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20 साल बाद न्याय! बहू को नहीं पसंद आई थी रोक-टोक, अब मरने के बाद कोर्ट ने सुनाया फैसला

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 20 साल पुराने मामले में फैसला सुनाया है. जिसमें एक व्यक्ति की मृतक पत्नी ने सुसराल वालों पर क्रूरता को आरोप लगाया था. कोर्ट ने कहा कि मृत पत्नी को ताना मारना, उसे टीवी देखने की अनुमति नहीं देना कोई अत्याचार नहीं.

20 साल बाद न्याय! बहू को नहीं पसंद आई थी रोक-टोक, अब मरने के बाद कोर्ट ने सुनाया फैसला
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( Image Source:  Credit- ANI )
निशा श्रीवास्तव
Edited By: निशा श्रीवास्तव

Updated on: 9 Nov 2024 12:42 PM IST

Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीते दिन एक परिवार को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि बहू को टीवी देखने और मंदिर से जाने से रोकना कोई क्रूरता नहीं है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक औरंगाबाद पीठ ने 20 साल पुराने मामले में फैसला सुनाया है. जिसमें एक व्यक्ति की मृतक पत्नी ने सुसराल वालों पर क्रूरता को आरोप लगाया था. कोर्ट ने कहा कि मृत पत्नी को ताना मारना, उसे टीवी देखने की अनुमति नहीं देना कोई अत्याचार नहीं.

हर कृत्य क्रूरता नहीं-कोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 20 साल पुराने आदेश को रद्द करते हुए कहा कि मृत पत्नी को टीवी देखने की परमिशन न देने, उसे अकेले मंदिर नहीं जाने देना और उसे कालीन पर सुलाना, ये सभी आरोप आईपीसी की धारा 498 ए के तहत क्रूरता का अपराध नहीं माने जाएंगे. क्योंकि इनमें से कोई भी कृत्य गंभीर नहीं था. कोर्ट ने कहा कि ये आरोप प्रकृति शारीरिक और मानसिक क्रूरता नहीं बल्कि आरोपी के घर के घरेलू मामलों से संबंधित थे.

दोषियों को मिली जमानत

मामले के आरोपी ससुराल वालों पर आईपीसी की धारा 498ए और 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के खिलाफ केस दर्ज था. अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने दोषी ठहराए गए व्यक्ति और उसके परिवार जमानत दे दी. बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने इन अपराधों के लिए व्यक्ति और उसके परिवार को दोषी ठहराया था, जिसके खिलाफ उन्होंने उच्च न्यायालय में अपील की थी.

बहू ने लगाए थे ससुराल वालों पर ये आरोप

जानकारी के मुताबिक व्यक्ति और उसके परिवार पर मृतक बहू के साथ क्रूरता से पेश आने के मुख्य आरोप थे. जिसमें उसके द्वारा बनाए खाने के लिए उसे ताना मारना, टीवी देखने नहीं देते थे, उसे पड़ोसियों से मिलने नहीं देना, उसे कालीन पर सुलाते थे, उसे अकेले कचरा फेंकने के लिए भेजते थे. इसके अलावा महिला के परिवार के सदस्यों ने दावा किया था कि उसे आधी रात को पानी लाने के लिए मजबूर किया जाता था.

अदालत ने अपने फैसले में आईपीसी की धारा 498ए का हवाला देते हुए कहा कि व्यक्ति और उसके परिवार के खिलाफ लगाए गए आरोप इस प्रावधान के तहत अपराध नहीं माने जाएंगे. बता दें कि ससुराल वालों के इस व्यवहार के तंग आकर महिला ने 1 मई, 2002 को आत्महत्या कर ली था. अप्रैल 2004 में जलगांव जिले की एक ट्रायल कोर्ट ने ससुराल वालों और पति को आईपीसी की धारा 498ए और 306 के तहत दोषी ठहराया.

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