कहां से आया था अमजद खान को 'गब्बर सिंह' नाम देने का आइडिया? जो बना सिनेमा की दुनिया का आइकॉनिक विलेन
अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र और संजीव कपूर समेत दिग्गज कलाकारों से बनी शोले को इस 15 अगस्त को 50 साल हो जाएंगे. 'शोले' जो भारतीय सिनेमा की सबसे आइकॉनिक फिल्म है वह आज भी अपने फैंस के दिलों में जिंदा है. वहीं इस फिल्म का सबसे बड़ा और अहम किरदार रहा है गब्बर सिंह का जिसे अमजद खान ने निभाया. लेकिन क्या लोगों को पता है कि आखिर अमजद को गब्बर सिंह का नाम देने के लिए सलीम-जावेद को कितनी मेहनत करनी पड़ी थी.

1975 में रिलीज़ हुई फिल्म शोले ने भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी. इस फिल्म का सबसे यादगार किरदार था गब्बर सिंह, जिसे दिवगंत एक्टर अमजद खान ने निभाया. गब्बर सिंह का किरदार इतना प्रभावशाली था कि उसके डायलॉग्स जैसे 'कितने आदमी थे?', 'जो डर गया, समझो मर गया' और 'यहां से पचास-पचास कोस दूर...' आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं. लेकिन सवाल यह है कि इस दमदार किरदार का नाम 'गब्बर सिंह' कैसे पड़ा? इसके पीछे की कहानी उतनी ही रोचक है जितनी खुद यह फिल्म.
1970 के दशक की शुरुआत में, लेखक जोड़ी सलीम-जावेद (सलीम खान और जावेद अख्तर) एक ऐसी कहानी लिख रहे थे, जो भारतीय सिनेमा में क्रांति लाने वाली थी. यह थी 'शोले', एक ऐसी फिल्म जो वेस्टर्न और देसी सिनेमा का अनूठा मिश्रण थी. इस फिल्म का केंद्रीय खलनायक एक ऐसा डाकू होना था, जो न केवल क्रूर हो, बल्कि अपनी स्टाइल और पर्सनालिटी से दर्शकों के दिलो-दिमाग पर छा जाए. लेकिन इस किरदार का नाम क्या हो? यह सवाल सलीम-जावेद के सामने था. सलीम-जावेद को एक ऐसा नाम चाहिए था जो देसी मिट्टी से जुड़ा हो, जो चंबल के डाकुओं की क्रूरता और डर को दर्शाए, लेकिन साथ ही जिसमें एक अनोखा आकर्षण भी हो. वे चाहते थे कि यह किरदार और उसका नाम दर्शकों के लिए यादगार बन जाए. इस खोज में उन्हें प्रेरणा मिली चंबल के डाकुओं की असल ज़िंदगी और कहानियों से.
'गब्बर' का जन्म
सलीम-जावेद ने शोले की कहानी को और ऑथेंटिक बनाने के लिए चंबल घाटी के डाकुओं पर रिसर्च किया. उन्होंने किताबें पढ़ीं, खास तौर पर 'अभिशप्त चंबल' जैसी किताबें, जो चंबल के डाकुओं की ज़िंदगी और उनके समाज पर प्रकाश डालती थी. चंबल के डाकुओं में एक नाम बार-बार उभरकर सामने आया—गब्बर सिंह. यह नाम असल में एक कुख्यात डाकू का था, जो 1950-60 के दशक में चंबल घाटी में जिसका खौफ था.
डैनी डेन्जोंगपा को ऑफर हुआ गब्बर का रोल
जब नाम तय हो गया, तो अगला सवाल था कि इस किरदार को निभाएगा कौन? गब्बर सिंह की भूमिका पहले डैनी डेन्जोंगपा को ऑफर की गई थी, जो उस समय इंडस्ट्री के मशहूर खलनायक थे. लेकिन डैनी उस समय 'धर्मात्मा' फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थे और उन्होंने शोले के लिए समय न होने की वजह से मना कर दिया. इसके बाद सलीम खान की सिफारिश पर रमेश सिप्पी ने अमजद खान को चुना. सलीम खान ने अमजद को एक ड्रामा में देखा था, जहां उनकी दमदार एक्टिंग और हाव-भाव ने उन्हें प्रभावित किया था. अमजद उस समय एक थिएटर आर्टिस्ट थे और फिल्मों में छोटे-मोटे रोल कर रहे थे. सलीम को यकीन था कि अमजद इस किरदार में जान डाल सकते हैं.
धोबी से सीखा बोलने का अंदाज
लेकिन अमजद खान को गब्बर के किरदार में ढालने के लिए और प्रेरणा की ज़रूरत थी. अमजद ने न केवल 'अभिशप्त चंबल' किताब पढ़ी, बल्कि अपने गांव के एक धोबी के बोलने के अंदाज़ से भी प्रेरणा ली. यह धोबी सुबह-सुबह ठेठ देसी अंदाज़ में लोगों से बात करता था, जिसे अमजद बड़े गौर से सुनते थे. उन्होंने इस देहाती अंदाज़ को गब्बर के डायलॉग्स में उतारा, जिसने किरदार को और भी दमदार बना दिया जैसे- अरे ओ सांभा और कितने आदमी थे जैसे डायलॉग्स में वही देसी ठसक थी, जो चंबल के डाकुओं की बोली से प्रेरित थी.
असल में थे जय-वीरू भी
मशहूर फिल्म शोले के जय और वीरू सिर्फ फिल्मी किरदार नहीं थे, बल्कि उनके नाम असली लोगों से लिए गए थे. आईएमडीबी की रिपोर्ट के मुताबिक, फिल्म के लेखक सलीम खान ने अपने कॉलेज के दो दोस्तों के नाम पर ये किरदार बनाए थे. जय का नाम जय सिंह राव कालेवर के नाम पर रखा गया था, जो एक पिंडारी योद्धा और किसान थे. वहीं वीरू का नाम वीरेंद्र सिंह बायस से लिया गया था, जो इंदौर के खजराना कोठी के एक जागीरदार के बेटे थे. दोनों की अब मृत्यु हो चुकी है, लेकिन 'शोले' में उनकी यादें अमर हो गईं.