नाबालिग हुई गर्भवती, मां बनी तो हुई बालिग, अस्पताल से डिस्चार्ज न मिलने पर कोर्ट ने सुना दिया ये फैसला
मुंबई से एक खबर आ रही है जहां एक महिला अपने दोस्त के साथ शारीरिक संबंध में थी और वह प्रेग्नेंट हो गई थी, जब महिला प्रेगनेंट हुई तो वह नाबालिग थी लेकिन जब उसने शिशु को जन्म दिया तो वह बालिग़ हो गई थी. इस मामले में अस्पताल वाले महिले को डिस्चार्ज नहीं दे रहे थे, इस पर हाई कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया है.

मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई के नायर अस्पताल को आदेश दिया है कि वह 18 साल की एक महिला और उसके नवजात बच्चे को बिना किसी पुलिस शिकायत दर्ज किए तुरंत डिस्चार्ज करे. यह आदेश उस समय आया जब अस्पताल ने महिला को इसलिए डिस्चार्ज करने से मना कर दिया था क्योंकि वह नाबालिग रहते हुए प्रेग्नेंट हो गई थी.
जस्टिस बर्गेस कोलाबावाला और सोमशेखर सुंदरसन ने महिला की मां की याचिका पर विचार किया और शुक्रवार को फैसला सुनाया. उन्होंने कहा, "पहले से ही दर्ज की गई एफआईआर को देखते हुए, नायर अस्पताल को महिला और उसके बच्चे को डिस्चार्ज करने में कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए."
केस पर कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने इस मामले को "अजीब और जटिल" माना. दरअसल, महिला अगस्त में 18 साल की हो चुकी है और उसका अपने मित्र के साथ संबंध था. उनके बीच हुए शारिरिक संबंध के चलते वह प्रेग्नेंट हो गई, और उस समय वह 17 साल और कुछ महीने की थी. अस्पताल में भर्ती होने के दौरान इस बात की जानकारी मिलने पर अस्पताल ने इसे पोक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत पुलिस स्टेशन को इस बात की जानकारी दे दी.
नायर अस्पताल में जांच के समय, यह पाया गया कि लड़की जब प्रेग्नेंट हुई तो वह नाबालिग थी. अस्पताल ने उसकी डिटेल पुलिस स्टेशन को भेज दी. 11 अक्टूबर को महिला ने बच्चे को जन्म दिया.
बच्चे को गोद देने की प्रक्रिया और मां की याचिका
महिला ने बच्चे को गोद देने का फैसला किया था, परंतु अस्पताल पुलिस शिकायत दर्ज किए बिना उसे छुट्टी नहीं दे रहा था. ऐसे में, महिला की मां ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की ताकि उनकी बेटी को डिस्चार्ज किया जा सके और गोद देने की प्रक्रिया शुरू की जा सके. इन-चैंबर सुनवाई में, सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने कोर्ट को बताया कि महिला के प्रेमी के खिलाफ पहले से एफआईआर दर्ज है. मां के वकील ने कोर्ट को बताया कि महिला और उसके प्रेमी के बीच संबंध सहमति से थे और वे प्रेमी के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं चाहते.
याचिका का निपटाते हुए न्यायाधीशों ने आदेश दिया कि महिला और उसके बच्चे को तुरंत बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee) के समक्ष पेश किया जाए ताकि बच्चे को गोद देने की प्रक्रिया पूरी की जा सके.