साउथ के लिए मास्टरस्ट्रोक! NDA ने उपराष्ट्रपति पद के लिए सीपी राधाकृष्णन का नाम आगे कर किन विपक्षी दलों की बढ़ाई मुश्किलें?
एनडीए ने महाराष्ट्र के राज्यपाल और तमिलनाडु से ताल्लुक रखने वाले सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर बड़ा दांव खेला है. इससे उद्धव ठाकरे और स्टालिन असहज हो गए हैं, जबकि राहुल गांधी के नेतृत्व की भी परीक्षा हो रही है. बीजेपी इस कदम से साउथ में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है और विपक्षी एकता पर संकट गहराता दिख रहा है.

भारत की वर्तमान राजनीति में कई बार ऐसा हुआ है कि विपक्ष कोई रणनीति बनाता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक ऐसा कदम उठा लेते हैं कि पूरी रणनीति ध्वस्त हो जाती है. एनडीए की ओर से महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करना भी कुछ ऐसा ही मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है. इससे विपक्षी खेमे में हलचल मच गई है और कई नेता दुविधा में फंस गए हैं.
इसे लेकर महाराष्ट्र से लेकर साउथ तक हलचल मच गई. अब उद्धव ठाकरे से लेकर स्टालिन तक सभी दुविधा में दिख रहे हैं कि आखिर इसका काट कैसे निकाला जाए. वैसे भी साउथ में एनडीए अपना पैठ मजबूत करना चाहती है और सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाने से इसमें बढ़त देखने को मिल सकती है. आइये जानते हैं कि आखिर कैसे विपक्षी दलों की मुश्किल बढ़ गई है.
उद्धव ठाकरे के सामने दोहरी चुनौती
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सबसे असहज स्थिति में आ गए हैं. राधाकृष्णन वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं, ऐसे में अगर ठाकरे उनका विरोध करते हैं तो यह संदेश जाएगा कि उन्होंने अपने ही राज्यपाल के खिलाफ जाकर वोट दिया. इससे राजनीतिक तौर पर उन्हें नुकसान हो सकता है. यही वजह है कि संजय राउत ने नरम रुख अपनाते हुए राधाकृष्णन की तारीफ की और शुभकामनाएं भी दीं. इसका साफ मतलब है कि उद्धव खुलकर विरोध की राह पर नहीं जा सकते.
स्टालिन की असमंजस वाली स्थिति
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन भी मुश्किल में हैं. राधाकृष्णन तमिलनाडु से ताल्लुक रखते हैं और खुद को हमेशा आरएसएस का गर्वित कार्यकर्ता बताते हैं. अगर स्टालिन उन्हें समर्थन देते हैं तो डीएमके का वोटर सवाल उठाएगा कि आरएसएस विचारधारा वाले नेता का समर्थन क्यों किया गया. वहीं विरोध करने पर उन पर आरोप लगेगा कि उन्होंने तमिलनाडु के बेटे को नकार दिया. ऐसे में स्टालिन किसी भी तरफ जाएं, राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है.
राहुल गांधी के नेतृत्व की असली परीक्षा
इस पूरे घटनाक्रम का असर विपक्षी गठबंधन की धुरी राहुल गांधी पर सबसे ज्यादा पड़ सकता है. 2022 में जब जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया गया था, तो ममता बनर्जी विपक्ष में रहते हुए भी समर्थन करने को मजबूर हो गई थीं. अब वैसी ही स्थिति उद्धव ठाकरे और स्टालिन के सामने है. अगर वे एनडीए के उम्मीदवार के पक्ष में जाते हैं, तो यह विपक्षी एकता पर बड़ा सवाल खड़ा करेगा और राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता कमजोर दिखेगी.
मोदी-शाह की मनोवैज्ञानिक राजनीति
मोदी और अमित शाह की राजनीतिक रणनीति की खासियत यही है कि वे सिर्फ आंकड़ों पर नहीं, बल्कि विपक्ष की मनोस्थिति पर भी खेलते हैं. राधाकृष्णन का नाम सामने लाकर उन्होंने एक ही चाल से कई विपक्षी नेताओं को उलझा दिया है. ठाकरे और स्टालिन असहज हैं, वहीं राहुल गांधी पर नेतृत्व की परीक्षा का दबाव है. यह मास्टरस्ट्रोक विपक्ष की एकजुटता को तोड़ने वाला साबित हो सकता है.
विपक्षी एकता पर संकट की घंटी
अगर ठाकरे और स्टालिन जैसे बड़े चेहरे एनडीए उम्मीदवार का समर्थन करने की ओर झुकते हैं, तो विपक्षी गठबंधन में दरार साफ नजर आएगी. इससे कांग्रेस की पकड़ ढीली होगी और राहुल गांधी पर सवाल खड़े होंगे. दूसरी ओर, मोदी और एनडीए को यह फायदा मिलेगा कि उन्होंने विपक्ष को मनोवैज्ञानिक तौर पर कमजोर कर दिया. कुल मिलाकर यह कदम एक चुनावी दांव ही नहीं, बल्कि विपक्ष की एकता की नींव हिलाने वाली चाल साबित हो रही है.
सीपी राधाकृष्णन का तमिलनाडु कनेक्शन
सीपी राधाकृष्णन का नाम उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर आगे बढ़ाना बीजेपी की दक्षिण भारत में पकड़ मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. वे तमिलनाडु के कोयंबटूर से आते हैं और गाउंडर यानी ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. अगले साल तमिलनाडु विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और अब तक बीजेपी को यहां निर्णायक सफलता नहीं मिली है. ऐसे में राधाकृष्णन के लंबे राजनीतिक अनुभव और स्थानीय कनेक्शन के जरिए पार्टी दक्षिण में अपनी जड़ें गहरी करने का बड़ा दांव खेल रही है.