इस शहर में हर दिन 100 से ज्यादा लोगों को काटते हैं कुत्ते, वेलकम टू The City Beautiful...
देश के सबसे पुराने और सुनियोजित शहरों में गिना जाने वाला The City Beautiful चंडीगढ़, आज कुत्तों के कहर से कराह रहा है. महज 12.5 लाख की आबादी वाले इस शहर में हर दिन 100 से ज्यादा लोग डॉग बाइट का शिकार हो रहे हैं, लेकिन मुआवजा केवल 73 को मिला है. प्रशासन के आंकड़े तो दुरुस्त हैं, पर कार्रवाई बेहद सुस्त. सुनियोजित सड़कों और सेक्टरों वाला शहर अब डॉग अटैक के जंगलराज में बदलता दिख रहा है और सिस्टम बेबस खड़ा है.

देश के सबसे पुराने और सुनियोजित शहरों में गिना जाने वाला चंडीगढ़, जिसे गर्व से The City Beautiful कहा जाता है, आज कुत्तों के आतंक से बेहाल है. महज साढ़े 12 लाख की आबादी वाले इस शहर में हालात ऐसे हैं कि हर दिन 100 से ज्यादा लोग कुत्तों के हमले का शिकार हो रहे हैं. यह आंकड़ा किसी छोटे-मोटे संकट का नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही का आईना है.
साल दर साल डॉग बाइट केस तेजी से बढ़े हैं, लेकिन मुआवजा पाने वालों की संख्या शर्मनाक रूप से कम है. क्या यही है देश के सबसे आधुनिक शहर का चेहरा? जहां हर सेक्टर योजनाबद्ध है, लेकिन डॉग कंट्रोल प्लान पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है.
बढ़ता खतरा: हर दिन औसतन 100 डॉग अटैक केस
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार चंडीगढ़ में कुत्तों के काटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, लेकिन इन मामलों में पीड़ितों को मुआवजा मिलना बेहद धीमा और निराशाजनक है. वर्ष 2020 से 2024 तक, यूटी हेल्थ डिपार्टमेंट ने 1.5 लाख से अधिक डॉग बाइट केस दर्ज किए हैं. 2020 में जहां 20,344 मामले सामने आए थे, वहीं 2024 में ये आंकड़ा 40,153 तक पहुंच गया. इसका मतलब है कि हर महीने औसतन 3,300 से ज्यादा और हर दिन 100 से अधिक लोग डॉग बाइट का शिकार हो रहे हैं.
मुआवजा कम, तकलीफ ज्यादा: सिर्फ 73 को मिला भुगतान
हाई कोर्ट के आदेश पर जुलाई 2023 में मुआवजा समिति बनाई गई थी, लेकिन अब तक केवल 470 आवेदन ही सामने आए हैं. उनमें से सिर्फ 190 को मंजूरी मिली है और सिर्फ 73 पीड़ितों को ही भुगतान किया गया है. बाकी 98 मामले अभी भुगतान प्रक्रिया में हैं, जबकि 50 से ज्यादा आवेदन खारिज कर दिए गए हैं.
आंकड़ों में डरावनी तस्वीर
वर्ष | डॉग बाइट केस |
2020 | 20,344 |
2021 | 23,875 |
2022 | 29,190 |
2023 | 36,300 |
2024 | 40,153 |
2025 (जनवरी-फरवरी) | 6,439 |
मुआवजा नीति: क्या है सरकार का पैमाना?
- पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के निर्देश के बाद, स्थानीय निकाय विभाग ने जो मुआवजा नीति बनाई है, उसके अनुसार:
- 10,000 रुपये प्रति दांत के निशान
- 20,000 रुपये प्रति 0.2 सेंटीमीटर फटे मांस के लिए
- अधिकतम सीमा: 2 लाख रुपये
इसके तहत मेडिकल रिपोर्ट, इलाज के खर्च और एफआईआर जैसे दस्तावेजों के आधार पर मुआवजा तय होता है.
दावे खारिज क्यों हो रहे हैं?
