डिजिटल कंटेंट पर सरकार सख़्त: OTT पर अश्लीलता रोकने की तैयारी, IT Rules 2021 में होंगे ये बड़े बदलाव
केंद्र सरकार IT Rules 2021 में बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है, जिनके तहत OTT और डिजिटल न्यूज़ प्लेटफॉर्म्स पर “अश्लीलता” की परिभाषा काफी बढ़ाई जा सकती है. झूठे आरोप, हाफ-ट्रुथ्स, एंटी-नेशनल एटिट्यूड्स और राजनीतिक आलोचना भी आपत्तिजनक कंटेंट माने जा सकते हैं. एंटी-टेरर ऑपरेशन की लाइव कवरेज पर रोक, कोड ऑफ एथिक्स के उल्लंघन पर भारी पेनल्टी और सख्त मॉनिटरिंग की संभावना है. विशेषज्ञों के अनुसार यह प्रेस स्वतंत्रता और फ्री स्पीच को सीमित कर सकता है.
भारत में डिजिटल सामग्री, OTT और ऑनलाइन न्यूज़ प्लेटफॉर्म्स के तेजी से बढ़ते प्रभाव के बीच केंद्र सरकार अब Information Technology (IT) Rules 2021 में बड़े बदलाव की तैयारी में है. ये बदलाव ‘अश्लील’ कंटेंट की मौजूदा परिभाषा को काफी विस्तार देने वाले हो सकते हैं. The Indian Express की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ‘अश्लीलता’ की एक नई और विस्तृत परिभाषा पर विचार कर रही है, जिसमें केवल अश्लील दृश्य या भाषा ही नहीं, बल्कि झूठे आरोप, हाफ-ट्रुथ्स, एंटी-नेशनल एटिट्यूड्स, और कुछ प्रकार की आलोचना को भी शामिल किया जा सकता है.
सूत्रों के अनुसार, Part III of IT Rules में संशोधन प्रस्तावित हैं, जिनके तहत डिजिटल न्यूज़ प्लेटफॉर्म, OTT सेवाओं (जैसे Netflix, Prime Video, Hotstar) और वीडियो-ऑन-डिमांड चैनलों को ऐसे किसी भी कंटेंट को प्रकाशित करने से रोका जा सकता है, जो:
- अच्छी रुचि और शालीनता के खिलाफ हो
- किसी जाति, धर्म, नस्ल, रंग, राष्ट्रीयता पर व्यंग्य या हमला करे
- किसी धर्म या समुदाय पर हमला करे
- झूठे, भ्रामक, suggestive innuendos, हाफ ट्रुथ्स शामिल करे
- अपराध के लिए उकसाए
- एंटी-नेशनल एटिट्यूड्स को बढ़ावा दे
- किसी व्यक्ति, समूह या समाज के किसी वर्ग को बदनाम करे या उनकी आलोचना करे
- महिलाओं, बच्चों या दिव्यांगों के प्रति अपमानजनक या अवमाननापूर्ण हो
- किसी विशेष जातीय, भाषाई या क्षेत्रीय समूह का तिरस्कारपूर्ण चित्रण करे
नए नियमों के तहत ये सब “अश्लीलता” या objectionable content की श्रेणी में आ सकते हैं.
रणवीर अल्लाहबदिया विवाद के बाद बढ़ी सख्ती
यह प्रस्ताव उसी संदर्भ में आया है जब कुछ महीने पहले यूट्यूबर Ranveer Allahbadia (BeerBiceps) के एक शो पर अश्लीलता और आपत्तिजनक सामग्री का आरोप लगा था. सुप्रीम कोर्ट ने उसे गिरफ्तारी से सुरक्षा दी थी, लेकिन साथ ही केंद्र से पूछा था कि क्या वह ऑनलाइन अश्लील कंटेंट को रोकने के लिए कदम उठाने जा रहा है. यही वह बिंदु है जिसके बाद MIB (सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय) ने यह समीक्षा शुरू की.
नया कोड ऑफ एथिक्स: डिजिटल मीडिया के लिए सख्त नियम
सरकार ‘अश्लील’ कंटेंट के लिए एक नया कोड ऑफ एथिक्स जोड़ने की योजना बना रही है. इसमें डिजिटल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे ऐसी किसी भी सामग्री को न दिखाएं जो समाज के नैतिक जीवन की आलोचना, बदनामी या व्यंग्य करती हो, व्यक्तियों या समूहों का चरित्र हनन करती हो, धार्मिक या सामाजिक समूहों पर आक्षेप लगाती हो, हाफ-ट्रुथ्स, defamatory content या suggestive innuendos दिखाती हो और राष्ट्र-विरोधी भावना पैदा करती हो. यह पहली बार होगा कि "criticism of public figures or segments of public life" को भी अश्लीलता की श्रेणी में लाने पर विचार किया जा रहा है.
