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ना-पाक को गले लगाया, गंवाई दोस्ती, टैरिफ से ट्रंप ने मार ली खुद के पैर पर कुल्हाड़ी! भारत को मिला पश्चिमी देशों का समर्थन

भारत अक्सर वैश्विक चर्चाओं में आलोचना का शिकार होता है, लेकिन इस बार हालात अलग हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से भारत पर बढ़ते दबाव और टकराव के संकेतों के बीच, पश्चिमी विशेषज्ञों और वैश्विक मीडिया जगत में नई दिल्ली के पक्ष में समर्थन दिखाई दे रहा है. अमेरिका के भीतर और बाहर, कई विश्लेषक मानते हैं कि वॉशिंगटन का यह रुख न केवल भारत-अमेरिका रिश्तों को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि लंबे समय से चली आ रही रणनीतिक साझेदारी को भी खतरे में डाल रहा है.

ना-पाक को गले लगाया, गंवाई दोस्ती,  टैरिफ से ट्रंप ने मार ली खुद के पैर पर कुल्हाड़ी! भारत को मिला पश्चिमी देशों का समर्थन
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सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Updated on: 29 Aug 2025 6:57 AM IST

भारत अक्सर वैश्विक चर्चाओं में आलोचना का शिकार होता है, लेकिन इस बार हालात अलग हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से भारत पर बढ़ते दबाव और टकराव के संकेतों के बीच, पश्चिमी विशेषज्ञों और वैश्विक मीडिया जगत में नई दिल्ली के पक्ष में समर्थन दिखाई दे रहा है. अमेरिका के भीतर और बाहर, कई विश्लेषक मानते हैं कि वॉशिंगटन का यह रुख न केवल भारत-अमेरिका रिश्तों को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि लंबे समय से चली आ रही रणनीतिक साझेदारी को भी खतरे में डाल रहा है.

दरअसल, हाल ही में अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट ने यूरोप से भारत के खिलाफ सख्ती अपनाने की अपील की. उन्होंने आरोप लगाया कि यूरोपीय देश भारत पर टैरिफ बढ़ाने में सहयोग नहीं कर रहे. यह कदम उस समय उठाया गया जब भारत और यूरोपीय संघ एक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को अंतिम रूप देने की दिशा में बातचीत कर रहे हैं.

भारत पर अमेरिकी दबाव और टैरिफ विवाद

बेसेंट ने फॉक्स न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में कहा, 'हमें अपने यूरोपीय साझेदारों से और ज़्यादा ठोस सहयोग की ज़रूरत है...मुझे नहीं लगता कि वे भारत पर टैरिफ लगाने की धमकी देंगे. उन्होंने साफ किया कि जब तक भारत पीछे नहीं हटता, ट्रंप भी टैरिफ मुद्दे पर झुकने वाले नहीं हैं. हालांकि बेसेंट का यह भी कहना था कि लोकतांत्रिक और बाजार-उन्मुख सोच के चलते 'भारत और अमेरिका अंततः एक साथ आ जाएंगे. लेकिन फिलहाल रिश्तों में खटास साफ दिख रही है.

वीज़ा पॉलिसी में भी भारत को निशाना

ट्रंप प्रशासन ने केवल व्यापार ही नहीं, बल्कि यात्रा, बिज़नेस और स्टूडेंट वीज़ा पर भी पाबंदियां कड़ी कर दी हैं. अमेरिकी प्रशासन का दावा है कि वीज़ा के दुरुपयोग का सबसे बड़ा स्रोत भारत है. इस कदम से सबसे ज्यादा प्रभावित भारतीय छात्र और कारोबारी होंगे, क्योंकि अमेरिका के साथ उनका वीज़ा ट्रैफिक काफी बड़ा है.

अमेरिकी विशेषज्ञों का करारा जवाब

अमेरिका के कई रणनीतिक विशेषज्ञ ट्रंप सरकार की इस नीति से सहमत नहीं हैं. कार्नेगी एंडॉमेंट से जुड़े और पूर्व स्टेट डिपार्टमेंट अधिकारी एवन फाइगेनबाम ने कड़ा बयान देते हुए कहा, “यूक्रेन का संघर्ष पुतिन की जंग है, 'मोदी की जंग’ नहीं… इस वक्त यह तोड़फोड़ है, बिल्कुल साफ और सीधी.' उन्होंने आगे जोड़ा, "इस नतीजे से बच पाना मुश्किल है कि अमेरिका की तरफ़ के कुछ लोग ऐसे आगज़नी करने वाले हैं, जो जानबूझकर अमेरिका-भारत संबंधों को बनाने में हुई 25 साल की मेहनत को जला रहे हैं।"

अमेरिकी मीडिया भी भारत के साथ

ब्रिटिश पत्रिका The Economist ने भी ट्रंप की नीतियों की आलोचना करते हुए लिखा कि पाकिस्तान को गले लगाकर और भारत को दूर धकेलकर अमेरिका ने अपनी ही रणनीति को नुकसान पहुंचाया है. पत्रिका ने लिखा, 'अमेरिका का भारत को अलग-थलग करना एक गंभीर गलती है. भारत के लिए यह एक अवसर का क्षण है. अपने आप को 'उभरती महाशक्ति' साबित करने का निर्णायक इम्तिहान. 'लेख में कहा गया कि भारत का रूसी तेल खरीदना 'grubby' जरूर है, लेकिन चूंकि यह वेस्टर्न प्राइस कैप स्कीम के तहत होता है और भारत यूरोप को पेट्रोलियम उत्पाद बेचता है, इसलिए केवल भारत को दंडित करना अनुचित है.

भारत के लिए नया अवसर

अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड वोल्फ ने चेतावनी दी कि इस नीति से अमेरिका को ही नुकसान होगा. उन्होंने कहा, 'भारत अब अपना निर्यात अमेरिका को नहीं बेचेगा, बल्कि बाकी ब्रिक्स देशों को बेचेगा. आप जो कर रहे हैं, वह है एक ग्रीनहाउस जैसी प्रक्रिया में ब्रिक्स को लगातार बड़ा, अधिक एकीकृत और पश्चिम के मुकाबले अधिक सफल आर्थिक विकल्प के रूप में विकसित करना.' विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति भारत के लिए नए अवसर लेकर आई है. पश्चिम से बढ़ते टकराव के बीच भारत अपने बाजारों को ब्रिक्स और एशियाई देशों में और मजबूत कर सकता है, साथ ही चीन के खिलाफ अपनी कूटनीति को और धार दे सकता है.

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