इंदिरा जयसिंह बताएं कि वह ‘सहमति से संबंध बनाने’ की उम्र कम करके देश की संस्कृति का ‘सत्यानाश’ करने पर क्यों आमादा हैं?
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह द्वारा सुप्रीम कोर्ट में 'सहमति से यौन संबंध' की उम्र 18 से घटाकर 16 साल करने की याचिका दायर करने पर तीखा विरोध हुआ है. पूर्व DGP डॉ. विक्रम सिंह, वरिष्ठ वकील डॉ. ए.पी. सिंह, नाजिया इलाही खान और स्वामी चक्रपाणि महाराज ने इसे भारतीय संस्कृति पर हमला बताते हुए खारिज किया. विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रस्ताव किशोरों में यौन हिंसा, मानसिक और शारीरिक समस्याएं बढ़ा सकता है.

देश की वरिष्ठ महिला वकील इंदिरा जयसिंह चाहती हैं कि 'सहमति से संबंध बनाने' की उम्र घटाकर 18 साल से 16 साल कर दी जाए. इसके लिए उन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका भी दाखिल की है. उनका तर्क है कि इस बदलाव के होने से देश के युवाओं में बढ़ रही यौन हिंसा, बलात्कार की घटनाओं में कमी आ जाएगी. अपने इस बेहूदा कहिए या फिर अजीब-ओ-गरीब फार्मूले को अमल में लाने की जिद पर अड़ी वरिष्ठ महिला वकील इंदिरा जयसिंह अब देश के वकीलों, महिला हकों के समर्थकों, समाज-सेवी लोगों और पुलिस के ही निशाने पर आ गई हैं. इन सभी ने इस मुद्दे पर चौतरफा इंदिरा जयसिंह को घेरना शुरू कर दिया है.
क्या इंदिरा जयसिंह जैसी अनुभवी वकील-काउंसिल की यह मांग जायज है? अगर उनकी इस मांग पर सकारात्मक विचार हो जाएगा तब भारत कहां खड़ा होगा? क्या प्रभाव पड़ेगा भारत की संस्कृति और मौजूदा व आने वाली युवा पीढ़ियों के ऊपर? इन्हीं तमाम सवालों के जवाब पाने के लिए स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने खुलकर विस्तृत बात की उत्तर प्रदेश पुलिस के बेबाक पूर्व पुलिस महानिदेशक 1974 बैच के रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी डॉ. विक्रम सिंह, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के वरिष्ठ फौजदारी वकील डॉ. ए पी सिंह, अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणी महाराज और, हमेशा महिलाओं के हित के मुद्दों पर बेबाक बोलने वाली नाजिया इलाही खान से. इन सभी ने इस मुद्दे पर खुलकर इंदिरा जयसिंह जैसी वरिष्ठ और अनुभवी वकील की काबिलियत पर ही सवालिया निशान लगा दिए. यहां तक कह डाला कि इंदिरा जयसिंह एक वकील होने से पहले भारतीय महिला हैं. उन्हें तो महिलाओं के दुख-दर्द सबसे पहले आगे बढ़कर समझने चाहिए. जबकि वह बात एकदम महिलाओं के सत्यानाश की कर रही हैं.
काहे बात की वरिष्ठ महिला वकील
डॉ. विक्रम सिंह ने कहा, “बेशक इंदिरा जयसिंह बड़ी और सर्वोच्च न्यायालय की वरिष्ठतम काउंसिल हों. मगर उनकी योग्यता अनुभव वरिष्ठता और विशेषकर उनके महिला होने के चलते मैं उनसे यह तो कदापि उम्मीद नहीं रखता था कि, वह ही आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल करने जैसी बेहूदा मांग पर उतर आएंगी. क्या इंदिरा जयसिंह नहीं जानती हैं कि एक 16 साल की बच्ची या किशोर की इस अवस्था में क्या और कितनी अपरिपक्व कमजोर शारीरिक ढांचा और कच्ची मनोदशा होती है. इंदिरा जयसिंह सुप्रीम कोर्ट में दावा करने पहुंची हैं कि उम्र घटाकर 18 से 16 साल कर दी जाए. क्या एक महिला होने के नाते वह नहीं जानती हैं कि 16 साल की लड़की जब बच्चे को जन्म देगी तब जच्चा-बच्चा अकाल मौत के मुंह की ओर नहीं धकेले जा रहे हैं.
