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भारत में 25 फीसदी कम हो गए हाथी, देश के पहले DNA आधारित सर्वे ने खोली जंगलों की सच्चाई

भारत के पहले DNA आधारित हाथी सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है कि देश में जंगली हाथियों की संख्या पिछले आठ वर्षों में 25% घटकर 22,446 रह गई है. साल 2017 में इनकी संख्या 29,964 थी। यह अध्ययन वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) द्वारा किया गया, जिसमें पारंपरिक दृश्य या गोबर आधारित गणना की जगह DNA मार्क-रिकैप्चर तकनीक का इस्तेमाल किया गया.

भारत में 25 फीसदी कम हो गए हाथी, देश के पहले DNA आधारित सर्वे ने खोली जंगलों की सच्चाई
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 15 Oct 2025 10:52 AM

भारत में जंगली हाथियों की संख्या बीते आठ वर्षों में करीब 25% घट गई है, जो जंगलों के सिकुड़ते दायरे और इंसान-हाथी टकराव की बढ़ती घटनाओं की गवाही देती है. देश के पहले DNA आधारित राष्ट्रीय सर्वेक्षण में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘स्टेटस ऑफ एलिफेंट्स इन इंडिया: DNA-बेस्ड सिंक्रोनस ऑल-इंडिया पॉप्युलेशन एस्टीमेशन ऑफ एलिफेंट्स (SAIEE 2021-25)’ नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में भारत में 22,446 हाथी बचे हैं, जबकि वर्ष 2017 में इनकी संख्या 29,964 थी. यानी महज आठ सालों में लगभग 7,500 हाथियों की कमी दर्ज की गई. इस रिपोर्ट को वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) ने तैयार किया है और यह भारत के वन्यजीव संरक्षण इतिहास में एक बड़ा वैज्ञानिक कदम माना जा रहा है.

DNA से मिली असल तस्वीर

रिपोर्ट के मुताबिक, यह सर्वेक्षण पुराने तरीकों से एक बड़ा बदलाव है. पहले हाथियों की गिनती दृश्य गणना या गोबर के ढेर (dung count) के आधार पर की जाती थी. लेकिन विशेषज्ञों का कहना था कि इन तरीकों में सटीकता की कमी रहती थी, खासकर उन इलाकों में जहां जंगल बिखरे हुए हैं या इंसानी गतिविधियां ज्यादा हैं.

Image Credit: ANI

नए DNA मार्क-रिकैप्चर तकनीक से वैज्ञानिक अब हाथियों की पहचान उनके जिनेटिक सिग्नेचर (genetic signature) के जरिए कर पा रहे हैं. यह वही तकनीक है जो बाघों की गिनती के लिए प्रयोग की जाती है. WII के प्रमुख वैज्ञानिक और रिपोर्ट के मुख्य लेखक डॉ. कमर कुरैशी ने बताया कि यह अध्ययन दुनिया का पहला ऐसा व्यापक DNA आधारित हाथी सर्वेक्षण है. उन्होंने कहा, “यह एक विशाल वैज्ञानिक उपलब्धि है. भारत ने यह कदम उठाकर यह दिखाया है कि भविष्य का संरक्षण अब विज्ञान के साथ कदम से कदम मिलाकर चलेगा.”

हालांकि उन्होंने चेतावनी भी दी कि “जंगलों की कटाई, हैबिटेट का बिखरना और कॉरिडोर कनेक्टिविटी का टूटना अब हाथियों और इंसानों के बीच टकराव को खतरनाक रूप से बढ़ा रहा है.” उन्होंने कहा कि एक सकारात्मक पहलू यह है कि शिकार (poaching) के मामले घटे हैं, लेकिन हैबिटेट लॉस यानी आवास की कमी सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है.

‘नया डेटा, नया बेसलाइन’

WII के डायरेक्टर जी.एस. भारद्वाज ने कहा कि यह रिपोर्ट पुराने आंकड़ों से सीधे तुलना करने की बजाय एक नया वैज्ञानिक बेसलाइन (scientific baseline) तैयार करती है. उन्होंने कहा, “चूंकि पद्धति (methodology) पूरी तरह बदली है, इसलिए पुराने आंकड़ों से इसकी तुलना करना सही नहीं होगा. अब से भविष्य की मॉनिटरिंग इन्हीं वैज्ञानिक आंकड़ों पर आधारित होगी.”

कहां हैं भारत के सबसे ज्यादा हाथी?

