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ग्रामीण रोजगार गारंटी में बड़ा बदलाव: VB-G Ram G Bill से क्या बदलेगा? रोजगार गारंटी, फंडिंग और खेती के मौसम पर नई शर्तें

NDA सरकार द्वारा पेश किया गया VB-G Ram G Bill, 2025 ग्रामीण रोजगार गारंटी व्यवस्था में बड़े बदलाव लाता है. इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह बिल MGNREGA की जगह लेगा और ग्रामीण परिवारों के लिए गारंटीड रोजगार के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 करने का प्रस्ताव करता है. साथ ही पहली बार खेती के पीक सीज़न (बुवाई और कटाई) के दौरान कुल 60 दिनों तक रोजगार पर रोक का प्रावधान किया गया है.

ग्रामीण रोजगार गारंटी में बड़ा बदलाव: VB-G Ram G Bill से क्या बदलेगा? रोजगार गारंटी, फंडिंग और खेती के मौसम पर नई शर्तें
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 15 Dec 2025 11:39 AM

केंद्र की NDA सरकार ने ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में एक बड़ा संरचनात्मक बदलाव करते हुए Viksit Bharat–Guarantee for Rozgar and Ajeevika Mission (Gramin) यानी VB-G Ram G Bill, 2025 पेश किया है. यह बिल करीब दो दशकों से लागू महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), 2005 की जगह लेगा.

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इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह नया कानून ग्रामीण रोजगार गारंटी के दायरे, फंडिंग मॉडल और काम के तरीके - तीनों में बुनियादी बदलाव करता है. सरकार का दावा है कि यह बिल “विकसित भारत” के लक्ष्य के अनुरूप ग्रामीण आजीविका को मज़बूत करेगा, जबकि आलोचकों का मानना है कि इससे राज्यों पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा और मज़दूरों के लिए काम के अवसर सीमित हो सकते हैं.

100 से बढ़कर 125 दिन की रोजगार गारंटी

VB-G Ram G Bill का सबसे बड़ा बदलाव गारंटीड काम के दिनों से जुड़ा है. नए कानून के तहत हर ग्रामीण परिवार, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल श्रम करने के लिए तैयार हों, उन्हें एक वित्तीय वर्ष में 125 दिन का काम देने की गारंटी होगी. वर्तमान में MGNREGA के तहत यह सीमा 100 दिन है. हालांकि, कानून में अतिरिक्त दिनों का प्रावधान मौजूद रहा है, लेकिन व्यवहार में 100 दिन ही ऊपरी सीमा बन गए थे. इसकी एक वजह यह भी है कि NREGA सॉफ्टवेयर 100 दिन से अधिक काम की एंट्री तभी स्वीकार करता है, जब राज्य सरकार विशेष अनुरोध करे.

MGNREGA के तहत कुछ विशेष परिस्थितियों में अतिरिक्त काम की अनुमति दी जाती रही है. उदाहरण के तौर पर, वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति (ST) परिवारों को 150 दिन तक काम का अधिकार है, बशर्ते उनके पास Forest Rights Act के तहत मिली ज़मीन के अलावा कोई निजी संपत्ति न हो. इसके अलावा सूखा या प्राकृतिक आपदा घोषित होने पर भी अतिरिक्त 50 दिन काम दिया जा सकता है.

VB-G Ram G Bill इन अपवादों को सामान्य ढांचे में शामिल करते हुए 125 दिन की गारंटी को मानक बनाता है.

मजदूरी भुगतान में केंद्र–राज्य साझेदारी

MGNREGA में अब तक मजदूरी का पूरा बोझ केंद्र सरकार उठाती थी. लेकिन VB-G Ram G Bill इस व्यवस्था को बदल देता है. इंडियन एक्‍सप्रेस के अनुसार, नए कानून में मजदूरी भुगतान के लिए केंद्र और राज्य दोनों को योगदान देना होगा. बिल की धारा 22(2) के तहत, पूर्वोत्तर राज्यों, हिमालयी राज्यों और कुछ केंद्र शासित प्रदेशों (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर) के लिए फंड शेयरिंग 90:10 होगी. अन्य राज्यों और विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों के लिए यह अनुपात 60:40 होगा. जिन केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभा नहीं है, वहां पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाएगी. यह बदलाव राज्यों के वित्तीय संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डाल सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां पहले से ही ग्रामीण रोजगार की मांग अधिक रहती है.