बच्चों में यौन भावनाएं और विकराल होंगी
एडवोकेट इंदिरा जयसिंह यह क्यों नहीं सोचती हैं कि इससे किशोरों के अंदर यौन हिंसा की भावनाएं और ज्यादा बढ़कर किसी दावानल की तरह भड़केंगीं. क्या जब किशोर किशोरियों को हम कानूनन स्वच्छंद वातावरण या अनुमति देंगे इस काम के लिए तो फिर वे, अपना ऊंच-नीच भला-बुरा खुद सोच समझ पाएंगे. इंदिरा जयसिंह जी कहती हैं कि इससे देश में बढ़ते यौन हिंसा के मामलों पर लगाम लगेगी. 37 साल पुलिस अफसरी करने के अनुभव से मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि, इससे हमारी आने वाली और मौजूदा पीढ़ी यौन के मामले में तबाही और बर्बादी के दरिया में उतार दी जाएगी. हालांकि अभी देखते जाइए मोदी सरकार में इस याचिका का क्या हश्र होता है. सब सामने आ जाएगा. हम आप और इंदिरा जयसिंह जी सब यहीं हैं कोई कहीं भाग नहीं रहा है.”
इंदिरा जयसिंह का तर्क समझ से परे है
स्टेट मिरर हिंदी ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह के इस बेतुके तर्क मगर आम हिंदुस्तानी की नजर में सामाजिक सरोकार की दृष्टि से बेहद अहम मुद्दे पर बेबाक बातचीत की सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अनुभवी फौजदारी अधिवक्ता डॉ. ए पी सिंह से. उन्होंने कहा, “इंदिरा जयसिंह जी क्या कह रही हैं क्या कर रही हैं वह सीता, सावित्री, अहिल्या के देश में क्या करने पर उतारू हैं? मेरी तो समझ से बाहर है. वह भी एक महिला ही महिला के बारे में इतना बेहूदा सोच ले, तब तो फिर ऐसे बकवास मुद्दे पर जन-आंदोलन की ही जरूरत है. इंदिरा जयसिंह जी को पता चल जाएगा कि उन्होंने कैसे किस मुद्दे को लेकर गलत समय सही देश में गलत मुद्दे पर हाथ डालने की नाकाम कोशिश की है.
इंदिरा जयसिंह से भारत नहीं चल रहा है. न डॉक्टर एपी सिंह भारत चला रहे हैं. यह देश दुर्गा, लक्ष्मीबाई, सरस्वती मां, काली-कामाख्या का देश है. यह वह देश है जहां स्त्री-बेटी देवी-स्वरूप में पूजी जाती है. पता नहीं इंदिरा जयसिंह कहां से यह बेहूदा विषय और किसके कहने पर बटोर लाई हैं. यह तो वही बेहतर जानती होंगीं. हां, इतना जरूर है कि देश में मौजूदा मोदी हुकूमत इंदिरा जयसिंह के इस फलसफा को सिरे से कोर्ट में साफ कर देगी.”
स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ फौजदारी अधिवक्ता डॉ. ए पी सिंह ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे को ले जाकर इंदिरा जयसिंह क्या कर रही हैं, और इस मुद्दे पर उनकी किस तरह भारत के समाज में मजाक बन रहा है. यह जगजाहिर है. मुझे तो यह विषय या इस मुद्दे को लेकर इंदिरा जयसिंह जैसी वरिष्ठ महिला काउंसिल पर कोई प्रतिक्रिया देने तक का मन नहीं है. मगर चूंकि बात देश की संस्कृति, देश की महिलाओं-बेटियों की अस्मिता उनके मौलिक अधिकारों से जुड़ी है, तो ऐसे में मैं खुद भी सुप्रीम कोर्ट का वकील और एक भारतीय होने के नाते खामोश हो जाऊंगा, तो मैं भी इंदिरा जय सिंह द्वारा उठाए जा रहे इस बेहूदा मुद्दे में खुद को शामिल ही मानूंगा. वैसे निश्चिंत रहिए देश में इस वक्त जो सरकार राज कर रही है, वह सुप्रीम कोर्ट से आगे ही नहीं बढ़ने देगी इस वाहियात विषय को.”
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेष डॉ. जेबी शर्मा बोले
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी देश के दिल्ली में स्थित सबसे बड़े और नामी अस्पताल एम्स के स्त्री प्रसूता एवं महिला रोग विशेषज्ञ विभाग के पूर्व यूनिट हेड और इस वक्त यशोदा मेडिसिटी हॉस्पिटल गाजियाबाद (इंदिरापुराम) के विभाग प्रमुख डॉ. जे बी शर्मा कहते हैं, “कानूनी नजरिये से तो मैं इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोल सकता हूं, क्योंकि यह सरकार और कानूनविदों के बीच की बात है. हां, जहां तक इतनी कम उम्र में किसी किशोर-किशोरी की शारीरिक संरचना की बात है तो, इस बढ़ती और बेहद कच्ची उम्र में यानी 16 साल की ही उम्र में बच्चों को उनकी सहमति से संबंध बनाने की स्वच्छंदता दिया जाना कदापि उचित नहीं होगा. क्योंकि इस उम्र में बच्चों को जब कानूनन सहमति से संबंध बनाने की अनुमति मिल जाएगी, तब फिर वह खुद को फिजिकल रिलेशन बनाने के लिए भी स्वतंत्र समझने लगेंगे.
