दिल्ली में नरसिंह राव की मूर्ति! जिस नेता को मौत के बाद ठुकराया, अब उसकी विरासत पर सियासी संग्राम के पढ़ें किस्से
2004 में पी. वी. नरसिंह राव के निधन पर कांग्रेस ने उनके शव को पार्टी मुख्यालय में प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी, जिससे भारी राजनीतिक विवाद हुआ. उनका अंतिम संस्कार हैदराबाद में हुआ, जबकि परंपरा दिल्ली में थी. अब 20 साल बाद उनकी विरासत को दोबारा सम्मान देने की चर्चा है, जिससे पुरानी घटनाएं फिर से सुर्खियों में हैं. केंद्र सरकार मूर्ति और सम्मान पर विचार कर रही है.

देश के 9वें प्रधानमंत्री, पी. वी. नरसिंह राव को भारतीय राजनीति का 'अनचाहा रिफॉर्मर' भी कहा जाता है. 1991 में जब देश आर्थिक संकट में डूबा था, तब उन्होंने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाकर आर्थिक उदारीकरण की नींव रखी. लेकिन हैरानी की बात ये है कि जिसने देश को आर्थिक बर्बादी से उबारा, उसके अंतिम दिनों और मृत्यु के बाद उसके साथ ही कांग्रेस ने ऐसा व्यवहार किया, जो शायद किसी दुश्मन के साथ भी न होता.
साल 2004, जब नरसिंह राव का निधन हुआ - तब यूपीए सरकार सत्ता में थी और सोनिया गांधी का कांग्रेस पर पूरा वर्चस्व.राव की अंतिम इच्छा थी कि उनका पार्थिव शरीर कांग्रेस मुख्यालय में ले जाया जाए ताकि पार्टी कार्यकर्ता अंतिम दर्शन कर सकें. लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने साफ मना कर दिया! उनका शव सीधे घर से एयरपोर्ट ले जाया गया। कांग्रेस के सबसे बड़े रणनीतिकार की अंतिम यात्रा बिना पार्टी श्रद्धांजलि के दिल्ली से हैदराबाद भेज दी गई.
बड़ी बात ये कि न तो 10 जनपथ (सोनिया गांधी) गईं और न ही कांग्रेस के बड़े नेता उनके अंतिम संस्कार में सक्रिय रूप से शामिल हुए. कहा जाता है कि गांधी परिवार राव से बाबरी विध्वंस के चलते बेहद नाराज था. लेकिन अब लगभग 20 साल बाद बीजेपी सरकार की तरफ से राव के नाम की याद ताजा की जा रही है.
खबर है कि दिल्ली में नरसिंह राव की प्रतिमा लगाने की योजना पर काम हो रहा है. क्या ये सम्मान की वापसी है? या राजनीति का नया अध्याय? आज 20 साल बाद बीजेपी सरकार नरसिंह राव के योगदानों को याद कर रही है. हैदराबाद और दिल्ली- दोनों जगह उनकी मूर्ति और स्मृति स्थलों की चर्चा जोरों पर है. बीजेपी इसे 'कांग्रेस का ऐतिहासिक अन्याय सुधारने की कोशिश' बता रही है.
कौन थे पी.वी. नरसिंह राव?
आंध्र प्रदेश के वारंगल में जन्मे नरसिंह राव 1991 से 1996 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को 'लाइसेंस राज' से बाहर निकाला और उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण (LPG reforms) की शुरुआत की। उनकी सरकार के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे, जिन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले लिए।
निधन और उपेक्षा का किस्सा
कांग्रेस पार्टी, खासतौर पर सोनिया गांधी के नेतृत्व में, नरसिंह राव के योगदान को कभी खुलकर सम्मान नहीं दिया गया. कहा जाता है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस (1992) के दौरान नरसिंह राव की भूमिका को लेकर गांधी परिवार उनसे नाराज था. उनके निधन के बाद, उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय (24, अकबर रोड) लाने की बजाय सीधे आंध्र भवन ले जाया गया। यहां तक कि कांग्रेस मुख्यालय में उन्हें श्रद्धांजलि तक नहीं दी गई. अंत्येष्टि (दाह संस्कार) भी दिल्ली में नहीं, बल्कि हैदराबाद में करवाई गई. ये सारे घटनाक्रम उस वक्त मीडिया में "अपमान" के तौर पर देखे गए.
दिल्ली में मूर्ति लगाने की मांग क्यों उठी?
उनकी मौत के बाद लंबे समय तक दिल्ली में उनकी कोई प्रतिमा (statue) नहीं लगाई गई. जबकि देश के अन्य पूर्व प्रधानमंत्रियों — नेहरू, इंदिरा, राजीव गांधी आदि की मूर्तियाँ संसद भवन परिसर और अन्य जगहों पर पहले से मौजूद थीं. इस उपेक्षा को लेकर दक्षिण भारत, खासकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में नाराजगी थी. 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद, केंद्र सरकार ने नरसिंह राव को पुनः मान्यता देना शुरू किया. 2020 में उनकी जन्मशती (100वीं जयंती) पर दिल्ली में उनकी मूर्ति लगाने की मांग ज़ोर पकड़ी। भाजपा शासित केंद्र ने इसका समर्थन किया, ताकि कांग्रेस की उपेक्षा को उजागर किया जा सके.