लेबर बजट की जगह ‘नॉर्मेटिव एलोकेशन’

VB-G Ram G Bill का तीसरा बड़ा बदलाव फंड आवंटन की प्रक्रिया से जुड़ा है. MGNREGA के तहत हर साल राज्यों को अपना लेबर बजट केंद्र को सौंपना होता है, जो अनुमानित मांग के आधार पर तैयार किया जाता है. यह व्यवस्था अपेक्षाकृत “डिमांड-ड्रिवन” थी. लेकिन नए बिल में इसकी जगह “नॉर्मेटिव एलोकेशन” की व्यवस्था लाई गई है. धारा 4(5) के मुताबिक, केंद्र सरकार हर राज्य के लिए सालाना एक तय राशि निर्धारित करेगी, जो “ऑब्जेक्टिव पैरामीटर्स” पर आधारित होगी. अगर कोई राज्य इस तय सीमा से ज़्यादा खर्च करता है, तो अतिरिक्त बोझ राज्य सरकार को खुद उठाना होगा. आलोचकों का कहना है कि इससे ग्रामीण रोजगार गारंटी की खुली मांग-आधारित प्रकृति खत्म हो सकती है और गरीब राज्यों को नुकसान हो सकता है.

खेती के मौसम में रोजगार गारंटी पर रोक

VB-G Ram G Bill का सबसे विवादास्पद प्रावधान है - खेती के पीक सीज़न में काम पर रोक. बिल की धारा 6(1) के अनुसार, बुवाई और कटाई जैसे महत्वपूर्ण कृषि मौसमों के दौरान कुल 60 दिनों तक रोजगार गारंटी को “पॉज़” किया जा सकता है. राज्य सरकारें अपने-अपने कृषि-जलवायु क्षेत्रों के हिसाब से जिलों, ब्लॉकों या ग्राम पंचायतों के लिए अलग-अलग अधिसूचना जारी कर सकती हैं. सरकार का तर्क है कि इससे खेतों में मज़दूरों की उपलब्धता बनी रहेगी. लेकिन हकीकत यह भी है कि इससे 125 दिन के काम की गारंटी का वास्तविक समय काफी कम हो जाएगा. ग्रामीण मज़दूर संगठनों का कहना है कि जिन इलाकों में खेती पहले से ही कमज़ोर है, वहां यह प्रावधान काम के अवसर और सीमित कर सकता है.

साप्ताहिक मजदूरी भुगतान, लेकिन देरी पर सख्ती कम

नए बिल में मजदूरी भुगतान को लेकर भी बदलाव किया गया है. VB-G Ram G Bill के तहत मजदूरी का भुगतान साप्ताहिक आधार पर किया जाएगा, जबकि MGNREGA में 15 दिनों की सीमा थी. हालांकि, MGNREGA में यह स्पष्ट प्रावधान था कि अगर भुगतान में देरी होती है, तो मज़दूर को 0.05% प्रतिदिन के हिसाब से मुआवज़ा मिलेगा. VB-G Ram G Bill में मजदूरी की दरें तो MGNREGA के अनुरूप ही रहेंगी, लेकिन देरी पर मुआवज़े के प्रावधान को लेकर स्थिति उतनी स्पष्ट और सख्त नहीं है. इससे भुगतान में जवाबदेही कमजोर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.

MGNREGA से VB-G Ram G तक: दिशा बदलती ग्रामीण नीति

कुल मिलाकर VB-G Ram G Bill ग्रामीण रोजगार गारंटी को एक नई दिशा में ले जाता है. एक तरफ 125 दिन की गारंटी और साप्ताहिक भुगतान जैसे कदम सकारात्मक दिखते हैं, वहीं दूसरी ओर खेती के मौसम में रोक, राज्यों पर बढ़ता वित्तीय बोझ और नॉर्मेटिव एलोकेशन जैसी व्यवस्थाएं गंभीर सवाल खड़े करती हैं. यह साफ है कि यह कानून सिर्फ MGNREGA का नाम बदलना नहीं है, बल्कि ग्रामीण रोजगार गारंटी के दर्शन में बदलाव का संकेत देता है. आने वाले समय में इसका असर ग्रामीण मज़दूरों, राज्य सरकारों और भारत की सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था पर दूरगामी होगा.

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