.

शरद पवार अब क्या करेंगे?

राजनीति जानकारों का मानना है कि शरद पवार की बढ़ती उम्र के कारण अगले आम चुनावों में उनके सक्रिय होने की संभावना नहीं है. ऐसे में वे सबसे पहले अपने पास बचे 10 विधायकों और आठ सांसदों को साथ लाने पर ध्यान केंद्रित करेंगे. इसके अलावा, वे चुनाव में हारे हुए पार्टी नेताओं को भी साथ लेकर चलेंगे. जब तक उनके पास यह संख्याबल है, तब तक महाराष्ट्र और देश की राजनीति में उनकी अहमियत खत्म नहीं हुई है.

मजबूत उम्मीदवारों की कमी बनी वजह

एनसीपी (एसपी) के मुताबिक, पार्टी नए नेताओं की एक पंक्ति को तैयार करेगी. विधानसभा चुनाव में मिली हार की वजह एनसीपी में विभाजन के बाद मजबूत उम्मीदवारों की गैर-मौजूदगी है. नगर निकाय चुनाव में पवार सीधे तौर पर शामिल नहीं होंगे, लेकिन वे पार्टी के प्रदर्शन पर नजर रखेंगे, ताकि आधार मजबूत करने में मदद मिल सके. एक रिपोर्ट के मुताबिक, शरद पवार के पास इस मामले में ज्यादा विकल्प नहीं हो सकते हैं, क्योंकि उनके पास कोई मजबूत नेता नहीं है, जिसे वे अपनी कमान सौंप सकें.

पवार की बेटी सुप्रिया सुले दिल्ली का चेहरा हैं. वे 2006 में राजनीति में आने के बाद से ही सांसद हैं. वहीं, पवार के परिवार के दो सदस्यों ने हालिया विधानसभा चुनावों में उनकी उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया. इसमें उनके पोते रोहित ने कर्जत-जामखेड सीट पर 1,243 वोटों से जीत हासिल की, जबकि दूसरे पोते युगेंद्र को बारामती की प्रतिष्ठित सीट पर अजित पवार से 1 लाख से अधिक वोटों से हार का सामना करना पड़ा.

राजनीति से संन्यास लेने का दिया था संकेत

विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान पवार ने अपनी उम्र का हवाला देते हुए संसदीय राजनीति से पूरी तरह संन्यास लेने का संकेत दिया था. उन्होंने कहा था, "मैंने पहले ही घोषणा कर दी थी कि मैं कोई आम चुनाव नहीं लड़ूंगा. अब इस बारे में सोचूंगा कि मौजूदा कार्यकाल के बाद राज्यसभा में बना रहूं या नहीं. एनसीपी (एससीपी) के लिए अब 2026 में पवार के सेवानिवृत्त होने पर उन्हें वापस राज्यसभा में भेजना मुश्किल हो सकता है. वहीं, पवार अपनी पार्टी को बचाए रखने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति बनाए रखना चाहेंगे.

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