डॉग कंट्रोल सेल के नोडल ऑफिसर डॉ. गौरव लखनपाल ने बताया कि कई मामलों में दावे फर्जी पाए गए. कुछ लोग पालतू कुत्तों के काटने को आवारा कुत्ते बता रहे थे, जबकि कई ने पुराने या गैर-संबंधित फोटो सबमिट किए. वर्ष 2024 में डॉग कंट्रोल सेल को 1,014 कॉल्स मिलीं, लेकिन उनमें से सिर्फ 289 मामलों की पुष्टि हो पाई.
रेबीज़ का खतरा: फौरन इलाज जरूरी
स्वास्थ्य सेवा निदेशक डॉ. सुमन सिंह ने चेताया कि हर कुत्ते के काटने की घटना को गंभीरता से लेना जरूरी है. रेबीज़ एक जानलेवा संक्रमण है, जिसे तुरंत इलाज की जरूरत होती है. उन्होंने बताया कि ज़ख्म को तुरंत साबुन और पानी से धोना चाहिए. GMSH-16 और सेक्टर 19 व 38 के अस्पतालों में फ्री एंटी-रेबीज़ वैक्सीन मिलती है. एक कोर्स में 5 इंजेक्शन लगते हैं, जो बाहर 350 रुपये प्रति इंजेक्शन में मिलते हैं.
दहशत में लोग: 'कोई सुनवाई नहीं होती'
सेक्टर 11 की 65 वर्षीय माधवी सूरी को शाम की सैर के दौरान एक आवारा कुत्ते ने दो बार काट लिया. उन्होंने बताया, “बिलकुल भी उकसावे की कोई बात नहीं थी. एक साइकल सवार ने ईंट फेंककर उसे भगाया. मैंने टिटनेस और रेबीज़ का इंजेक्शन लिया. घटना के बाद डर बैठ गया है.” इसी तरह सेक्टर 10 में 7 वर्षीय ईशा मेहरा पर दो आवारा कुत्तों ने हमला कर दिया, जब वह पार्क में खेल रही थी. उसकी मां सुनैना ने कहा, “बिटिया बुरी तरह डर गई है, अब पार्क नहीं जाना चाहती. अगर हमारे बच्चे ही सार्वजनिक जगहों पर सुरक्षित नहीं हैं, तो हम कहां जाएं?”
मुआवजे के लिए आवेदन कैसे करें?
पीड़ित या उनके परिवार को सेक्टर 17 स्थित मेडिकल ऑफिसर ऑफ हेल्थ (MoH) को आवेदन देना होता है, जिसमें शामिल हो:
- एफआईआर या डीडीआर की कॉपी
- मेडिकल रिपोर्ट और चोट का विवरण
- इलाज और खर्च का सबूत (बिल, पर्चे आदि)
- समिति पुलिस रिपोर्ट, इलाज का पूरा इतिहास और डॉक्टर की राय भी जांचती है
डॉग बाइट की शिकायत कहां करें?
चंडीगढ़ नगर निगम हेल्पलाइन: 0172-278-7200
समस्या की जड़ और प्रशासन की सुस्ती
साफ है कि प्रशासन के पास आंकड़े हैं, प्रक्रिया भी है, लेकिन नतीजे बहुत कम हैं. इतनी बड़ी संख्या में डॉग बाइट केस सामने आने के बावजूद मुआवजा प्रक्रिया बेहद धीमी है. कई बार दस्तावेज़ों की कमी, नकली दावे या पुरानी तस्वीरों के चलते मामले खारिज हो जाते हैं, लेकिन असली पीड़ित इस प्रक्रिया में पिस रहे हैं. एक तरफ लोग सड़कों पर डर के साए में जी रहे हैं, दूसरी तरफ प्रशासनिक प्रक्रिया इतनी पेचीदा और धीमी है कि न्याय मिलना मुश्किल हो रहा है. ज़रूरत है कि मुआवजा प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाया जाए. साथ ही आवारा कुत्तों की समस्या पर गंभीरता से काम हो, ताकि आम लोग सुरक्षित महसूस कर सकें.