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'मैं उन्हें लेखक नहीं मानता...'FIR लेखक अमित आर्यन ने सलीम-जावेद के करियर पर उठाए सवाल

सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी को भारत में हर कोई पसंद करता है. दोनों ने मिलकर कई सुपरहिट फिल्में दीं, जिनमें शोले, जंजीर, दीवार, और डॉन जैसी फिल्मों ने भारतीय सिनेमा में क्रांति ला दी. सलीम-जावेद ने 1982 में अपनी साझेदारी को समाप्त करने का फैसला किया.

मैं उन्हें लेखक नहीं मानता...FIR लेखक अमित आर्यन ने सलीम-जावेद के करियर पर उठाए सवाल
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( Image Source:  Photo Credit- ANI )

सलीम खान और जावेद अख्तर का नाम भारतीय सिनेमा के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है. दोनों ने मिलकर कई सुपरहिट फिल्में दीं, जिनमें शोले, जंजीर, दीवार, और डॉन जैसी फिल्मों ने भारतीय सिनेमा में क्रांति ला दी. यह जोड़ी न केवल पटकथा लेखन के लिए जानी जाती है, बल्कि फिल्मों में दमदार संवादों और यादगार किरदारों के निर्माण में भी उनका अहम योगदान रहा है.

हालांकि, एफआईआर के पटकथा लेखक अमित आर्यन इस विचार से असहमत हैं. एक इंटरव्यू में, उन्होंने सलीम-जावेद के काम पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह इन्हें लेखक नहीं मानते. अमित के अनुसार, "सलीम-जावेद ने अपने जीवन में कुछ भी नया नहीं लिखा, बल्कि उन्होंने दूसरे फिल्मों से चीज़ें कॉपी कीं." उन्होंने यह भी कहा कि सलीम-जावेद अच्छे लेखक नहीं, बल्कि अच्छे सेल्समैन थे, जिन्होंने अपनी फिल्मों को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया और कारोबार में सफलता हासिल की.

शोले और अन्य फिल्मों की तुलना

अमित ने सलीम-जावेद की प्रसिद्ध फिल्म शोले पर भी टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि शोले की कहानी पूरी तरह से नकल पर आधारित थी. अमित ने बताया कि 'शोले' की कहानी 1971 की फिल्म 'मेरा गांव मेरा देश' से प्रेरित थी. वहां विनोद खन्ना ने जब्बर सिंह नामक डकैत का किरदार निभाया था, जिसे शोले में गब्बर सिंह बना दिया गया. इसके अलावा, शोले की कहानी में अन्य फिल्मों जैसे दो आंखें बारह हाथ और सात समुराई से भी समानताएं पाई गईं.

अमित आर्यन ने सलीम-जावेद की एक और हिट फिल्म दीवार का जिक्र करते हुए कहा कि इसका क्लाइमेक्स दिलीप कुमार की फिल्म गंगा जमुना से काफी मिलता-जुलता था. उनका मानना है कि सलीम-जावेद की फिल्में मौलिकता से दूर थीं और उन्होंने केवल अन्य फिल्मों से कथावस्तु उठाकर उन्हें बेहतरीन अंदाज में प्रस्तुत किया.

सलीम-जावेद की साझेदारी का अंत

22 फिल्मों में साथ काम करने के बाद, जिनमें यादों की बारात, त्रिशूल, काला पत्थर, दोस्ताना, और मिस्टर इंडिया जैसी फिल्में शामिल थीं, सलीम-जावेद ने 1982 में अपनी साझेदारी को समाप्त करने का फैसला किया. उनके अलग होने के बाद भी, भारतीय सिनेमा में उनका योगदान अमूल्य माना जाता है.

सलीम-जावेद भारतीय सिनेमा के महानतम पटकथा लेखक माने जाते हैं, लेकिन उनकी आलोचना भी कम नहीं हुई है. अमित आर्यन जैसे आलोचकों का मानना है कि उनकी फिल्में पूरी तरह से मौलिक नहीं थीं. फिर भी, यह जोड़ी भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा याद की जाएगी.

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