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आखिर संविधान से इन दो शब्दों को हटाने पर क्यों अड़ा RSS? कांग्रेस से भी की ये डिमांड

RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की वकालत की है. उन्होंने कहा कि ये शब्द 1975 में आपातकाल के दौरान कांग्रेस द्वारा जोड़े गए थे. होसबाले ने कांग्रेस से इसके लिए माफी मांगने की मांग भी की और इसे लोकतंत्र पर हमला बताया.

आखिर संविधान से इन दो शब्दों को हटाने पर क्यों अड़ा RSS? कांग्रेस से भी की ये डिमांड
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सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Published on: 27 Jun 2025 7:30 AM

RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने गुरुवार को दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान संविधान के प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की मांग की. होसबाले ने कांग्रेस पर 50 साल पहले लगाए गए आपातकाल के दौरान इन शब्दों को संविधान में जोड़े जाने की आलोचना की. उन्होंने कांग्रेस को इस मामले पर सार्वजनिक रूप से माफी मांगने की अपील भी की.

आपातकाल के दौरान जोड़े गए शब्दों पर सवाल

होसबाले ने कहा कि यह सवाल उठाने का समय है कि क्या 1975 में आपातकाल के दौरान कांग्रेस सरकार द्वारा संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को अब भी बनाए रखा जाना चाहिए. उनका कहना था कि जब संविधान में इन शब्दों को जोड़ा गया था, तब यह सरकार के दमनात्मक और असंवैधानिक कदमों का हिस्सा था, और इस बदलाव को आज के समय में संदिग्ध माना जा सकता है.

कांग्रेस से माफी की मांग

होसबाले ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए कहा, "जो लोग संविधान की प्रति लेकर घूम रहे हैं, उन्होंने अभी तक इस बारे में माफी नहीं मांगी है. आपके पूर्वजों ने यह किया था, आपको देश से माफी मांगनी चाहिए. उन्होंने आपातकाल के दौरान किए गए अत्याचारों की याद दिलाते हुए कहा कि लाखों लोग जेल में डाले गए, प्रेस की स्वतंत्रता छीन ली गई, और न्यायपालिका को भी दबाव में लाया गया.

आपातकाल के काले दिनों की याद

RSS नेता ने कहा कि आपातकाल के दौरान न केवल हजारों विपक्षी नेताओं को जेल में डाला गया, बल्कि बड़े पैमाने पर जबरन नसबंदी अभियान भी चलाया गया. इस दौर में न्यायपालिका और मीडिया की स्वतंत्रता को दबाया गया था, जो भारतीय लोकतंत्र के लिए एक काला अध्याय था. होसबाले का यह बयान बुधवार को बीजेपी सरकार द्वारा 25 जून को 'संविधान हत्य दिवस' के रूप में मनाने के बाद आया.

इस दिन को आपातकाल के 50वें वर्षगांठ के रूप में चिह्नित किया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर आपातकाल को भारत के लोकतंत्र के इतिहास का एक काला अध्याय करार दिया, जिसमें लोकतंत्र को 'गिरफ्तार' कर दिया गया था. प्रधानमंत्री ने ट्वीट करते हुए कहा, 'आपातकाल के दौरान संसद की आवाज को कुचला गया और न्यायालयों को नियंत्रित करने की कोशिश की गई थी.

संविधान की रक्षा के लिए संघर्ष

बीजेपी ने आपातकाल के दौरान उत्पीड़ित लोगों की "अमानवीय पीड़ा" और उनके संघर्ष की सराहना की. यह दिन उन सभी लोगों की महत्ता को याद करने का था जिन्होंने 1975 से 1977 तक इस उत्पीड़न को झेला था.

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