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100 साल से ज्यादा पुरानी इस जेल में कैदी 'धड़ाधड़' छाप रहे नोट, एक जज के अचानक दौरे से बदल गई किस्मत

Koraput Jail: जेल में आम तौर पर अपराधी को सजा भुगतने के लिए लाया जाता है, लेकिन ओडिशा की एक जेल ऐसी है, जहां पर कैदियों को सुधारा भी जाता है और उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया जाता है. यह जेल 100 साल से ज्यादा पुरानी है. एक बार हाईकोर्ट के एक जज अचानक यहां के दौरे पर आए, जिससे जेल और यहां पर बंद कैदियों की किस्मत बदल गई.

100 साल से ज्यादा पुरानी इस जेल में कैदी धड़ाधड़ छाप रहे नोट, एक जज के अचानक दौरे से बदल गई किस्मत
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( Image Source:  Canva )

Koraput Jail: ओडिशा में एक जिला है- कोरापुट. यहां आदिवासियों की संख्या बहुत ज्यादा है. यहां बना सर्किल जेल 100 साल से भी ज्यादा पुराना है. यहां पर कैदियों को सुधारा भी जाता है और उन्हें आर्थिक तौर पर मजबूत भी बनाया जाता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जेल में बंद कैदी हस्तशिल्प, कृषि, सिलाई और बुनाई में अपने स्किल का इस्तेमाल करके और फैब्रिकेशन और पल्वराइजिंग इकाइयों को चलाकर उत्पादित विभिन्न वस्तुओं को बेच रहे हैं. इस जेल की स्थापना 1908 में की गई थी. यहां पर 1003 कैदियों को रखा जा सकता है.

अचानक दौरे पर आए हाईकोर्ट के जज

एक बार इस जेल में ओडिशा हाईकोर्ट के जज संजीव पाणिग्रही अचानक दौरे पर आए और कुछ सुझाव दिए, जिसके बाद कैदियों का जीवन बदल गया. उन्होंने सफाई के बुनियादी ढांचे का उन्नयन, स्वास्थ्यकर स्थिति और छोटे पैमाने के औद्योगिक बुनियादी ढांचे की स्थापना करने को कहा, जिसके बाद जेल अधिकारियों ने कैदियों को बुनाई, सिलाई और सब्जियां उगाना सिखाना शुरू किया.

रोजाना बेची जाती है सब्जियां

जेलर एलबी दाश ने बताया कि ये उत्पाद और सब्जियां बाजार में रोजाना बेची जाती है. चालू वित्त वर्ष सहित कैदियों के उत्पादों की बिक्री 31 मार्च, 2025 तक 80 लाख रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है.

प्रतिदिन कमाते हैं कैदी

वरिष्ठ जेल अधीक्षक कुंवर मरांडी ने बताया कि जेल प्रशासन ने पहले ही राज्य सरकार को राजस्व प्राप्तियों के रूप में 50 लाख रुपये जमा कर दिए हैं. बाकी की राशि सीधे कैदियों के बैंक अकाउंट में डाल दी गई है. यहां कुशल कैदियों को 145 रुपये प्रति दिन, कम कुशल कैदियों को 110 रुपये प्रति दिन और अकुशल कैदियों को 95 रुपये प्रति दिन दिए जाते हैं.

खुद का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं कैदी

जेल अधिकारियों के मुताबिक, 500 कैदियों में से 128 कैदी जेल प्रशासन द्वारा संचालित विभिन्न गतिविधियों में शामिल होते हैं. जेल अवधि को पूरी करने के बाद जब वे घर लौटेंगे तो उनके पास बहुत सारा पैसा होगा. यहां पर मिले ट्रेनिंग से उन्हें अपना खुद का कोई व्यवसाय शुरू करने में आसानी होती है.

जेल की जमीन पर बनेगा पेट्रोल पंप

अधिकारियों ने बताया कि डीजी (जेल) अरुण कुमार रॉय ने जेल की जमीन पर इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ मिलकर फ्लाई-ऐश ईंट उद्योग और पेट्रोल पंप स्थापित करने के प्रस्ताव पर सहमति जताई है, ताकि रिहाई के बाद कैदियों को पुनर्वास के उपाय के रूप में काम पर रखा जा सके.

फैब्रिकेशन यूनिट में लगे कैदी विभिन्न घरेलू सामान जैसे, अलमारी, चावल के कंटेनर, बर्तन स्टैंड, दीवार पर टांगने वाले और विभिन्न आकारों के स्टील के ट्रंक बना रहे हैं, जबकि बुनाई इकाई में काम करने वाले लोग शर्ट, चादर, पर्दे, तौलिए, डोरमैट, रूमाल, एप्रन, सलवार सूट और साड़ी आदि जैसे सामान बनाते हैं. इसके साथ ही, कैदी हल्दी, बाजरा पाउडर और जेल के बगीचे में उगाए गए बांस का उपयोग करके विभिन्न प्रकार के सामान बनाते हैं.

कैदी जैविक सब्जियां भी उगाते हैं, जिन्हें जेल के खुदरा काउंटर के माध्यम से जनता को बेचा जाता है. जेल अधिकारियों ने कोरापुट जिला मजिस्ट्रेट से पीएम विश्वकर्मा योजना के तहत कैदियों को ट्रेनिंग देने के लिए कहा है , जो उनकी रिहाई के बाद कैदियों के लिए बेहतर पुनर्वास मंच प्रदान कर सकता है।

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