सार्वजनिक स्थान पर महिला को देखना और तस्वीर लेना अपराध नहीं: HC का फैसला
कोच्चि उच्च न्यायालय ने एक मामले में यह स्पष्ट किया है कि अगर कोई महिला सार्वजनिक या ऐसे निजी स्थान पर है जहाँ उसे गोपनीयता की अपेक्षा नहीं है, तो उस स्थिति में उस पर ताक-झांक (वॉयरिज्म) का अपराध लागू नहीं होता.

कोच्चि उच्च न्यायालय ने एक मामले में यह स्पष्ट किया है कि अगर कोई महिला सार्वजनिक या ऐसे निजी स्थान पर है जहाँ उसे गोपनीयता की अपेक्षा नहीं है, तो उस स्थिति में उस पर ताक-झांक (वॉयरिज्म) का अपराध लागू नहीं होता. यह फैसला महिलाओं की सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा के पहलू को ध्यान में रखते हुए किया गया है.
न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन ने यह निर्णय दो आरोपियों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनाया, जिसमें आरोपियों पर एक महिला की तस्वीरें लेने और यौन इशारे करने का आरोप था. घटना 2022 की है, जब महिला अपने घर के बाहर खड़ी थी और आरोपी कार में आया, महिला की और उसके घर की तस्वीरें लीं, और उसके पास आकर अनुचित इशारे किए. इस पर पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354सी (ताक-झांक) और धारा 509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने) के तहत मामला दर्ज किया था.
कोर्ट ने क्यों नहीं माना ताक-झांक का मामला?
याचिका पर विचार करते हुए, कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि ताक-झांक का अपराध तभी लागू होता है जब किसी महिला को उसके निजी कार्यों के दौरान गोपनीयता की अपेक्षा होती है. चूंकि यह घटना महिला के घर के सामने हुई थी, जो कि सार्वजनिक स्थल माना जा सकता है, इसलिए इसे ताक-झांक का अपराध नहीं माना गया.
क्या अन्य धाराएं लागू हो सकती हैं?
हालाँकि अदालत ने ताक-झांक का आरोप रद्द कर दिया, लेकिन न्यायालय ने यह भी कहा कि आरोपियों के कृत्य आईपीसी की धारा 354ए(1)(i) और (iv) के तहत यौन उत्पीड़न के दायरे में आ सकते हैं. अब यह ट्रायल कोर्ट पर निर्भर है कि वह इन धाराओं के तहत पर्याप्त सबूतों के आधार पर आगे की कार्रवाई तय करे. साथ ही, अदालत ने आरोपी पर धारा 509 के तहत कार्यवाही जारी रखने की अनुमति भी दी है.
यह फैसला एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि महिलाओं की सार्वजनिक और निजी स्थानों पर सुरक्षा का क्या दायरा है.