राज्यवार आंकड़ों के मुताबिक, कर्नाटक में अब भी सबसे ज्यादा 6,013 हाथी हैं. इसके बाद असम (4,159), तमिलनाडु (3,136), केरल (2,785), उत्तराखंड (1,792) और ओडिशा (912). क्षेत्रवार देखें तो, वेस्टर्न घाट (Western Ghats) अब भी हाथियों का सबसे बड़ा गढ़ है, जहां 11,934 हाथी हैं - हालांकि 2017 में यहां 14,587 थे. पूर्वोत्तर पहाड़ियों और ब्रह्मपुत्र घाटी में 6,559 हाथी (2017 में 10,139). जबकि सेंट्रल इंडिया और ईस्टर्न घाट्स में संख्या घटकर 1,891 रह गई (2017 में 3,128 थी).

Image Credit: ANI

जंगल सिकुड़ रहे हैं, टकराव बढ़ रहा है

रिपोर्ट में कहा गया है कि वेस्टर्न घाट, जो कभी हाथियों का लगातार जुड़ा हुआ इलाका था, अब कॉफी और चाय के बागानों, कृषि बाड़ों, और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के कारण टुकड़ों में बंट चुका है. असम में सोनितपुर और गोलाघाट जिलों के जंगलों की कटाई ने ह्यूमन-एलिफेंट कॉन्फ्लिक्ट को और बढ़ा दिया है - जो पहले से ही देश में सबसे ज्यादा है.

सेंट्रल इंडिया के झारखंड, ओडिशा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तरी बंगाल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में तो हालात और भी गंभीर हैं. इन इलाकों में जंगलों को माइनिंग, शिफ्टिंग कल्टिवेशन और हाईवे-रेलवे जैसी लाइनों ने टुकड़ों में बांट दिया है. नतीजा - इन क्षेत्रों में देश के कुल हाथियों का 10% से भी कम हिस्सा रहता है, लेकिन देश में हाथियों द्वारा होने वाली मौतों का 45% यहीं होता है. शिवालिक और गंगा के मैदानी इलाकों - यानी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार - में 2,062 हाथी हैं, जो 2017 की तुलना में लगभग स्थिर हैं (2,085 थे).

DNA तकनीक कैसे काम करती है?

रिपोर्ट में बताया गया कि वैज्ञानिकों ने देशभर में 188,030 ट्रेल्स और ट्रांसेक्ट्स पर पैदल सर्वे किया, जो कुल 6,66,977 किलोमीटर लंबा था. इस दौरान 3,19,460 गोबर के ढेर (dung plots) की जांच की गई और 21,056 सैंपल इकट्ठा किए गए. इनसे 4,065 हाथियों की DNA प्रोफाइल तैयार की गई. DNA मार्क-रिकैप्चर तकनीक में जब किसी हाथी का जिनेटिक कोड किसी और जगह से दोबारा मिलता है, तो उसे ‘रिकैप्चर’ माना जाता है. इस डेटा को स्पेशियल कैप्चर-रिकैप्चर (SECR) मॉडल में डालकर कुल आबादी और घनत्व का सटीक अनुमान निकाला जाता है. क्योंकि हाथियों के पास बाघों की तरह कोई खास शारीरिक निशान नहीं होते, इसलिए DNA आधारित पहचान ही सबसे विश्वसनीय साबित हुई.

‘लैंडस्केप प्रोटेक्शन के लिए चेतावनी’

रिपोर्ट जारी करते समय एक WII वैज्ञानिक ने कहा कि यह नतीजे “ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ के जंगलों के लिए एक चेतावनी की घंटी” हैं. “अगर हमने अब भी अपने जंगलों और कॉरिडोर की सुरक्षा नहीं की, तो आने वाले वर्षों में हाथी केवल इतिहास की किताबों में रह जाएंगे,” उन्होंने कहा.

DNA आधारित यह पहली हाथी गणना भारत के वन्यजीव संरक्षण के इतिहास में एक मील का पत्थर है. लेकिन यह एक कठोर सच्चाई भी सामने लाती है कि देश में हाथियों की घटती संख्या हमारे जंगलों की बर्बादी और असंतुलित विकास की गवाही है. अगर समय रहते जंगलों की सुरक्षा और कॉरिडोर की पुनर्बहाली नहीं की गई, तो “गजगामिनी” भारत की धरती से धीरे-धीरे गायब होती चली जाएगी.

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