Raj Kapoor's 100th birth anniversary : बॉलीवुड का 'जोकर' कैसे बना 'द शोमैन', बेहद कम उम्र में रखी थी आरके स्टूडियो की नींव
राज कपूर का बचपन कला और एक्टिंग के माहौल में बीता. उनके पिता, पृथ्वीराज कपूर, एक पॉपुलर एक्टर थे और राज कपूर ने अपने परिवार से एक्टर और सिनेमा के बारे में बहुत कुछ सीखा.

बॉलीवुड के ग्रेट शो मैन कहे जाने वाले राज कपूर (Raj Kapoor) एक अनोखे और प्रभावशाली एक्टर, निर्देशक, निर्माता और संगीतकार थे. उनके शो मैन बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है और उनकी सफलता के पीछे कई अहम पहलू थे. 14 दिसंबर को लीजेंड की 100वीं बर्थ एनिवर्सरी सेलिब्रेट की जा रही है.
इस खास मौके का जश्न मनाने के लिए आरके फिल्म्स, फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन और एनएफडीसी-नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया 'राज कपूर 100 - सेलिब्रेटिंग द सेंटेनरी ऑफ द ग्रेटेस्ट शोमैन' का आयोजन कर रहे हैं, जो उनकी कुछ शानदार फिल्मों को दिखाएंगे. आइये जानते है कि कैसे राज कपूर बने 'द ग्रेट शो मैन'.
फिल्म 'आग' से निर्देशन की शुरुआत
राज कपूर का बचपन कला और एक्टिंग के माहौल में बीता. उनके पिता, पृथ्वीराज कपूर, एक पॉपुलर एक्टर थे और राज कपूर ने अपने परिवार से एक्टर और सिनेमा के बारे में बहुत कुछ सीखा. उनका सपना भारतीय सिनेमा को इंटरनेशनल लेवल पर एक नया मुकाम दिलाना था. राज कपूर ने भारतीय सिनेमा में नई विचारधाराओं और प्रयोगों की शुरुआत की. उनकी फिल्में अक्सर समाज की समस्याओं और ह्यूमन इमोशन पर फोकस्ड रहती थीं. उन्होंने अपने निर्देशन की शुरुआत फिल्म 'आग' (1948) से की, जो एक साहसिक कदम था. इसके बाद उन्होंने 'बरसात' (1949), 'आवारा' (1951), 'श्री 420' (1955) और 'मेरा नाम जोकर' (1970) जैसी फिल्में बनाईं. इन फिल्मों में म्यूजिक, एक्टिंग और कहानी का बेहतरीन कॉम्बिनेशन था.
ऐसे मिला शो मैन का दर्जा
राज कपूर के जीवन में काफी स्ट्रगल रहा उनकी ग्रेट क्रिएशन में से एक मानी जाने वाली फिल्म 'मेरा नाम जोकर' बॉक्स ऑफिस पर असफल रही. लेकिन राज कपूर ने कभी हार नहीं मानी. उनका मानना था कि अच्छे काम से हमेशा सफलता मिलेगी और उनके अनूठे प्रयासों ने उन्हें एक शोमैन का दर्जा दिलाया. राज कपूर की काबिलियत यहीं तक सीमित नहीं है. वह जब भी कोई फिल्म बनाते थे तो उन्हें पता होता था कि कौन सा सॉन्ग या डायलॉग आइकॉनिक होगा. फिल्मों पर अच्छी पकड़ ने उन्हें बॉलीवुड का शोमैन बना दिया. राज कपूर की अपने दर्शकों के साथ सिम्पैथी रखने और उनके जीवन को पर्दे पर रिफ्लेक्ट करने की क्षमता ने ही उन्हें सच्चे मायनों में उन्हें शोमैन बनाया. उनके करैक्टर अक्सर सामाजिक दबाव, प्रेम और नैतिक दुविधाओं से जूझ रहे आम आदमी का रिप्रेजेंट करते थे. उनके इस टैलेंट ने उन्हें एक घरेलू नाम और एक ऐसी शख्सियत बना दिया, जिसने सिल्वर स्क्रीन को पार कर लिया.
रूस में हिट रही यह फिल्म
राज कपूर का प्रभाव भारत से बाहर तक गया, जिससे उन्हें इंटरनेशनल लेवल पर फेम मिला. वह उन कुछ भारतीय फिल्म निर्माताओं में से एक बन गए जो ग्लोबल लेवल पर जाने जाते थे, खासकर सोवियत रूस में, जहां 'आवारा' और 'श्री 420' बहुत हिट रहीं. उनकी फ़िल्मों को उनकी सादगी, भावनात्मक गहराई और यूनिवर्सल अपील के लिए सराहा गया. उन्हें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स से भी खूब तारीफें मिली, जिससे ग्लोबल सिनेमेटिक आइकॉन के रूप में उनकी पहचान और मजबूत हुई.
पेशावर में हुआ था जन्म
राज कपूर का जन्म 14 दिसंबर, 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान में) में एक ऐसे परिवार में हुआ था, जिसका थिएटर और फिल्म से गहरा संबंध था. उनके पिता पृथ्वीराज कपूर जिन्हें आइकॉनिक फिल्म 'मुगले आजम' के लिए जाना जाता है. पेशावर में आर्थिक तंगी के चलते वह पेशावर से बॉम्बे चले आए थे. राज कपूर ने 1946 में कृष्णा मल्होत्रा से शादी की और उनके पांच बच्चे हुए. उनके बेटे, ऋषि कपूर भी एक प्रसिद्ध एक्टर बने, और उनके अन्य बच्चे, रणधीर कपूर, राजीव कपूर और रीमा कपूर भी फिल्म इंडस्ट्री में शामिल थे. जिन्होंने अपनी शानदार एक्टिंग से उनकी लेजेसी को आगे बढ़ाया. उनकी लेजेसी को आगे बढ़ाने में उनके स्टार ग्रैंडचिल्ड्रन का भी अहम योगदान है. जिसमें रणबीर कपूर, करिश्मा कपूर और करीना कपूर का नाम शामिल है.
कम उम्र में आरके स्टूडियो की स्थापना
1948 में, महज 24 साल की उम्र में आरके स्टूडियो की स्थापना करने वाले राज कपूर को अपने पूरे करियर में कला में उनके योगदान के लिए कई अवार्ड मिले. जिनमें प्रतिष्ठित पद्म भूषण (1987), भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक अवार्ड भी शामिल है. उन्हें विभिन्न इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी मान्यता मिली. राज कपूर का आरके स्टूडियो भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में एक मील का पत्थर बन गया. स्टूडियो ने न केवल उनकी फिल्मों का निर्माण किया, बल्कि क्रिएटिविटी का एक सेंटर साबित हुआ. जिसने भारतीय सिनेमा में कई ऐतिहासिक फिल्मों के निर्माण में योगदान दिया.