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चंद्रयान-3 को मिली एक और सफलता, साउथ पोल पर एक नई खोज, जानिए क्या है अपडेट?

चंद्रयान-3 ने अपने लैंडिंग स्थान के पास 160 किलोमीटर चौड़ा चंद्र गड्ढे की खोज की है. यह महत्वपूर्ण खोज उस समय हुई जब प्रज्ञान रोवर अपने लैंडिंग स्थल पर ऊंचे भूभाग से गुजर रहा था, जो कि दक्षिणी ध्रुव-ऐटकेन बेसिन से लगभग 350 किलोमीटर दूर है, जो कि चंद्र सतह पर सबसे बड़ा और सबसे पुराना प्रभाव बेसिन है.

चंद्रयान-3 को मिली एक और सफलता, साउथ पोल पर एक नई खोज, जानिए क्या है अपडेट?
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Credit- @Bhardwaj_A_2016
निशा श्रीवास्तव
Curated By: निशा श्रीवास्तव

Updated on: 23 Sept 2024 11:19 AM IST

Chandrayaan-3 Mission Update: भारत ने चंद्रयान-3 को लॉन्च करके इतिहास रच दिया है. इसकी सफल लैडिंग को एक साल से अधिक समय हो गया है. चंद्रयान लगातार चांद की सतह से अलग-अलग तस्वीरें भेज रहा है. अब इस बीच बड़ा अपडेट सामने आया है.

चंद्रयान-3 ने अपने लैंडिंग स्थान के पास 160 किलोमीटर चौड़ा चंद्र गड्ढे की खोज की है. इस नई खोज के बारे में अहमदाबाद के भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों द्वारा साइंस डायरेक्ट के नए अंक में प्रकाशित किया गया है. चांद पर क्या-क्या चीजें उपलब्ध हैं, इसको लेकर लगातार अपडेट आ रहे हैं और आगे भी कुछ नई चीजें सामने आ सकती हैं.

चांद पर क्रेटर की खोज

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र से प्रज्ञान रोवर द्वारा भेजे गए डेटा से अब एक प्राचीन क्रेटर की खोज हुई है. यह महत्वपूर्ण खोज उस समय हुई जब प्रज्ञान रोवर अपने लैंडिंग स्थल पर ऊंचे भूभाग से गुजर रहा था, जो कि दक्षिणी ध्रुव-ऐटकेन बेसिन से लगभग 350 किलोमीटर दूर है, जो कि चंद्र सतह पर सबसे बड़ा और सबसे पुराना प्रभाव बेसिन है.

कितना पुराना है गड्ढा?

माना जा रहा है कि यह गड्ढा दक्षिणी ध्रुव-ऐटकेन बेसिन के निर्माण से पहले बना था, जो इसे चंद्रमा की सबसे पुरानी भूवैज्ञानिक संरचनाओं में से एक बनाता है. गड्ढे की उम्र के कारण, यह ज़्यादातर बाद के प्रभावों, विशेष रूप से दक्षिणी ध्रुव-ऐटकेन घटना से मलबे में दब गया था और समय के साथ खराब हो गया है.

कैमरे में कैद हुई तस्वीरें

प्रज्ञान रोवर के नेविगेशन और ऑप्टिकल हाई-रिजोल्यूशन कैमरों द्वारा ली गई तस्वीरों से इस प्राचीन क्रेटर की संरचना का पता चला, जिससे चंद्रमा के भूवैज्ञानिक इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण सुराग मिले. इस क्रेटर की खोज से वैज्ञानिकों को चंद्रमा पर गहराई में दबे हुए पदार्थ का अध्ययन करने का दुर्लभ अवसर मिला है, जो चंद्रमा पर हुए कुछ प्रारंभिक प्रभावों से संबंधित है. आपको बता दें कि दक्षिणी ध्रुव-ऐटकेन बेसिन ने लगभग 1,400 मीटर मलबे का योगदान दिया, जबकि छोटे क्रेटरों और बेसिनों ने परिदृश्य में सैकड़ों मीटर सामग्री को जोड़ा. यह प्राचीन रेगोलिथ, चंद्रमा की सतह पर धूल और चट्टान की परत, चंद्र निर्माण और विकास को समझने के लिए महत्वपूर्ण है.

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