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अब दुश्मन देश की बढ़ेंगी मुश्किलें, भारत ने तैयार किया खास विमान, जानें खूबियां

भारतीय वैज्ञानिकों ने हवा में उड़ने वाले एक ऐसे विमान को तैयार किया है, जो अद्भुत खूबियों से लैस होगा. इस प्लेन को सोलर एनर्जी की मदद से उड़ाया जा सकता है. इतना ही नहीं 90 दिनों से भी अधिक समय तक हवा में रह कर उड़ान भरने में यह सक्षम होगा. इसके छोटे आकार का वर्जन लगातार 10 घंटे तक उड़ सकता है.

अब दुश्मन देश की बढ़ेंगी मुश्किलें, भारत ने तैयार किया खास विमान, जानें खूबियां
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( Image Source:  Meta AI )
सार्थक अरोड़ा
सार्थक अरोड़ा

Updated on: 21 Dec 2025 9:52 PM IST

भारतीय वैज्ञानिकों ने हवा में उड़ने वाले एक ऐसे विमान को तैयार किया है, जो अद्भुत खूबियों से लैस होगा. इस प्लेन को सोलर एनर्जी की मदद से उड़ाया जा सकता है. इतना ही नहीं 90 दिनों से भी अधिक समय तक हवा में रह कर उड़ान भरने में यह सक्षम होगा. इसके छोटे आकार का वर्जन लगातार 10 घंटे तक उड़ सकता है.

HAP यानी High Altitude Platform इस नाम से इस प्लेन को जाना जा सकता है. इसे नेशनल एयरोस्पेस लैर्बोटेरी बेंगलुरु में निर्मित किया गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह प्लेन सौर ऊर्जा के साथ-साथ खुद चलने में यानी मानवरहित विमान होगा. मिली जानकारी के अनुसार 17 से 20 किलोमीटर की ऊंचाई पर इसे मीहनों भर तक दिन रात के लिए उड़ाया जा सकता है.पेलोड वाले HAP को अक्सर हाई-एल्टीट्यूड स्यूडो सैटेलाइट (HAPS) के रूप में जाना जाता है. इस विमान के पंखों का फैलाव लगभग 12 मीटर है. वजन 22 किलोग्राम से भी कम है.

लड़ाई में कारगर होगा साबित

NAL के मुताबिर इस विमान को लड़ाई में यदि उपयोग किया जाए तो यह काफी कारगर साबित हो सकता है. इसकी मदद से दिन रात हवा में उड़ाकर किसी भी क्षेत्र पर आसानी से कड़ी निगरानी रखी जा सकती है. बेहद आसानी से इस प्लेन की मदद से दुश्मनों के ठिकानों पर शिकंजा कसा जा सरका है. दुश्मनों की हरेक गतिविधि पर भी इस प्लेन की मदद से नजर रखी जा सकती है. यह युद्धक्षेत्र में संचार की सुविधा प्रदान कर सकता है. इससे दूसरे विमानों को गाइडेंस दिया जा सकता है.

64 दिनों तक भरता है उड़ान

ऐसा नहीं है कि अब तक ऐसे किसी विमान का निर्माण किसी ने न किया हो. आपको बता दें कि अमेरिका के HAPS एयरबेस जेफायर विमान जिसने अमेरिका के एरिजोना रेगिस्तान में 64 दिनों तक लगातार उड़ान का प्रदर्शन किया था. अब तक अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी और न्यूजीलैंड सहित दुनिया भर में ऐसे प्लेटफॉर्म विकसित करने के लिए काम हो रहा है.

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