महाराष्ट्र में खत्म नहीं होने वाली चाचा-भतीजे की लड़ाई, अजित पवार के गढ़ में सेंध लगा पाएंगे युगेंद्र?
युगेंद्र को मेहनत का फल मिल गया है. एनसीपी (शरद गुट) ने युगेंद्र पवार को बारामती विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है. वहीं, इस सीट पर एनसीपी (अजित गुट) की तरफ से युगेंद्र के चाचा अजित पवार मैदान में हैं. इस बार चाचा भतीजे की लड़ाई काफी दिलचस्प होने वाली है.

2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले थे. उस समय महाराष्ट्र की राजनीति में काफी उथल पुथल मची हुई थी. ये उथल पुथल बारामती लोकसभा सीट को लेकर थी. इस सीट पर शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार मैदान में थीं. ननद और भाभी का मुकाबला देखने में सभी की दिलचस्पी थी. हालांकि जब नतीजे आए तो सुप्रिया सुले को जीत मिली और सुनेत्रा को हार का सामना करना पड़ा.
इस लोकसभा चुनाव के दौरान जब सुप्रिया सुले प्रचार कर रही थीं तब उनके पीछे एक 32 साल का शख्स खड़ा दिख रहा था. वह कोई और नहीं सुप्रिया सुले के भतीजे युगेंद्र पवार थे. युगेंद्र पवार ही सुप्रिया के चुनावी कैंपेन को लीड कर रहे थे और चुनाव प्रचार कर रहे थे. युगेंद्र की मेहनत रंग लाई और सुप्रिया सुले को लोकसभा चुनाव में जीत मिली.
अब युगेंद्र को मेहनत का फल मिल गया है. एनसीपी (शरद गुट) ने युगेंद्र पवार को बारामती विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है. वहीं, इस सीट पर एनसीपी (अजित गुट) की तरफ से युगेंद्र के चाचा अजित पवार मैदान में हैं. इस बार चाचा भतीजे की लड़ाई काफी दिलचस्प होने वाली है. आइये जानते हैं कि आखिर चुनावी मैदान में चाचा के साथ दो-दो हाथ करने वाले युगेंद्र पवार कौन हैं?
परिवार की तीसरी पीढ़ी के नेता है युगेंद्र
32 साल के युगेंद्र पवार शरद पवार के पोते हैं और अजित पवार के सगे भाई श्रीनिवास पवार के बेटे हैं. उनके पिता श्रीनिवास पवार बिजनेस मैन हैं. मुंबई और पुणे में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद युगेंद्र ने बोस्टन की नॉर्थ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में ग्रेजुएशन किया. पढ़ाई पूरी कर भारत लौटने के बाद युगेंद्र ने पिता की कंपनी शरयु ग्रुप को ज्वाइन कर लिया.
शरयु ग्रुप रियल एस्टेट, सिक्योरिटी, ऑटोमोटिव, लॉजिस्टिक्स और कृषि क्षेत्रों में काम करती है. युगेंद्र अभी बारामती में शरयु फाउंडेशन के साथ एक सोशल वर्कर के रूप में काम कर रहे हैं. युगेंद्र के नेतृत्व में हाल ही में वहां एक हाफ मैराथन का आयोजन भी किया गया था.
उन्होंने समय के साथ साथ बारामती शहर में समर्थकों का एक नेटवर्क बना लिया है. वे शरद पवार द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान विद्या प्रतिष्ठान के ट्रस्टी और कोषाध्यक्ष भी हैं. साथ ही वह बारामती तालुका कुश्ती परिषद के प्रमुख भी हैं, जिसके माध्यम से उन्होंने दिसंबर 2023 में दादा शरद पवार के जन्मदिन पर कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित की थी. वह कई बार दादा शरद पवार की चुनावी रैलियों में नजर आ चुके हैं. अब वह बारामती विधानसभा सीट से विधायिकी लड़ने वाले हैं. वह परिवार के तीसरी पीढ़ी के नेता के रूप में नजर आने वाले हैं.
प्रत्याशी बनाए जाने पर योगेंद्र ने क्या कहा?
योगेंद्र पवार ने कहा कि मैं काफी खुश हूं और मैं पार्टी और आदरणीय पवार साहब (शरद पवार), प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल और साथ ही हमारी कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले द्वारा मुझे दी गई जिम्मेदारी को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करता हूं.
चाचा को फिर बताएगी जनता
चाचा अजित पवार के खिलाफ चुनाव लड़ने पर युगेंद्र ने कहा कि अपने चाचा अजित पवार के खिलाफ चुनाव लड़ना कठिन नहीं होगा, हालांकि यह लड़ाई इतनी आसान भी नहीं है. हम अजित पवार को दादा कहते हैं, उनका सम्मान करते हैं, लेकिन बारामती की जनता शरद पवार के साथ है. जनता ने इस बात को लोकसभा चुनाव में भी बताया था. जनता विधानसभा चुनाव में भी इस बात को बताने के लिए तैयार है.
अजित पवार का सियासी सफर
1993 से ही अजित पवार बारामती विधानसभा सीट से जीतते भी आ रहे हैं. 2019 में उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार को हराया था. बता दें, बारामती विधानसभा सीट, बारामती लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. इस साल हुए लोकसभा चुनाव में अजित पवार ने अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को बहन सुप्रिया सुले के खिलाफ उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारा था. जुलाई 2023 में अजित पवार के जाने से शुरू हुआ पारिवारिक विवाद अंततः सुनेत्रा की हार का कारण बना, जिससे परिवार के बीच तनाव बढ़ गया. चुनाव के तुरंत बाद अजित पवार ने कहा था कि किसी को भी राजनीति को अपने घर में नहीं आने देना चाहिए.
शरद पवार का राजनैतिक सफर
- 1967 में शरद पवार पहली बार विधायक बने
- 1975-77 में गृह मामलों के मंत्री रहे
- 1978 में शरद पवार महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने
- 1983 में, पवार कांग्रेस (आई) के अध्यक्ष बने
- 1984 में बारामती के सांसद बने
- 1985 में पवार फिर से बारामती के विधायक बने
- 1991-93 तक पीएम नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री बने
- 1993-1995 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे
- 1996 में बारामती के सांसद बने
- 1999 में कांग्रेस से निकलकर एनसीपी की स्थापना की
- 2004 में पीएम मनमोहन सिंह के समय कृषि मंत्री बने
- 2020 में वह राज्यसभा के सांसद के रूप में चुने गए