एंटी-टेरर ऑपरेशनों की लाइव कवरेज भी ‘अश्लील’ मानी जा सकती है
नई रूपरेखा में सुरक्षा से जुड़े बड़े बदलाव भी नजर आते हैं. सरकार विचार कर रही है कि एंटी-टेरर ऑपरेशनों की लाइव कवरेज को भी "obscene or harmful" माना जाए. मीडिया को केवल एक designated officer द्वारा दी जाने वाली आधिकारिक ब्रीफिंग तक सीमित किया जाए. इसका उद्देश्य सुरक्षा बलों के ऑपरेशनों में बाधा रोकना और संवेदनशील जानकारी का दुरुपयोग रोकना बताया जा रहा है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग की चिंता
इस साल की शुरुआत में, MIB ने संसदीय स्थायी समिति को बताया था कि डिजिटल प्लेटफॉर्म "freedom of expression" की आड़ में अश्लील और हिंसक कंटेंट बढ़ा रहे हैं और समाज में इसकी चिंता बढ़ रही है. इससे निपटने के लिए मौजूदा कानून अपर्याप्त हैं इसलिए एक कठोर और प्रभावी कानूनी ढांचे की आवश्यकता है. सरकार पहले ही यह कह चुकी है कि वह मौजूदा कानूनों की समीक्षा कर रही है और जरूरत पड़ने पर नया फ्रेमवर्क लाएगी.
IT Rules 2021: पहले से क्या व्यवस्था है?
वर्तमान IT Rules 2021 के Part III में प्लेटफॉर्म्स के लिए 3-स्तरीय ग्रिवेंस मैकेनिज़्म अनिवार्य है, कोड ऑफ एथिक्स लागू है. साथ ही अश्लील, गैरकानूनी और बच्चों के लिए खतरनाक कंटेंट पर रोक है. इसके अलावा उम्र आधारित कंटेंट क्लासिफिकेशन जरूरी है. लेकिन इन नियमों को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट, मद्रास हाईकोर्ट और केरल हाईकोर्ट ने रोक लगा रखी है. देशभर में 15 से ज्यादा याचिकाएं लंबित हैं. 2021 में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया था कि सभी याचिकाओं को एक जगह ट्रांसफर किया जाए ताकि अलग-अलग फैसलों का टकराव न हो. अब सभी याचिकाएं दिल्ली हाईकोर्ट को भेजी जा चुकी हैं और सुनवाई जारी है.
क्या आने वाले दिनों में डिजिटल स्पेस और सीमित होगा?
प्रस्तावित संशोधनों के लागू होने पर OTT और डिजिटल न्यूज़ प्लेटफॉर्म्स पर ऐसी स्थिति बन सकती है जो सख्त सेंसरशिप जैसी लगे. राजनीतिक व्यंग्य, क्रिटिसिज़म, डॉक्यूमेंट्री या किसी भी तरह के एक्सपोज़ को “अश्लील” या “अपमानजनक” श्रेणी में रखा जा सकता है. इसी तरह “हाफ-ट्रुथ्स” जैसी परिभाषा काफी विषयगत है, जो प्रेस की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल उठाती है और आगे भारी विवाद का कारण बन सकती है. इन नियमों के बाद न्यूज़ मीडिया की लाइव रिपोर्टिंग भी सीमित होने का खतरा है. एंटी-टेरर ऑपरेशनों की ऑन-ग्राउंड कवरेज लगभग नामुमकिन हो सकती है. डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए भारी जुर्माना या पेनल्टी का भी खतरा बढ़ जाएगा, अगर वे किसी भी तरह कोड ऑफ एथिक्स का उल्लंघन करते पाए गए. यही नहीं, राजनीतिक आलोचना तक पर प्रतिबंध की आशंका जताई जा रही है - और यही वह कारण है जिसने डिजिटल पत्रकारिता विशेषज्ञों और फ्री स्पीच समूहों के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है.
डिजिटल इंडिया में अभिव्यक्ति पर नई बहस
केंद्र सरकार का तर्क है कि डिजिटल स्पेस में बढ़ती अश्लीलता, हिंसा और गलत सूचना को रोकना जरूरी है. लेकिन आलोचकों का कहना है कि इतनी व्यापक और अस्पष्ट परिभाषाएं फ्री स्पीच और स्वतंत्र मीडिया पर अंकुश लगा सकती हैं. अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि MIB इन नियमों का अंतिम ड्राफ्ट कैसा पेश करता है, अदालत में लंबित सुनवाई क्या दिशा लेती है और क्या भारत डिजिटल मीडिया रेगुलेशन के एक नए युग में प्रवेश करने वाला है.