कम उम्र में गर्भधारण महिला को जानलेवा
जब वे खुद को फिजिकल रिलेशन बनाने के लिए फ्री समझेंगे तो उनकी बीच कुछ वह गलतियां भी होना संभव हैं, जिनके लिए विशेषकर लड़की का शरीर उसके जननांग तो बिलकुल भी तैयार नहीं हो पाते हैं. इतनी कच्ची उम्र में अगर लड़की कन्सीव (गर्भधारण) कर लेती है तो इसका भी एकदम बुरा-विपरीत असर लड़की की मनोदशा और उसके शरीर पर ही पड़ेगा. जोकि उसके शारीरिक-मानसिक विकास और भविष्य में सबसे बड़ी बाधा साबित होगा. इतनी कम उम्र में लड़की का शरीर इस लायक या इतना मजबूत नहीं हो पाता है कि वह किसी शिशु को 7-8-9 महीने तक गर्भ में पाल-पोसकर उसका सुरक्षित जन्म करा सके. कम उम्र में शारीरिक संबंध बनाने और गर्भधारण कर लेने की जटिलताएं सिर्फ और स्त्री एवं प्रसूता रोग या मनोरोग विशेषज्ञ और कोई लड़की महिला ही ज्यादा बेहतर समझ सकती है.” स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 18 साल से 16 साल किए जाने की चर्चाओं पर बात करते हुए स्टेट मिरर हिंदी से बेबाकी से कहते हैं डॉ. जेबी शर्मा.
शर्मनाक है यह सोच: नाजिया इलाही खान
हमेशा महिलाओं के मुद्दों पर बेबाक बात करके चर्चाओं में बनी रहने वाली नाजिया इलाही खान से स्टेट मिरर हिंदी ने बात की. उन्होंने कहा कि, “मुझे उन महिला वकील की सोच पर ही शर्म आ रही है जो खुद एक उच्च शिक्षित, अनुभवी और ऊपर से कानून की जानकार वकील ही सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 18 से 16 साल किए जाने की वकालत करने पर आमादा हैं. क्यों? क्या वे खुद एक औरत नहीं हैं? उन्हें क्या यह नहीं पता है एक औरत होने के नाते कि जब 16 साल की उम्र में बच्चे शारीरिक संबंध बनाने के लिए फ्री छोड़ दिए जाएंगे तो, भारत जैसे संस्कारशील देश में कम उम्र में ही यौन संबंध को लेकर वह अवधारणा समाज में फैल जाएगी, जो पश्चिमी संस्कृति से भी ज्यादा कुलछनी होगी. सच पूछिए तो मुझे इस विषय पर ही घिन आ रही है बात करते हुए. इसलिए क्यों मैं एक महिला हूं. कम उम्र में शादी और फिर बच्चा पैदा करने का दर्द मैंने जबरदस्ती भोगा-झेला है. हो सकता है कि स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाने के लिए उम्र 18 से 16 किए जाने की वकालत कर रही इंदिरा जयसिंह ने यह दुख न झेला हो कि कम उम्र में बच्चा पैदा करना किसी लड़की के लिए जिंदगी-मौत का सवाल हो सकता है.”
सुप्रीम कोर्ट में तो कोई भी चला जाता है
महिला अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह द्वारा इस वाहियात मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट ले जाने के बारे में पूछने पर नाजिया इलाही खान कहती हैं, “सुप्रीम कोर्ट में जिस नामी-बड़े वकील की मर्जी हो सो जाकर याचिका दायर कर आए. वहां कौन रोक रहा है किसी को जाने से. मैं सुप्रीम कोर्ट में क्या होता है इस पर कुछ नहीं कहूंगी. हां, भारतीय समाज, संस्कृति की नजर में बेहूदा-वाहियात जिस सब्जेक्ट को लेकर इंदिरा जयसिंह जैसी महिला वकील लेकर पहुंची हैं, वह मुझे क्या पूरे हमारे समाज को शर्मसार महसूस कराने वाला लग रहा है.
