इग्नोर नहीं कर सकते सुसाइड केस में मरने से पहले का बयान, गुजरात HC ने 15 साल पुराने केस में सुनाया फैसला
15 साल पुराने मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को पलटकर पीड़ित के मरने से पहले दिए गए बयान को आधार बनाकर फैसला सुनाते हुए आत्महत्या के लिए पति को उकसाने के लिए आरोपी मान उसपर केस चलाने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने पीड़ित के मरने से पहले दिए गए बयान को आधार बनाकर उसके हक में फैसला सुनाया है.

गुजरात हाई कोर्ट ने क्रूरता और आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी पति को बरी करने के 15 साल पुराने निचली अदालत के आदेश को पलट दिया. हाईकोर्ट ने मृत पत्नी के मरने से पहले दिए गए बयान को आधार माना और कहा कि ऐसा नहीं है कि मेंटल हेल्थ के संबंध में किसी डॉक्टर का बयान न मिलने से उसके बयान को आधार माना नहीं जा सकता.
जज निशा ठाकोर ने लक्ष्मण बनाम महाराष्ट्र राज्य (2002) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए कहा, "सिर्फ इसलिए कि मृतका के बयान में उसकी मेंटल हेल्थ की पुष्टि डॉक्टर द्वारा नहीं की गई, इसका मतलब यह नहीं है कि बयान गलत है."
पति पर आरोप
मृतका की पुलिस और मजिस्ट्रेट के सामने दी गई गवाही के आधार पर पति पर आईपीसी की धारा 498ए (cruelty), 306 (सुसाइड के लिए उकसाना) और 504 (अपमान) के तहत मामला दर्ज हुआ था. पत्नी ने कहा था कि उसका पति उसे पीटता था, उस पर शक करता था और परेशान होने के कारण उसने खुद को आग लगा ली थी. इलाज के लिए हॉस्पीटल में भर्ती होने के 22 दिन बाद ही उसकी मौत हो गई और इस बीच के समय में ही बयान दर्ज कर लिया गया था.
ट्रायल कोर्ट का आदेश
अगस्त 2009 में सेशन कोर्ट ने पति को बरी कर दिया था. हाई कोर्ट ने इस फैसले को गलत ठहराते हुए कहा कि मृतका के बयान को नजरअंदाज करना गलती थी. जज ठाकोर ने कहा कि मृतका के बयान में कुछ ऐसा नहीं कहा गया था कि, लगे कि उसको कुछ सिखाया गया हो.
मरने से पहले दिए बयान का महत्व
हाई कोर्ट ने मृतका के बयान को Indian Evidence Act के सेक्शन 32 के तहत स्वीकार किया और कहा कि बयान आरोपी के क्राइम की ओर इशारा करता है. मृतका के बयान से यह स्पष्ट होता है कि वह और उसके बच्चे मेंटल और फिजिकल रूप से प्रताड़ित किए जा रहे थे.
पीड़िता का बयान
अदालत ने कहा कि हालांकि मृतका के रिश्तेदार और गवाह अपने बयान से मुकर गए, लेकिन मृतका का मरने से पहले दिया गया बयान खुद ही सच्चाई को सामने लाने के लिए काफी है. बयान में पिछली घटनाओं के बारे में अच्छे और सही तरीके से बताया नहीं गया था, फिर भी यह बयान अपने आप में विश्वास करने के लिए काफी है.
निचली अदालत का फैसला पलटा
उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए, 306 और 504 के तहत सजा का नोटिस जारी किया, जिसका जवाब 25 अक्टूबर तक देना है.