'मंगल' पर मकड़ियों की मिस्ट्री! क्या नासा ने सुलझाया 21 साल पुराना रहस्य?
नासा के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर मकड़ी जैसी आकृतियां दिखने को सुलझाने का दावा किया है. उनके अनुसार ये एक भूगर्भीय संरचना है जो लगभग 1 किलोमीटर तक फैली हुई है. वैज्ञानिकों ने इस आकृति को फिर से बनाया है तभी इसकी जानकारी मिल पाई है.

नासा के वैज्ञानिकों ने 21 साल पुराने रहस्य को सुलझाने का दावा किया है. नासा के अनुसार 2003 में पहली बार मंगल ग्रह पर मकड़ी जैसी संरचना देखी गई थी. मकड़ी जैसे पैरों जैसी दिखने वाली ये संरचना भूगर्भीय संरचना है जिसे एरेनिफ़ॉर्म टेरेन के रुप में जाना जाता है. ये संरचना आधे मील तक फैली हुई है. वैज्ञानिकों ने इसे फिर से बनाया है, जिससे कहा जा रहा है कि मंगल ग्रह की सतह पर इसके निर्माण की जानकारी मिल पाई है.
ऑर्बिटर से मिली तस्वीर
मंगल ग्रह पर मकड़ी जैसी आकृति पहली बार 2003 में ऑर्बिटर यान से ली गई थी. इस यान से ली गई तस्वीरों का अध्ययन करते समय पहली बार ये आकृतियां देखी गई थी. जिसके बारे में जानकारी प्राप्त करने में दशकों का समय लग गया. ये संरचना आधे मील यानी लगभग 1 किलोमीटर तक फैली हुई है जिसमें सैकड़ों पैर के निशान बने हुए थे.
शोधकर्ताओं के अध्ययन में बदलाव
शुरुआती सिद्धांतों में वैज्ञानिकों ने कहा कि यह संरचना तब बनती है जब मंगल की सतह पर जमी हुई कार्बन डाइऑक्साइड की बर्फ अचानक पिघल जाती है, या गैस में बदल जाती है. इस प्रक्रिया को छोटे पैमाने पर प्रयोगशाला में दोहराया गया, जिससे मकड़ी की आकृति का छोटा संस्करण बनाया गया। इस अध्ययन को "प्लैनेटरी साइंस जर्नल" में प्रकाशित किया गया था.
किफर मॉडल:
इसके अलावा, वैज्ञानिकों ने "किफर मॉडल" का भी परीक्षण किया. इसके तहत मंगल ग्रह की सतह के अत्यधिक ठंडे तापमान (-185°C) और कम दबाव की स्थितियों को एक विशेष कक्ष में तैयार किया गया. इस प्रयोग में, नासा के जेट प्रोपल्शन लैब (JPL) में एक बड़े कक्ष का उपयोग किया गया, जिसे "DUSTIE" कहा जाता है. कक्ष में नकली मंगल ग्रह की मिट्टी और CO2 बर्फ का उपयोग किया गया, जिस पर एक लैंप की मदद से सूर्य के गर्म प्रभाव की नकल की गई.
इन प्रयोगों से वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिली कि किस प्रकार मंगल की सतह पर बर्फ पिघलने और गैस में बदलने से ऐसी अनोखी संरचनाएं बनती हैं.