इसके लिए मुस्लिम समुदाय ही काफी था
इस काम के लिए तो अब तक मुस्लिम समुदाय ही जाना-पहचाना जाता था. अब इंदिरा जयसिंह इसी कुरीती को हिंदू संस्कृति वाले भारत में भी बढ़ाने-पौंड़ाने पर तुली बैठी हैं. हो सकता है कि इंदिरा जयसिंह जी मुस्लिम समुदाय के किसी कट्टर धर्मभीरू मुल्ला-मौलवी के इशारे पर काम कर रही हों. हालांकि इसमें बहुत ज्यादा चिंतित होने की जरूरत कतई नहीं है. थोड़ा इंतजार कीजिए आने वाले कुछ ही दिनो में इंदिरा जयसिंह की इस याचिका का सत्यानाश सुप्रीम कोर्ट में खुद-ब-खुद ही हो जाएगा. हमें आपको कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.
मोदी सरकार ऐसा नहीं होने देगी
दूसरे, यह समझना चाहिए कि आज का भारत और मौजूदा केंद्र सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के अभियान में जुटी है. तो फिर क्या मोदी सरकार इंदिरा जयसिंह के ऐसे बेतुके या कहूं कि कुत्सित इरादों को कामयाब हो लेने देगी. बिलकुल नहीं. बस इंतजार करिए उस दिन का जब यह वाहियात मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में भी औंधे मुंह जमीन पर पड़ा नजर आएगा. अभी इस पर चर्चा करना, मतलब एक वाहियात बकवास विषय को बे-वजह चर्चा में लाकर उसे पब्लिसिटी देना होगा.” अपनी बेबाक बात पूरी करते हुए स्टेट मिरर हिंदी से कहती हैं बेबाक-बेखौफ समाज-सेविका नाजिया इलाही खान.
क्या इंदिरा जयसिंह खुद महिला नहीं हैं?
इस बारे में स्टेट मिरर हिंदी की बात जब अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज से हुई तो वह बोले, “कौन इंदिरा जयसिंह मैं नहीं जानता. विशेषकर ऐसी या ऐसे वकील का नाम तो मैं अपनी जुबान पर लाना भी गुनाह समझूंगा जो, भारत की युवा पीढ़ी की ही दुश्मन बनने पर आमादा हो. होंगी इंदिरा जयसिंह दुनिया की नजर में अनुभवी और वरिष्ठ वकील. स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 18 से घटाकर 16 करने का जो शर्मनाक वाहियात मुद्दा लेकर वह सुप्रीम कोर्ट लेकर पहुंची हैं, क्या वह खुद एक औरत नहीं हैं?
इंदिरा जयसिंह जानकर ‘अनजान’ बन रहीं
क्या वह नहीं जानती हैं कि भारत जैसे देश से बाल-विवाह जैसी कुप्रथा को खतम करने में 165 साल में हमारी कितनी पीढ़ियां मर-खप-गुजर चुकी हैं? क्या इंदिरा जयसिंह यह नहीं जानती हैं कि किसी कम उम्र की महिला को कच्ची उम्र में शारीरिक संबंध बनाने से कितना घातक जानलेवा नुकसान है? क्या महिला होने के नाते इंदिरा जयसिंह को इतना भी नहीं मालूम है कि कम उम्र में गर्भधारण करने वाली मां-बहन-बेटी और उसके गर्भ में मौजूद मासूम को किस कदर की जानलेवा तकलीफों से जूझना पड़ता है? क्या इंदिरा जयसिंह पश्चिमी देश में जन्मी हैं? जहां उन्होंने 12-14 साल के लड़के-लड़की को शारीरिक संबंध बनाते हुए ही देखा है बस?
यह अमेरिका नहीं ‘मोदी’ का भारत है
क्या इन इंदिरा जयसिंह को नहीं पता है कि स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 18 साल से घटाकर 16 कर दिए जाने पर भारत जैसे गौरवशाली और खूबसूरत संस्कृति वाले देश में यौन संबंधों को लेकर हिंसा का वातावरण पनप उठेगा? कोई बात नहीं इस पर और ज्यादा नहीं बोलूंगा. हमारी सुप्रीम कोर्ट में कोई भी नामी वकील कभी भी किसी भी मुद्दे पर भले ही वह वाहियात क्यों न हो, याचिका दायर कर सकता है. देश में इस वक्त केंद्र में इतनी मजबूत सरकार है जो, इंदिरा जयसिंह की ऐसी किसी भी वाहियात मंशा को बहुत जल्दी ही जमीन पर औंधे मुंह गिरवा डालेगी. इंदिरा जयसिंह को एक संवेदनशील और काबिल वकील मैं तब मानता जब वह, भारत की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए यही उम्र 18 से बढ़वा कर 21 कराने की वकालत करके दिखातीं. यह राम सीता, सावित्री, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, लक्ष्मीबाई का भारत है. अमेरिका यूरोप और ब्रिटेन नहीं. इंदिरा जयसिंह इसका ध्यान रखें.”