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मिनरल रॉयल्टी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा के लिए केंद्र सरकार ने दी याचिका, कहा- बढ़ेगा आर्थिक बोझ

नौ जजों की बेंच ने लिए मिनरल रॉयल्टी फैसले पर कहा था कि बकाया राशि पर ब्याज नहीं लगेगा.

मिनरल रॉयल्टी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा के लिए केंद्र सरकार ने दी याचिका, कहा- बढ़ेगा आर्थिक बोझ
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प्रतीकात्मक तस्वीर- ANI
हेमा पंत
by: हेमा पंत

Updated on: 12 Sept 2024 12:23 PM IST

सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की बेंच ने राज्यों से निकाले गए मिनरल्स पर रॉयल्टी लेने और खनिज वाली जमीन पर टैक्स लगाने के अधिकार देने के फैसले पर समीक्षा की मांग की है. वित्तिय बोझ का सामना करते हुए केंद्र ने अपने फैसले में साफ तौर पर दिखाई देने वाली गलतियों की ओर ईशारा करते हुए रिव्यू के लिए कहा है।

दिलचस्प बात यह है कि 25 जुलाई को हुई समीक्षा के लिए अदालत में सुनवाई करने के लिए मध्य प्रदेश को को-पिटिशिनर के रूप में शामिल किया है। इसमें यह कहा गया कि उनके द्वारा उठाया गया है यह विषय "देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित है और जनहित के एक बड़े मुद्दे को उठाता है। अगर इस रिव्यू पीटिशन की ओरल हीरयरिंग नहीं की गई, तो यह यह अन्याय होगा।"

वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने की मांग

इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने मांग की है कि बकाया राशि से जुड़े मामलों को नौ जजों की बेंच के सामने रखा जाए, जिससे राज्यों को वित्तिय राहत मिल सके। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को बताया कि केंद्र तथा टाटा समूह की इकाई ने रिव्यू पीटिशन के बारे में बताया है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "संविधान पीठ के फैसले की समीक्षा।"

इस पर द्विवेदी ने कहा कि सालों से ही खनिज वाली भूमिन पर रॉयल्टी या कर चुकाए बिना खनिजों के जरिए लाभ उठाने वाले पब्लिक सेक्टर तय न्यूनतम राशि का भुगतान नहीं करना चाहते हैं। सेंटर और प्राइवेट कंपनियां की फीस लगाने की गुहार के बाद नौ जजों की बेंच ने न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की असहमति के साथ, 14 अगस्त को स्पष्ट रूप से कहा था कि खनिज वाली भूमि पर रॉयल्टी और कर का बकाया 2005 से अगले 12 वर्षों में राज्यों को किश्तों में भुगतान किया जाएगा। यह भी स्पष्ट किया गया था कि बकाया राशि पर ब्याज नहीं लगेगा।

PSUs पर बोझ

कहा जा रहा है कि इसके कारण पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग पर भारी वित्तिय बोझ आ सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्याज के बिना बकाया चुकाने की कीमत 70,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया गया है। वहीं, अगर प्राइवेट सेक्टर के बिजनेस से यह वसूले जाने वाले 2005 से बकाया को शामिल कर लिया जाए तो यह रकम 1.5 लाख करोड़ रुपये हो जाती है। इसमें खनिज से संपन्न राज्य जैसे झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और राजस्थान को फायदा होगा। झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और राजस्थान को फायदा होगा।

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