50 साल पुराना सवाल...कैसे और किसने की थी पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या? पढ़ें उनके चर्चित किस्से
Pandit Deendayal Upadhyaya Punyatithi: साल 2025 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 56वीं पुण्यतिथि मंगलवार 11 फरवरी को है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जनसंघ (आज की भारतीय जनता पार्टी के पूर्व रूप) के प्रमुख विचारक, संगठनकर्ता और राष्ट्रवादी नेता थे.

Pandit Deendayal Upadhyaya Punyatithi: साल 2025 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 56वीं पुण्यतिथि मंगलवार 11 फरवरी को है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जनसंघ (आज की भारतीय जनता पार्टी के पूर्व रूप) के प्रमुख विचारक, संगठनकर्ता और राष्ट्रवादी नेता थे. 11 फरवरी 1968 को वे रहस्यमयी परिस्थितियों में मुगलसराय रेलवे स्टेशन (अब पं. दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन) के पास मृत पाए गए थे. उनकी मृत्यु को लेकर हत्या की आशंका जताई गई थी, लेकिन आज तक इसका रहस्य पूरी तरह से सुलझ नहीं पाया.
दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन "एकात्म मानववाद" पर आधारित था, जिसमें भारतीय संस्कृति के अनुरूप राष्ट्र, समाज और व्यक्ति के समग्र विकास की बात की गई थी. वे "अंत्योदय" यानी समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने के सिद्धांत के समर्थक थे. उनकी पुण्यतिथि पर हर साल बीजेपी और अन्य संगठनों द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है और उनके विचारों पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
Deendayal Upadhyaya की रहस्यमयी मौत
मुग़लसराय स्टेशन की रेल पटरियों पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय का शव मिलने के बाद, जिसे 2018 में दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन नाम दिया गया, केंद्र सरकार ने मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंपी थी. उस समय CBI के निदेशक जॉन लोबो थे, जो एक ईमानदार और निष्पक्ष अधिकारी के रूप में जाने जाते थे. जैसे ही जांच CBI को सौंपी गई, लोबो अपनी टीम के साथ मुग़लसराय पहुंचे. लेकिन जांच के पूरा होने से पहले ही उन्हें अचानक वापस बुला लिया गया. इस घटनाक्रम के बाद संदेह जताया जाने लगा कि जांच की दिशा को प्रभावित किया जा रहा था.
अपनी अंतिम रिपोर्ट में CBI ने निष्कर्ष दिया कि यह एक सामान्य अपराध था. रिपोर्ट के अनुसार, दो मामूली चोरों ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या कर दी थी और उनका मकसद सिर्फ चोरी था. हालांकि, इस निष्कर्ष पर कई लोगों ने सवाल उठाए और इसे लेकर विभिन्न राजनीतिक और ऐतिहासिक चर्चाएं होती रहीं.
एक बार जब वे भारतीय जनसंघ के बड़े नेता बन चुके थे, तब उनके पास पैसों की तंगी थी. उनके पास पहनने के लिए सिर्फ एक जोड़ी धोती-कुर्ता और एक चप्पल थी. किसी कार्यकर्ता ने उनसे कहा- 'दीनदयाल जी, अब आपको अच्छे कपड़े पहनने चाहिए, आपकी छवि नेता की तरह दिखनी चाहिए. इस पर उन्होंने मुस्कुराकर जवाब दिया. "नेता की छवि कपड़ों से नहीं, चरित्र से बनती है. उनकी यह सादगी आज भी कई लोगों के लिए आदर्श बनी हुई है.
ट्रेन की सेकेंड क्लास टिकट भी नहीं ली
1960 के दशक में जब वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने, तब वे दिल्ली से मुंबई किसी कार्य के लिए जा रहे थे. पार्टी कार्यकर्ताओं ने उन्हें ट्रेन की सेकेंड क्लास टिकट दिलाने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने कहा, 'जब पार्टी के कार्यकर्ता जनरल क्लास में सफर करते हैं, तो मुझे भी वही करना चाहिए.' वे जनरल डिब्बे में ही सफर करते रहे और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर उनकी समस्याएं सुनते थे.
पहली बार चुनाव लड़ा, लेकिन हारकर भी खुश थे
पंडित जी ने 1953 में उत्तर प्रदेश के मथुरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा. उनके पास न धन था, न प्रचार के लिए संसाधन. वे साइकिल पर बैठकर गांव-गांव प्रचार करने जाते थे. चुनाव में उन्हें करारी हार मिली, लेकिन उन्होंने अपने समर्थकों से कहा 'हमारे लिए हार-जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण है समाज में अपने विचारों को स्थापित करना. हारने के बाद भी हमने लाखों लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली और बोले यही हमारी जीत है.
उनके पास अपना घर नहीं था
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का पूरा जीवन संघ और जनसंघ को समर्पित रहा. जब उनकी मृत्यु हुई, तब उनके नाम पर कोई संपत्ति, बैंक बैलेंस या जमीन-जायदाद नहीं थी. वे अक्सर कहते थे. 'नेता का असली घर जनता का दिल होता है. अगर वह वहां जगह बना ले, तो उसे किसी मकान की जरूरत नहीं. आज भी उनके विचार और उनकी सादगी राजनीति में आदर्श माने जाते हैं.